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मुगलोंसे अन्तिम युद्ध।
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मुगलोंकी इतनी वृद्धि होगयी थी कि अब वे मध्याह्न के सूर्यकी भाँति पतनोन्मुख होचुके थे। प्रत्येक सिपाही किसी धनाव्यकी भाँति रहता था। खेमे खेमेमें गाने बजानेकी सामग्री रहती थी। सेनाके साथ जो बाजार चलता था उसमें जो जो वस्तु बिकती थी वे छोटे नगरों में बहुत मूल्य देनेपर भी नहीं मिल सकती थीं । नर्तकियोका साथ रहना आवश्यक माना जाता था । सिपाहियोंकी वर्दियों और घोड़ोंके साजोंमें जितना धन व्यय किया जाता था उतना आज कल अच्छे अच्छे अफसरोंको स्वप्नमें भी नहीं मिल सकता। जो सेनाएँ स्वयं मम्राटके साथ होती थीं उनमें इन सब बातो. की चरम सीमा पायी जाती थी। परन्तु ऐसी कोई भी मुगल सेना न थी जो इन दोषोंसे मुक्त हो।
ऐसी सेनाओंसे शीघ्रता या फुर्तीकी आशा रखना दुराशा मात्र था। इतनी सामग्रीको लेकर द्रुतगामी होना इनके लिये असम्भव था। ऐसा करनेसे इनके सुखमय जीवनमें बाधा पड़ती थी और सुखत्याग सेनानी या सैनिक किसी. को भी अभीष्ट न था। मुगलोंके साथ जो राजपूत रहा करते थे उनमें ये दोष अपेक्षादृष्टया नहीं थे। परन्तु इस समय औरङ्गजेबके पास बहुत कम राजपूत रह गये थे। औरङ्गजेबने मुगलवंशके चिरमित्र राजपूतोंको शत्रु बनाकर तब छोड़ा था। - शाहकुली इन सब बातोंको जानता था। उसे भली भाँति शात था कि बँदेले अपनी फुरतीके कारण मुग़लोको तङ्ग कर सकते थे। अतः उसने धामौनी आते ही सुधार करना प्रारंभ किया। सबसे पहिले उसने अपना ही सुधार किया। थोड़े ही कालमें इसका प्रभाव पड़ा।
'यधदाचरतिश्रेष्ठः तत्तदेवेतरोजनः ।'
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