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कालरात्रि
काशि
सिलिकनी सभा
२३)।
तेजसे उत्पन्न एवं अत्यन्त शक्तिशाली असुर था उसे अन्यत्र चले जानेका आदेश दिया (सभा० ३८ । (शान्ति० ३३९ । ९५)।
२९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ८००, कालम १)। कालरात्रि-मृत्युकी रातकी अधिष्ठात्री, जिसे सौप्तिक- काली-वेदव्यासकी माता सत्यवती (आदि०६०।२)।
आक्रमणके समय पाण्डवपक्षके योद्धाओंने प्रत्यक्ष देखा कालीयक-एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५। १०)। था। उसके स्वरूपका वर्णन (सौप्तिक.८ । ६९-८४)।
कालेय-इसी नामसे प्रसिद्ध दैत्यगण ( आदि० ६७ । कालवेग-वासुकिकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके ४७-५५)। इनके द्वारा वसिष्ठ, च्यवन, भरद्वाज आदि सर्पसत्रमें जल मरा था (आदि. ५७ । ६)।
मुनियोंके आश्रमोंपर जाकर ऋषियोंका भक्षण (वन० कालशैल-उत्तराखण्डकी एक पर्वतमाला (वन० १३९।१)। १०२ । ३-६)। देवताओंद्वारा इनका वध ( वन०
१०५।१०)। कुछ कालेय पातालमें भाग गये (वन० काला-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी, कालकेय
१०५। १२)। नामक असुरोंकी माता ( आदि. ६५ । १२,
कालेहिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । कालाप-एक धर्मज्ञ जितेन्द्रिय ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे ( सभा० ४ । १८)।
कालोदक-एक तीर्थ जहाँ सौ योजन दूरसे आकर नहानेवाले कालाम्र-भद्राश्ववर्षके शिखरपर स्थित भद्रशालवनमें सुशो मनुष्यकी भ्रूणहत्या दूर हो जाती है ( अनु० २५ ॥६०)। भित एक महान् वृक्ष, जो एक योजन ऊँचा है। उसमें इसमें स्नानसे दीर्घायु प्राप्त होती है (शान्ति० १५२ । सदा फल-फूल लगे रहते हैं। उसका रस पीकर भद्राश्व
१२-१३)। वर्षके स्त्री-पुरुष सदा जवान बने रहते हैं और सिद्ध कावेरी-एक उत्तम तीर्थभूत नदी, जो वरुण सभामें रहकर तथा चारण सदा उस वृक्षके आस-पास रहते हैं (भीष्म. उनकी उपासना करती है ( सभा० ५। २०)। (यह ७ । १४-१८)।
दक्षिण भारतकी प्रसिद्ध नदी है । इसके तटपर श्रीरङ्गक्षेत्र, कालिक-पूषाद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से एक, त्रिचनापल्ली तथा कुम्भकोणम् आदि प्रख्यात नगर एवं दुसरेका नाम पाणीतक' था (शल्य० ४५४४३-४४)।
तीर्थ हैं। ) इसमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल
मिलता है (वन० ८५ । २२)। कालिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।१४)।
काव्य-प्रजापति कविके आठ वारुणसंज्ञक पुत्रों से एक कालिकाश्रम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान और तीन रात
(अनु०८५। १३३ )। निवास करनेसे मनुष्य जन्म-मरणके चक्करसे छूट जाता है
काश-काशके अभिमानी देवता, जो यमकी सभामें धर्म(अनु० २५ । २४)।
राजकी उपासना करते हैं (सभा० ८ । ३२)। कालिकासंगम-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मानव सब पापोंसे छूट जाता है
मस मे का नाता काशि-(१) एक भारतीय जनपद ( वर्तमान काशीराज्य (वन०८४ । १५६)।
तथा वाराणसीमण्डल)। जिसपर पाण्डुने विजय प्राप्त की
थी ( आदि. ११२ । २९, भीष्म ९ । ५२)। कालिकेय-सुबलका पुत्र, जो अभिमन्युद्वारा निहत हुआ
भीमसेनने काशीमें उस देशके राजाकी कन्या बलन्धराके था (द्रोण० ४९ । ७)।
साथ ब्याह किया (आदि० ९५ । ७७)। भीमसेनने कालिङ्ग-कलिङ्ग देशका राजा श्रुतायुध, जो युधिष्ठिरको
इसपर विजय प्राप्त की (सभा० ३० । ६, उद्योग सभामें विराजमान होता था (सभा० ४ । २६)।
५० । १९)। सहदेवने भी काशिदेशपर विजय पायी थी इसीका नाम श्रतायु भी था (सभा० ५१ । ७ के बाद
(उद्योग० ५०।३१)। इस काशिदेशके महारथीराजा दाक्षिणात्य पाठ)।
वाराणसीमें रहते थे और पाण्डवपक्षके योद्धा थे (उद्योग कालिन्दी-कलिन्दगिरिनन्दिनी यमुना । ये अन्य सरिताओं
५०। ४१; उद्योग० १९६ । २)। अर्जुनने भी इस के साथ खयं भी वरुणसभामें पदार्पण करती हैं ( सभा.
देशको जीतकर अपने वशमें किया था (आदि० १२२ । ९।१८)।(विशेष देखिये यमुना)।
४०)। श्रीकृष्णने इस देशको जीता था (द्रोण. कालिय-एक प्रमुख नाग (आदि०३५ । ६)। वृन्दावन- ११।१५)। कर्णने दुर्योधनके लिये इस देशको वशमें में कदम्बवनके पास जो हृद था, उसमें प्रवेश करके किया था (कर्ण० ८ । १९)। काशिदेशपर हर्यश्व राजा श्रीकृष्णने कालियनागके मस्तकपर नृत्यक्रीडा की और हुए, इनके बाद सुदेव, फिर दिवोदास (अनु. ३० ।
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