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शर्याति
( ३४२ )
शल्य
यमराजने निषेध कर दिया था (भनु. ६८ -८)। वीरोंके साथ ये भी गङ्गाजीसे प्रकट हुए थे (आश्रम यमदूत उसी ब्राह्मणको ले गये, जिसे यमराजने मना किया ३२।१.)। मृत्युके पश्चात् विश्वेदेवोंमें मिल गये था। यमराजने उसकी पूजा करके उसे घर जानेकी आज्ञा (स्वर्गा० ५ । १६-१८) । (४) इक्ष्वाकुवंशी दी। साथ ही उसके पूछनेपर महान् पुण्यदायक कर्मके राजा परीक्षित्के पुत्र, इनकी माता मण्डूकराजकी कन्या प्रसंगमें तिलदान, अन्नदान और जलदानकी विशेष सुशोभना थी । इनके दो भाई और थे, जिनका नाम था महिमा बतायी (अनु. ६८ । १०-२२)। यमदूतने दल और बल | पिताद्वारा इनका राज्याभिषेक (वन. पहले लाये हुएको उसके घर पहुंचा दिया और दूसरेको १९२ । ३८)। इनका महर्षि वामदेवसे वाम्य अश्वोंकी साथ लाकर यमराजको इसकी सूचना दी। यमराजने याचना करना और पुनः लौटा देनेके शर्तपर इन्हें उन उसकी भी पूजा करके उसे विदा किया और उसके लिये अश्वोंकी प्राप्ति (वन० १९२ । ४३)। अश्वोको भी पूर्वोक्त सारा उपदेश दिया, वहाँसे लौटनेपर शर्मीने लौटानेके विषयमें इनका महर्षि वामदेवसे संवाद (वन. यमराजके बताये अनुसार सारा कार्य किया (अनु०६८ १९२ । ४८-५६) । अश्वोके न लोटानेपर महाष २४-२६)।
वामदेवद्वारा उत्पन्न किये गये राक्षसोंके प्रहारसे इनका शर्याति-एक प्राचीन नरेश (आदि० ।। २२६)। ये वध ( वन० १९२।५७-५९)। वैवस्वत मनुके पुत्र थे (आदि.७५। १६ अनः
शलकर-तक्षक-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके ३०।६)। राजा शर्याति यमसभामें रहकर वैवस्वत सर्पसत्रमें जल मरा था (आदि० ५७ । १)। यमकी उपासना करते हैं (सभा०८।१४)। इनके द्वारा व्यवन ऋषिको अपनी कन्या सकन्याका दान शलभ-(१) दनुके विख्यात चौंतीस पुत्रों से एक (वन० १२२ । २६)। महर्षि च्यवनद्वारा इनके यज्ञका
(भादि. ६५ । २६)। यह बाहीकराज प्रहादके रूपमें सम्पादन और उसमें अश्विनीकुमारोंका सोमपान (बन.
पृथ्वीपर उत्पन्न हुआ था (आदि. ६७।३०-३१)। १२४, १२५ अध्याय)। इनके वंशमें दो विख्यात
(२) पाणवरक्षका एक महारथी योद्धा, जो कर्णद्वारा
मारा गया (कर्ण० ५६ । ४९-५०)। राजा हुए थे-हैहय और तालजङ्घ (अनु. ३० । ६-७)।
शलभी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्प० ४६ । शयोतिवन-एक पवित्र वनस्थली, जो स्वप्नमें श्रीकृष्णसहित २१)।
को मार्गमें मिली थी शल्य-बाहीक (एवं मद्र) देशके श्रेष्ठ राजा, (द्रोण ८० । ३३)।
जिनके रूपमें हिरण्यकशिपुका पुत्र एवं प्रहादका शल-(१) वासुकि-वंशमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके अनुज संह्राद ही इस भूतलपर उत्पन्न हुआ था
सर्पयज्ञमें दग्ध हो गया था (आदि. ५७।५)। ( आदि० ६७ । ६ )। इनके द्वारा भीष्मका (२) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि०१६ सत्कार और पाण्डुके लिये उनको माद्रीका समर्पण ४)। इसका भीमसेनपर आक्रमण करना (द्रोण. (आदि० ११२।३-१६)। मद्रराज शल्य अपने १२७।३४, कर्ण०५१।८-९)। इसका भीमसेनके पुत्र वीर रुक्माङ्गद तथा रुक्मरथके साथ द्रौपदीके साथ युद्ध और उनके द्वारा वध (कर्ण० ८४।३-६)।
स्वयंवरमें पधारे थे ( आदि १८५ । १.१४)। (३) कुरुवंशी राजा सोमदत्तके पुत्र और भूरिक्षवाके
द्रौपदीके स्वयंवर में मत्स्यवेधके लिये धनुषको चढा न सके भ्राता, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें गये थे (आदि. १८५। (आदि०१८६ । २८) द्रौपदीके स्वयंवरमें भीमसेन द्वारा १५)। ये युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें गये थे (सभा० इनकी पराजय (आदि० १८९ । २३-२९)। नकुल३४ । ८)। दुर्योधनकी सेनाके एक विशिष्ट योद्धा थे ने पश्चिम-दिग्विजयके समय मामा शल्यको प्रेमसे ही वशमें (उद्योग. ५५। ६३)। भीष्मद्वारा निर्मित महान् कर लिया। इन्होंने राजधानी में आनेपर नकुलका विशेष व्यूहमें वाम भागमें स्थित हो ये सारी सेनाकी रक्षा करते सत्कार किया (सभा० ३२ । १४-१६)। ये युधिष्ठिरहुए चल रहे थे (भीम. ५१ । ५.)। इन्होंने के राजसूय-यज्ञमें पधारे थे (समा. ३३।७)। अभिमन्युपर धावा किया था (द्रोण. ३७१५-२१)। शिशुपालने इन्हें श्रीकृष्णसे श्रेष्ठ बताया ( समा० ३७। इनके ध्वजका वर्णन (द्रोण. १०५ । २४-२५)। १४)। इन्होंने अभिषेकके समय युधिष्ठिरको अच्छी द्रौपदीकुमारोंके साथ इनका युद्ध (छोण. १०६।१५)। मूंठवाली तलवार दी तथा ठीकेपर रखा हुआ सुवर्णभूषित अतकर्माद्वारा इनका वध (द्रोण. १०८।१०)। कलश प्रदान किया (सभा० ५३ । १)। यतके लिये व्यासजीके आवाहन करनेपर मरे हुए अन्य कौरव. हस्तिनापुरमें आनेपर राजा युधिष्ठिर वहाँ पहलेसे ही पधारे
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