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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । इनके बारह पुत्र थे जिनमें ज्येष्ठ भारतीचन्द्र इनके उत्तराधिकारी हुए । इनके समय में राज्यकी कुछ विशेष वृद्धि न हुई; परन्तु उसकी परिस्थिति प्रायः पूर्ववत् बनी रही । जब शेरशाह सूरने कालिञ्जरपर श्राक्रमण किया तो इन्होंने उसको रोकना चाहा था; पर मनोरथ सफल न हुआ । २३ साल राज्य करके संवत् १६११ ( सन् १५५४ ) - में इन्होंने शरीर त्याग किया । इनके पीछे इनके छोटे भाई मधुकर साह गद्दीपर बैठे । ये विरक्त चित्तके पुरुष थे और राज्यकार्य्यकी ओर समुचित ध्यान नहीं दे सकते थे । इसका फल यह हुआ कि राज्य में अवनतिके लक्षण देख पड़ने लगे। ग्वालियर के कुछ परगने बुँदेलोंके अधिकार में आ गये थे । इसके लिये दण्ड देनेके उद्देश्य से सादिक खांके सेनापतित्वमें एक मुग़ल सेनाने बुन्देलखण्डपर आक्रमण किया और ओरछा उनके हाथमें चला गया। दूसरी बार फिर मुग़ल सेनाने ओरछापर श्राक्रमण किया और परास्त होकर मधुकरसाहको जङ्गलोका श्राश्रय लेना पड़ा जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी । उनके पुत्र रामसाद्दने मुग़ल सम्राट्से क्षमाकी प्रार्थना की और गद्दीपर बैठनेकी श्रज्ञा पाकर शासन-कार्य में लगे । परन्तु ये बड़ी ही दुर्बल प्रकृतिके पुरुष थे और राज्यकी परिस्थिति प्रति दिन बिगड़ती ही गयी । इस समय दिल्ली में मुगल वंशके सूर्य्य महापुरुष अकबरका राज्य था । भारतका अधिकांश इनके श्राधिपत्यमें श्रा चुका था और जो अवशिष्ट था वह भी इनके प्रबल पराक्रमके आगे काँपता था । इसी प्रबल सम्राट्से फिर मुठभेड़ हो गयी । अकबर के For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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