SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ११२ महाराज छत्रसाल। कल अधिकांश राज्यों में ऐसी सभाओका भी प्रभाव है जिसका फल यह होता है कि राजाओंके उद्दण्ड स्वातंत्र्यमें किसी प्रकारकी रुकावट पड़ने के स्थानमें उनको बहुधा यह भी जाननेका अवसर नहीं मिलता कि हमारे कामोको प्रजा किस दृष्टिसे देखती है । इसीसे राजा और प्रजामें दिनोंदिन 'और भी वैमनस्य बढ़ता जाता है और परस्पर सहानुभूति घटती जाती है। उन्होंने यह भी लिखा है कि ये प्रायः भेष-परिवर्तन करके रात्रिमें घूमते थे और प्रजाके सुस्त्र-दुःखका स्वयं अन्वेषण करते थे। पूर्वकालमें भी बहुतसे राजा लोग ऐसा किया करते थे। छोटे छोटे राज्यों में तो ऐसा करना सम्भव है, पर जिनका बड़े राज्योंपर अधिकार है वे इस प्रकार प्रजाको बहुत कम लाभ पहुँचा सकते हैं। छत्रसाल भी पन्ना, मऊ, या उसी प्रकारके दो एक स्थानोंको छोड़ कर जहाँ उनका निवास कुछ कालके लिये जम कर होता था, राज्यके शेष भागका समाचार इस युक्तिसे कदाचित् ही कुछ लाभ कर सके होंगे। २२. सौजन्य और गुणग्राहकता। जो कुछ ऊपर लिखा जा चुका है, उससे ही प्रतीत हो गया होगा कि इनका स्वभाव कैसा था। इनकी उदारताका एक उदाहरण दलेल खाँके सम्बन्धमें दिया जा चुका है। उसका एक उदाहरण और भी है। चौथे अध्यायमें लिखा जा चुका है कि जब ये अपने नानिहालसे घर जा रहे थे तो इनके पिताके एक भृत्यने इनकी सहायता की थी। उसका For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy