________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कृष्ण
www.kobatirth.org
( ८२ )
( वस्त्रोंकी रक्षा करना ), ५९ - द्यूतविशेष (जुआ खेलना ), ६० - आकर्षण -क्रीड़ा ( पासा आदि फेंकना ), ६१ - बालक्रीडाकर्म ( लड़का खेलाना ), ६२ - - वैनायिकीविद्या -ज्ञान ( विनय और शिष्टाचार, इल्मे इखलाक वो आदाब ), ६३ - वैजयिकी विद्याज्ञान, ६४ – वैतालिकी विद्याज्ञान || - हिंदी शब्दसागरसे श्रीकृष्णको गदा और परिधके युद्ध में तथा सम्पूर्ण अस्त्रशस्त्रों के ज्ञानमें उत्कृष्ट स्थानकी प्राप्ति और समस्त लोकों में उनकी ख्याति ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८०३) । इनका मथुरा छोड़कर द्वारका में जाना तथा इनके द्वारा बड़े-बड़े असुरोंका वध ( सभा० ३८ । पृष्ठ,८०४) । भौमासुर को मारने के लिये इनसे इन्द्रकी प्रार्थना (सभा० ३८ | पृष्ठ ८०६) श्रीकृष्णद्वारा नरकासुरको मारकर माता अद्वितिके कुण्डल ला देने की प्रतिज्ञा । इनके द्वारा मुरनामक असुर, निशुम्भ, हयग्रीव, विरूपाक्ष, पञ्चजन तथा नरकासुर का वध ( सभा ० ३८ | पृष्ठ ८०७) । भूमिद्वारा इनको कुण्डल-दान ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८०८) । मणिपर्वत पर बने हुए, नरकासुर के अन्तःपुरमें इनका प्रवेश तथा नरकासुर द्वारा अपहरण करके लायी हुई कन्याओंकी गान्धर्व विवाह करने के लिये भगवान् से प्रार्थना ( सभा० ३८ । पृष्ठ ८०८-८१०) । उनकी प्रार्थना स्वीकार करके श्रीकृष्णका उन्हें द्वारका भेजना ( सभा० ३८ । पृष्ठ ८११) । इनका मणिपर्वतको गरुडपर लादकर बलरामजी और इन्द्रके साथ स्वर्गलोक में जाना, मेरुपर्वतके मध्यशिखरपर पहुँचकर श्रीकृष्ण द्वारा देवस्थानों का दर्शन; फिर देवलोक में जाकर इन्द्रभवन के निकट इनका गरुड़से उतरना, देवताओंद्वारा इनका स्वागत तथा इनका माता अदिति के चरणों में प्रणाम करके उन्हें उनके कुण्डल अर्पित कर देना ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८११ ) | 'देवमाता अदिति और इन्द्रपत्नी शचीद्वारा श्रीकृष्ण एवं सत्यभामाका सत्कार तथा वहाँसे लौटकर इन सबका द्वारकामें आगमन ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८१२ ) । इनके द्वारा मणिपर्वत ( प्राग्ज्योतिषपुर ) से लायी गयी धनराशिका वृष्णिवंशियों में वितरण ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८१८ ) । इन्द्रद्वारा श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन (सभा० ३८ | पृष्ठ ८१९ ) । शोणितपुर में इनका शिवजी से युद्ध और उनकी पराजय ( सभा० ३८ । पृष्ठ ८२३) । इनके द्वारा बाणासुरकी भुजाओंका छेदन (सभा० ३८ | पृष्ठ ८२३) । इनका रुक्मीको भयभीत करना, जाली में आहुति, क्राथ और शिशुपालको पराजित करना, शैव्य, दन्तवक्र तथा शतधन्वाको भी हराना; इन्द्रद्युम्न, कालयवन, कशेरुमान्का वध करना। द्युमत्सेनके साथ इनका युद्ध, महाबली गोपति और तालकेतुका इनके द्वारा वध, पाण्डय, पौण्ड्र, मत्स्य, कलिङ्ग और अङ्ग आदि अनेक देशों के राजाओंकी एक साथ ही पराजय ( सभा० ३८ | पृष्ठ २.८२४)। इनके द्वारा बभ्रु की पत्नीका उद्धार; पीठ, कंस, पैठक ' तथा अतिलोमा नामक असुरोंका वधः जम्भ, ऐरावत, विरूप और शम्बर आदि असुरोंका वधःभोगवती में वासुकि नागको
