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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालरात्रि काशि सिलिकनी सभा २३)। तेजसे उत्पन्न एवं अत्यन्त शक्तिशाली असुर था उसे अन्यत्र चले जानेका आदेश दिया (सभा० ३८ । (शान्ति० ३३९ । ९५)। २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ८००, कालम १)। कालरात्रि-मृत्युकी रातकी अधिष्ठात्री, जिसे सौप्तिक- काली-वेदव्यासकी माता सत्यवती (आदि०६०।२)। आक्रमणके समय पाण्डवपक्षके योद्धाओंने प्रत्यक्ष देखा कालीयक-एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५। १०)। था। उसके स्वरूपका वर्णन (सौप्तिक.८ । ६९-८४)। कालेय-इसी नामसे प्रसिद्ध दैत्यगण ( आदि० ६७ । कालवेग-वासुकिकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके ४७-५५)। इनके द्वारा वसिष्ठ, च्यवन, भरद्वाज आदि सर्पसत्रमें जल मरा था (आदि. ५७ । ६)। मुनियोंके आश्रमोंपर जाकर ऋषियोंका भक्षण (वन० कालशैल-उत्तराखण्डकी एक पर्वतमाला (वन० १३९।१)। १०२ । ३-६)। देवताओंद्वारा इनका वध ( वन० १०५।१०)। कुछ कालेय पातालमें भाग गये (वन० काला-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी, कालकेय १०५। १२)। नामक असुरोंकी माता ( आदि. ६५ । १२, कालेहिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । कालाप-एक धर्मज्ञ जितेन्द्रिय ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे ( सभा० ४ । १८)। कालोदक-एक तीर्थ जहाँ सौ योजन दूरसे आकर नहानेवाले कालाम्र-भद्राश्ववर्षके शिखरपर स्थित भद्रशालवनमें सुशो मनुष्यकी भ्रूणहत्या दूर हो जाती है ( अनु० २५ ॥६०)। भित एक महान् वृक्ष, जो एक योजन ऊँचा है। उसमें इसमें स्नानसे दीर्घायु प्राप्त होती है (शान्ति० १५२ । सदा फल-फूल लगे रहते हैं। उसका रस पीकर भद्राश्व १२-१३)। वर्षके स्त्री-पुरुष सदा जवान बने रहते हैं और सिद्ध कावेरी-एक उत्तम तीर्थभूत नदी, जो वरुण सभामें रहकर तथा चारण सदा उस वृक्षके आस-पास रहते हैं (भीष्म. उनकी उपासना करती है ( सभा० ५। २०)। (यह ७ । १४-१८)। दक्षिण भारतकी प्रसिद्ध नदी है । इसके तटपर श्रीरङ्गक्षेत्र, कालिक-पूषाद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से एक, त्रिचनापल्ली तथा कुम्भकोणम् आदि प्रख्यात नगर एवं दुसरेका नाम पाणीतक' था (शल्य० ४५४४३-४४)। तीर्थ हैं। ) इसमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है (वन० ८५ । २२)। कालिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।१४)। काव्य-प्रजापति कविके आठ वारुणसंज्ञक पुत्रों से एक कालिकाश्रम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान और तीन रात (अनु०८५। १३३ )। निवास करनेसे मनुष्य जन्म-मरणके चक्करसे छूट जाता है काश-काशके अभिमानी देवता, जो यमकी सभामें धर्म(अनु० २५ । २४)। राजकी उपासना करते हैं (सभा० ८ । ३२)। कालिकासंगम-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मानव सब पापोंसे छूट जाता है मस मे का नाता काशि-(१) एक भारतीय जनपद ( वर्तमान काशीराज्य (वन०८४ । १५६)। तथा वाराणसीमण्डल)। जिसपर पाण्डुने विजय प्राप्त की थी ( आदि. ११२ । २९, भीष्म ९ । ५२)। कालिकेय-सुबलका पुत्र, जो अभिमन्युद्वारा निहत हुआ भीमसेनने काशीमें उस देशके राजाकी कन्या बलन्धराके था (द्रोण० ४९ । ७)। साथ ब्याह किया (आदि० ९५ । ७७)। भीमसेनने कालिङ्ग-कलिङ्ग देशका राजा श्रुतायुध, जो युधिष्ठिरको इसपर विजय प्राप्त की (सभा० ३० । ६, उद्योग सभामें विराजमान होता था (सभा० ४ । २६)। ५० । १९)। सहदेवने भी काशिदेशपर विजय पायी थी इसीका नाम श्रतायु भी था (सभा० ५१ । ७ के बाद (उद्योग० ५०।३१)। इस काशिदेशके महारथीराजा दाक्षिणात्य पाठ)। वाराणसीमें रहते थे और पाण्डवपक्षके योद्धा थे (उद्योग कालिन्दी-कलिन्दगिरिनन्दिनी यमुना । ये अन्य सरिताओं ५०। ४१; उद्योग० १९६ । २)। अर्जुनने भी इस के साथ खयं भी वरुणसभामें पदार्पण करती हैं ( सभा. देशको जीतकर अपने वशमें किया था (आदि० १२२ । ९।१८)।(विशेष देखिये यमुना)। ४०)। श्रीकृष्णने इस देशको जीता था (द्रोण. कालिय-एक प्रमुख नाग (आदि०३५ । ६)। वृन्दावन- ११।१५)। कर्णने दुर्योधनके लिये इस देशको वशमें में कदम्बवनके पास जो हृद था, उसमें प्रवेश करके किया था (कर्ण० ८ । १९)। काशिदेशपर हर्यश्व राजा श्रीकृष्णने कालियनागके मस्तकपर नृत्यक्रीडा की और हुए, इनके बाद सुदेव, फिर दिवोदास (अनु. ३० । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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