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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वती-अरुणा-सङ्गम ( ३७२ ) सवन mance विश्वामित्रद्वारा इसे शापकी प्राप्ति (शल्य० ४२।३८-३९)। सर्पिर्माली-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे ऋषियोंके प्रयत्नसे शाप-मुक्ति (शल्य० ४३ । १६)। (सभा० ४ । १०)। महर्षि दधीचके वीर्यको धारण करके पुत्र पैदा होनेपर सर्व भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम और उसकी निरुक्ति उन्हें सौंपना (शल्य. ५१ । १३-१४) । महर्षिद्वारा (उद्योग. ७०।१२)। इसे वरदान-प्राप्ति (शल्य. ५१।१७-२३)। बलराम सर्वकर्मा-सौदासका एक पुत्र, जो परशुरामजीद्वारा किये गये जीद्वारा इसकी महिमाका वर्णन (शल्य० ५४ । ३८. . क्षत्रिय संहारके समय पराशरमुनिद्वारा रक्षित हुआथा । पृथ्वी३९) । अर्जुनने सात्यकिके पुत्रको इसके तटवर्ती प्रदेश द्वारा कश्यपजीको इसका पता दिया गया (शान्ति० ४९ । का अधिकारी बनाया (मौसल० ८ । ७१)। श्रीकृष्णकी ७६-७७)। सोलह हजार पत्नियोंने सरस्वती नदीमें कूदकर अपने प्राण दे दिये (स्वर्गा० ५। २५)।(३) मनुकी पत्नीका सर्वकामदुघा-सुरभिकी धेनुस्वरूपा कन्या, जो उत्तरको नाम ( उद्योग० ११७ । १४)। धारण करनेवाली है (उद्योग० १०२ । १०)। सरखती-अरुणा-सङ्गम-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक सर्वग-भीमसेनके द्वारा बलन्धराके गर्भसे उत्पन्न हुआ लोकविख्यात पवित्र तीर्थ, जहाँ स्नान करके तीन रात उप- पुत्र ( आदि० ९५। ७७)। वास करनेपर ब्रह्महत्यासे छुटकारा मिल जाता है । वह सर्वतोभद्र–जलेश्वर वरुण देवताका समृद्धिशाली निवासअमिष्टोम और अतिरात्र यज्ञोंसे मिलनेवाले फलको भी स्थान ( उद्योग० ९८ । १०)। पा लेता और अपने कुलकी सात पीढ़ियोंको पवित्र कर सर्वदमन-शकुन्तलाका वीर पुत्र भरत ( आदि० ७३ । देता है (वन० ८३ । १५१-१५३)। )। (विशेष देखिये-भरत ) सरस्वतीसङ्गम-एक परम पुण्यमय लोकविख्यात तीर्थ, सर्वदेवतीर्थ-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक तीर्थ जहाँ ब्रह्मा आदि देवता तथा तपोधन महर्षि भगवान् जिसमें स्नान करनेसे मानव सहस्र गोदानका फल पाता केशवकी उपासना करते हैं । वहाँ चैत्र शुक्ला चतुर्दशीको है (वन० ८३ । ८८-८९)। विशेष यात्रा होती है । वहाँ स्नानसे प्रचुर सुवर्णकी प्राप्ति सर्वदेववाद-एक तीर्थ, जिसमें लान करनेसे सहस्र गोदानहोती है और पापरहित शुद्धचित्त हुआ मनुष्य ब्रह्मलोकमें का फल मिलता है (वन० ८५ । ३९)। जाता है (वन० ८२ । १२५-१२७)। सर्वपापप्रमोचन कृप-समस्त पापोको दूर करनेवाला एक सरखती-सागरसङ्गम-पश्चिम समुद्रके तटपर जहाँ कप, जो नारायणस्थानमें है। उसमें सदा चारों समुद्र सरस्वती और समुद्रका संगम हुआ है, वह तीर्थ, वहाँ जाकर निवास करते हैं। उस तीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्य कभी स्नान करके देवेश्वर महादेवजीकी आराधना करनेसे । दुर्गतिमें नहीं पड़ता (वन०८४ । १२६-१२७)। चन्द्रमाको अपनी खोयी हुई कान्ति पुनः प्राप्त हुई थी (शल्य. ३५। ७७)। (यहीं सोमनाथ एवं प्रभास. सर्वतुक-रैवतक पर्वतके समीप शोभा पानेवाला एक वन क्षेत्र है।) (सभा० ३८।२९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८१३)। सरिद्वीप-गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग. सर्वसारङ्ग-धृतराष्ट्र-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय१०१।११)। के सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । १८)। सर्प-ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक, ब्रह्माजीके पौत्र एवं स्थाणुके पुत्र सर्वसेन-काशीके एक राजा, जिनकी पुत्री सुनन्दाके साथ (आदि० ६६ । २)। सम्राट भरतने विवाह किया था । सुनन्दाके गर्भसे जो सर्पदेवी-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ इनका दौहित्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम भुमन्यु था जाकर उत्तम नागतीर्थका सेवन करनेसे मनुष्य अग्निष्टोमका (आदि० ९५ । ३२)। फल पाता और नागलोकमें जाता है ( वन० ८३ । सर्वा-एक पवित्र नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं १४-१५)। (भीष्म० ९ । ३६)। सर्पमाली- एक दिव्य महर्षि, जो हस्तिनापुर जाते समय श्रीकृष्णसे मार्गमें मिले थे ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद सलिलहद-एक तीर्थ, जिसमें ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक गोतालगाने से अश्वमेधयज्ञका फल मिलता है (अनु० २५।१४)। दाक्षिणात्य पाठ)। सर्पान्त-गरुड़की प्रमुख संतानोंकी परम्परामें उत्पन्न एक सवन-महर्षि भृगुके सात पुत्रों से एक ( इनकी वारुण' पक्षी (उद्योग० १०१ । १२)। संज्ञा है।) (अनु०८५ । १२९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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