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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संक्षिप्त आलोचना । ११७ बहुत कुछ रक्षा और समुन्नति हुई और उसका प्रभाव बहुत दिनोंतक रहा; क्योंकि छत्रसालके देहान्तके पीछे भी उनके वंशजोंके समयमें कुछ न कुछ हिन्दी कवियोंका सम्मान होता ही गया । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २३ - छत्रसालके जीवनकी संक्षिप्त आलोचना । वीरवर छत्रसाल के जीवनको मुख्य घटनाओंका उल्लेख करके उसपर एक सूक्ष्म आलोचना करना श्रावश्यक प्रतीत होता है। अपनी ८२ वर्षकी श्रायुमें इन्होंने जो जो काम किये, उनको एक बलभद्र नामक कविने बहुत ही उत्तम रीतिसे एक छोटीसी सवैयामें कहा है - -- नहिं तात न भ्रात न साथ कोऊ, नहिं द्रव्यहु रंचक पास हती । नहिं सेनहुँ साज समाज हती, श्ररु काहुसहाय जराहु नती ॥ कर हिम्मत किम्मतसों अपनी, सु लई धरती श्री बढ़ाई रती । बलभद्र भनै लख पाठक वृन्द, हियेंमें गुनो छत्रसाल गती ॥ जिस समय छत्रसालने अपना कार्य आरम्भ किया था उस समय उनका ही नहीं, समस्त देशप्रेमियोंका हृदयाकाश निराशा से मेघाच्छन्न हो रहा था। मुग़ल साम्राज्यकी अप्रतिइत गति समस्त भारत को अपनी रौंद से कुचलने ही वाली थी । इस प्रायद्वीपका अधिकांश मुग़लोका ग्रास हो चुका था। जो बचा था वह प्राणमात्रावशिष्ट था। मुग़लवंशका सूर्य्य प्रचण्ड तेजसे चमक रहा था और जो धृष्टता करके उससे श्रख मिलानेका साहस करता था तत्काल भस्म हो जाता था। बड़े बड़े हिन्दू राजा महाराजा सम्राट् के सामने नतमस्तक हो हाथ बाँधे खड़े थे और चण्ड-पराक्रम औरङ्गजेब For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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