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शोणितपुर
( ३५८ )
श्रावस्त
शोणितपुर-बाणासुरकी राजधानी । शिव, कार्तिकेय, भद्र- श्येनजित्-(१) इचाकुवंशीय राजा दलका पुत्र, जो काली देवी और अग्नि आदि देवता इस नगरीकी रक्षा पिताका अत्यन्त प्यारा था (वन० १९२ । ६३)। करते थे । भगवान् श्रीकृष्णने इन सबको जीतकर उत्तर (२) एक महारथी राजा, जो भीमसेनके मामा थे द्वारमें प्रवेश किया। वहाँ शङ्करजीको भी युद्ध के द्वारा (उद्योग० १४१ । २७)। परास्त करके वे उस श्रेष्ठ नगरमें गये । वहाँ उन्होंने श्येनी-ताम्राकी पुत्री, इसने बाज-पक्षियोंको जन्म दिया था बाणासुरकी भुजाओंको काटकर उसे पराजित किया तथा
(आदि ० ६६ । ५६-५७)। यह गरुड़के बड़े भाई अनिरुद्ध और ऊषाको बन्धनमुक्त किया ( सभा०
अरुणकी भार्या थी। इसके गर्भसे दो महाबली पुत्र उत्पन्न ३८ । २९के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८२१)।
हुए, जिनका नाम था सम्पाती और जटायु (आदि०६६ । शोणितोद-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी ६९-७०)।
सेवामें उपस्थित होता है (सभा० १०।७)। श्रद्धा-(१) दक्षप्रजापतिकी पुत्री और धर्मकी पत्नी । शोभना-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शक्य०४६।६)। ब्रह्माजीने धर्मकी दसों पत्नियों को धर्मका द्वार निश्चित शौण्डिक-एक जाति, इस जातिके लोग पहले क्षत्रिय थे,
किया है (आदि. ६६। १३-१५) । (२) यह किंतु ब्राह्मणोंके अमर्षसे नीच हो गये ( अनु० ३५। सूर्यकी पुत्री है, अतः इसे वैवस्वती, सावित्री तथा प्रसवित्री १७-१८)।
कहते हैं (शान्ति० २६४ । ८)। ( विशेष देखिये शौनक-(१) भृगुवंशमें उत्पन्न एक महर्षि, जो नैमिषा- सावित्री) रण्यवासी तथा वहाके आश्रमके कुलपति थे । इनके श्रवण-सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे एक । श्रवण नक्षत्र आनेपर जो द्वादशवार्षिक यज्ञमें उग्रश्रवाका आना और महाभारतकी मनुष्य वस्त्रवेष्टित कम्बल दान करता है, वह श्वेत विमानके कथा सुनाना (आदि.१ । १९)। ये भृगुवंशी
द्वारा खुले हुए स्वर्ग में जाता है ( अनु० ६४ । २८)। शुनकके पुत्र हैं (अनु० ३० । ६५)।
श्रवण नक्षत्रमें श्राद्धका दान करनेवाला मानव मृत्युके महाभारतमें आये हुए शौनकके नाम-भार्गव, भार्गवोत्तम, पश्चात् सद्गतिको प्राप्त होता है (अनु. ८९ । ११)।
भृगुशार्दूल, भृगूदह, भृगुकुलोद्वह) भृगुनन्दन आदि । चन्द्रव्रत करनेवाले साधकको श्रवण-नक्षत्रमें चन्द्रमाके (२) युधिष्ठिरके वनगमनके समय उनके साथ कानकी भावना करके उसकी पूजा करनी चाहिये (अनु०
चलनेवाले एक विप्र । इनके द्वारा युधिष्ठिरके प्रति विवेकी- ११०।७)। * अविवेकीकी गतिका वर्णन (वन० २ । ६४-८१)। श्रवा-गृत्समदवंशी महर्षि संतके पुत्र, जो तमके पिता हैं इनके द्वारा युधिष्ठिरको तप करनेका आदेश (वन० (अनु० ३० । ६३)। २। ८२-८४)
श्राद्धपर्व-स्त्रीपर्वके अन्तर्गत एक अवान्तर पर्व (अध्याय शौरि-शूरके पुत्र वसुदेव (द्रोण. १४४ । ७)।
___२६ से २७ तक)। ( देखिये वसुदेव) श्याम-शाकद्वीपका एक महान पर्वत, जो मेघके समान श्याम
श्राव-ये इक्षाकुवंशी महाराज युवनाश्वके पुत्र थे । इनके तथा बहुत ऊँचा है। वहाँ रहने से वहाँकी प्रजा श्यामताको पुत्रका नाम श्रावस्त था (वन० २०२ । ३-४)। प्राप्त हुई है (भीष्म० ११ । १९-२०)। श्रावण-(बारह महीनों से एक । जिस मासकी पूर्णिमाको श्यामायन-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु. श्रवण नक्षत्रका योग होता है, उसे श्रावण कहते हैं। यह ४। ५५)।
आषाढके बाद और भाद्रपदके पहले आता है।) जो मन श्यामाश्रम-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ स्नान निवास और एक और इन्द्रियों को संयममें रखकर श्रावण मासको प्रतिदिन पक्षतक उपवास करनेसे अन्तर्धानरूप फलकी प्राप्ति होती एक समय भोजन करके बिताता है, वह विभिन्न तीर्थोमें है ( अनु० २५ । ३.)।
स्नान करनेके पुण्य-फलको पाता और अपने कुटुम्बीजनोंकी श्येन-(१) पक्षियोंकी एक जाति, जो ताम्राकुमारी श्येनीकी वृद्धि करता है (अनु० १०६ । २७) । श्रावणमासकी
संतान है ( आदि. ६६ । ५६-५७)। (२) एक द्वादशी तिथिको दिन-रात उपवास करके जो भगवान् प्राचीन ऋषि, जो इन्द्रकी समामें विराजमान होते हैं। श्रीधरकी आराधना करता है, वह पाँच महायोंका फल (सभा०७।११)।
पाता है और विमानपर बैठकर सुख भोगता है (अनु. श्येनचित्र-एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने अपने जीवनमें कभी १०९।११)। मांस नहीं खाया था (अनु० ११५।६३)। श्रावस्त-ये इक्ष्वाकुवंशी महाराज श्रावके पुत्र थे । इनके
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