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
कृष्ण
जीतकर इनके द्वारा रोहिणीकुमार गदका उद्धार ( सभा० |३८|पृष्ठ ८२५) । इनकी गोदमें आते ही शिशुपालकी दो भुजाओ तथा तीसरी आँख का विनाश ( सभा० ४३ । १८ ) । " शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा कर दूँगा' ऐसा कहकर इनका श्रुतश्रवा ( अपनी बुआ ) को आश्वासन ( सभा० ४३ । २४ ) । इनके द्वारा शिशुपालका वध ( सभा० ४५ | २५ ) | यज्ञकी समाप्तिपर श्रीकृष्णद्वारा युधिष्ठिरका अभिनन्दन ( सभा० ४५ । ३९ - ४३ ) | राजसूय यज्ञमें ऋषियों सहित श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिरका अभिषेक किया (सभा० ५३ । १५-१६ ) | द्रौपदीकी लाज रखनेके लिये इनका अव्यक्तरूपसे उसके चीर में प्रवेश करके उसे बढ़ाना (सभा० ६८ । ४७ ) । इनके द्वारा रोती हुई द्रौपदीको आश्वासनप्रदान ( वन० १२ । १२८ - १३२ ) । इनका जुए के दोष बताते हुए पाण्डवोंपर आयी हुई विपत्ति में अपनी अनुपस्थितिको कारण मानना ( वन० १३ अध्याय ) । इनके द्वारा शाल्व के साथ युद्ध करने तथा सौभ विमान महित उसके नष्ट करनेका संक्षिप्त वर्णन ( वन० १४ अ० से २२ अध्यायतक ) । इनका शाल्वके साथ भीषण युद्ध ( वन० २० अध्याय ) । इनका शाल्वकी माया से मोहित होना ( वन० २१ । २२) | श्रीकृष्णद्वारा सौभविमान सहित शाल्वका वध (वन० २२ । ३६-३७) । इनका पाण्डवोंसे सम्मानित हो सुभद्रा और अभिमन्युको साथ लेकर द्वारकाको प्रस्थान (वन० २२ । ४७-४८) । प्रभासक्षेत्र में पाण्डवोंसे भेंट और सात्यकिंके वचनोंका इनके द्वारा समर्थन ( वन ०१२०/२३२६ ) । काम्यकवनमें पाण्डवों के पास इनका आगमन और इनके द्वारा उन्हें आश्वासन ( वन० १८३ | १६-३६)। मार्कण्डेयजीको कथा कहनेके लिये प्रेरित करना ( वन० १८३ । ५० ) । द्रौपदीके स्मरण करनेपर पाण्डवों के आश्रम में प्रकट होना, बटलोईमेंसे सागका पत्ता खाकर त्रिलोकीको तृप्त करना ( वन० २६३ । १८-२५ ) । उपप्लव्यनगर में अभिमन्युके विवाहके अवसरपर जाकर युधिष्ठिर को बहुत-साधन भेंट करना ( विराट० ७२ । २४२५ ) । राजा विराटकी सभा में कौरवों के अत्याचार और पाण्डवों के धर्म-व्यवहारका वर्णन करते हुए किसी सुयोग्य दूतको कौरवों के यहाँ भेजने का प्रस्ताव ( उद्योग ० १ अध्याय)। द्रुपदको कार्यभार सौंपकर इनका द्वारकाको प्रस्थान ( उद्योग० ५ । ११ ) । दुर्योधन और अर्जुन दोनोंकी सहायता करने के लिये स्वीकृति देना ( उद्योग० ७ । १६ ) । अर्जुनका सारथ्य कर्म स्वीकार करना ( उद्योग० ७ । ३८ ) । संजयको प्रत्युत्तर देते हुए इनके द्वारा कर्मयोगका समर्थन ( उद्योग ० २९ । ६-१६ ) । इनके द्वारा वर्णधर्मका निरूपण ( उद्योग० २९ । २२-२६ ) । कौरवों के अन्यायका उद्घाटन करते