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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्ण कृष्ण ७-२० )। दैवी और आसुरी सम्पदा तथा आसुरी सम्पदावालोंके लक्षण और उनके अधोगतिका वर्णन (भीष्म०४०।१-२०)। आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथक-पृथक भेद (भीष्म० ४१।७-२२)। शान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुखके पृथक-पृथक भेद (भीष्म० ४२ । १९-४०)। कर्णको पाण्डवोके पक्षमें आनेके लिये समझाना (भीष्म० ४३१९-९१)। भीष्मके पराक्रमसे चिन्तित हुए युधिष्ठिरको आश्वासन देना (भीष्म ५० । २६-३०)। चक्र लेकर भीष्मको मारनेके लिये उद्यत होना ( भीष्म० ५९ । ८८-८९)। भीष्मद्वारा इनकी महिमाका वर्णन ( भीष्म० ६५।। २५ से ६८ अ. तक ) । भीष्मको मारनेके लिये अर्जुनको चेतावनी ( भीष्म० १०६ । ३३-३७)। चाबुक लेकर भीष्मके वधके लिये दौड़ना (भीष्म० १०६ । ५५-५७)। भीष्मके पराक्रमसे दुःखित युधिष्ठिरको सान्त्वना देना ( भीष्म० १०७ । २६-४०)। भीष्मके पास चलनेके लिये युधिष्ठिरके प्रस्तावकी स्वीकृति ( भीष्म० १०७ । ५२-५५ )। भीष्म-वधके लिये उद्यत न होनेवाले अर्जुनको समझाना (भीष्म० १०७ । ९६-१०२ ) । भीष्मका वध करनेके लिये अर्जुनको प्रेरित करना (भीष्म० ११८ । ३५-३६ ) । भीष्मके मारे जानेपर युधिष्ठिरसे वार्तालाप ( भीष्म० १२० । ६६-६७)। धृतराष्ट्रद्वारा इनकी लीलाओंसहित महिमाका वर्णन (द्रोण० ११ । १-४०)। भगदत्तद्वारा अर्जुनपर चलाये हुए वैष्णवास्त्रको अपनी छातीपर लेना (द्रोण० २९ । १८)। अर्जुनके पूछनेपर वैष्णवास्त्रका रहस्य बताकर भगदत्तको मारनेका आदेश देना (द्रोण. २९ । २५-३४, ४४-४५ ) । अभिमन्यु-वधसे दुखी होकर विलाप करते हुए अर्जुनको शान्त करना (द्रोण. ७२ । ६६-७४) । अर्जुनसे जयद्रथकी रक्षाका समाचार बताना (द्रोण. ७५ अ० में)। पुत्रशोकसे दुखी सुभद्राको आश्वासन देना (द्रोण० ७७ । १२-२६)। विलाप करती हुई द्रौपदी, सुभद्रा और उत्तराको आश्वासन देना (द्रोण. ७८ । ४०-४२)। अर्जुनकी विजयके लिये समयपर रथ तैयार करके लानेके लिये दारुकको आदेश देना ( द्रोण० ७९ । २१-४२)। सोते हुए अर्जुनको स्वप्नमें दर्शन देना और उनसे वार्तालाप करके शिवजीके पास ले जाना (द्रोण० ८० । २-४९)। इनके द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति (द्रोण ८० । ५५-६४)। जयद्रथ-वध के लिये युधिष्ठिरको आश्वासन (द्रोण० ८३ । २१-२८)। इनके द्वारा शङ्ख बजाया जाना (द्रोण.८८ । २.)। द्रोणाचार्यको छोड़कर आगे बढ़नेके लिये अर्जुनको प्रेरणा (द्रोण. ९१। ३०-३१ ) । घोड़ोंको पिलानेके लिये जल प्रकट करनेके हेतु अर्जुनको प्रेरित करना (द्रोण० ९९ ॥ ५८)। इनके द्वारा संग्रामभूमिमें अश्वपरिचर्या (द्रोण. १००। १०-१६ ) । अर्जुन को दुर्योधनका वध करनेके लिये प्रोत्साहन (द्रोण. १०२ । १-१८)। दुर्योधनपर बाणोंको विफल होते देख अर्जुनको उपालम्भ ( द्रोण. १०३ । ६-१०)। अर्जुनको सात्यकिके आगमनकी सूचना देना (द्रोण. १४१।१३-२५)। भूरिश्रवाके चंगुलसे सात्यकिको छुड़ानेके लिये अर्जुनको प्रेरित करना (द्रोण. १४२ । ६४-६५)। भूरिश्रवाको मुक्त होनेका वरदान (द्रोण. १४३ । ४८)। मायाद्वारा अन्धकारकी सृष्टि करके जयद्रथ वधके लिये अर्जुनको प्रेरित करना (द्रोण० १४६ । ६२-७२)। जयद्रथके सिरको उसके पिताकी गोदमें डालनेके लिये कहना और उसका रहस्य बताना (द्रोण०१४६ । १०४-११९, । जयद्रथ वधके पश्चात् मायारूपी अन्धकारको समेट लेना ( द्रोण. १४६ । १३२)। कर्णके साथ अर्जुनको युद्ध करनेसे मना करना (द्रोण. १४७ । ३३-३६ ) । जयद्रथ-वधके बाद अर्जुनको बधाई देना (द्रोण० ११८ । २५-३२)। अर्जुनको संग्रामका दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिरके पास ले जाना (द्रोण० १४८ । ३६-५९ ) । जयद्रथ-वधके बाद युधिष्ठिरको विजयका समाचार बताना (द्रोण. १४९।२)। युधिष्ठिरके क्रोधको ही शत्रु-वध कारण बताना (द्रोण. १४९ । ४५-५१)। युधिष्ठिरको द्रोणाचार्यके साथ युद्ध करनेसे रोकना (द्रोण. १६२ । ४७-५१ )। आधी रातके समय कर्णके साथ अर्जुनके युद्धका अनौचित्य बताकर घटोत्कचको भेजनेके लिये अनुमति देना (१७३ । ३५-४१)। घटोत्कचको कणके साथ युद्ध करनेके लिये आदेश देना (द्रोण. १७३ । ४५-५८)। अर्जुनसे भिन्न-भिन्न महारथियोंका सामना करनेके लिये व्यवस्था बताना (द्रोण. १७७ । ३३-३६)। अलायुधका वध करनेके लिये घटोत्कचको प्रेरित करना ( द्रोण० १७८ । २-३) । अर्जुनद्वारा घटोत्कचके वधसे प्रसन्नताका कारण पूछे जानेपर कर्णकी प्रशंसा करते हुए अपनी प्रसन्नताका कारण बताना (द्रोण. १८०। ११-३३)। अर्जुनसे जरासंध आदि धर्मद्रोहियोंके वधका कारण बताना (द्रोण. १८१ । २-३३)। सात्यकिसे कर्णद्वारा अर्जुनपर शक्ति न छोड़े जानेका कारण बताना (द्रोण. १८२ । ३५-४६)। घटोत्कच वधसे दुखी युधिष्ठिरको समझाना (द्रोण. १८३ | २४-२६)। द्रोणाचार्य के वधकी युक्ति बताना (द्रोण० १९० । १०-१२) । युधिष्ठिरको छलपूर्वक अश्वत्थामाके मारे जानेकी झूठी बात कहनेको विवश For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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