SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra खुषका www.kobatirth.org ( ३२६ ) का भाई था । इसके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण० ५ । ३३ ) । वृषका - भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । ३५ ) । वृषकाथ - कौरवपक्षका एक योद्धा, जो द्रोणाचार्यद्वारा निर्मित गरुडव्यूह के हृदयस्थानमें स्थित था (द्रोण० २० । १३ ) । वृषदंश - मन्दराचल के निकटका एक पर्वत, जो स्वप्न में श्रीकृष्णसहित शिवजीके पास जाते हुए अर्जुनको मार्गमै मिला था ( द्रोण० ८० । ३३ )। वृषदर्भ - ( १ ) एक प्राचीन राजर्षि, जो यम सभामें रहकर विवस्वान्- पुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा ० ८ । २६) । अपने राज्यकालमें इनका अपना एक गुप्त नियम था कि 'ब्राह्मणको सोने और चाँदीका ही दान दिया जाय' ( वन० १९६ । ३ ) । राजा सेन्दुकके कहने से एक ब्राह्मणका इनके पास आकर एक हजार घोड़े माँगना और इनका उस ब्राह्मणको कोसे पीटना ( बन० १९६ । ४ -८ ) । ब्राह्मणके इस मारका रहस्य पूछनेपर उसे बताना और अपने राज्यकी एक दिनकी आयका उसके लिये दान करना ( वन० १९६ । ९ - १३) । (२) काशि या काशी जनपदके राजा उशीनर, जिन्होंने शरणागत कपोतकी रक्षा की थी ( अनु० ३२ अध्याय ) । वृषध्वज- प्रवीरवंशका एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग० ७४ । १६)। वृषपर्वा - ( १ ) एक दानव, जो कश्यप द्वारा दनुके गर्भ से उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५ | २४ ) | यह दीर्घप्रज्ञ नामक राजाके रूपमें पृथ्वीपर उत्पन्न हुआ था ( आदि ० ६७ । १५-१६ ) । दैत्योंके पुरोहित शुक्राचार्य इसी के नगरमें रहते थे ( आदि० ७६ । १३-१४ ) । इसकी कन्याका नाम शर्मिष्ठा था ( आदि० ७८ । ६ )। शुक्राचार्य से अपने नगर में रहनेके लिये इसकी करुण प्रार्थना ( आदि० ८० । ७-८ ) । इसके प्रति इसकी पुत्री शर्मिष्ठाको आजीवन अपनी दासी बनानेके लिये देव. यानीका अनुरोध ( आदि० ८० । १६ ) । शर्मिष्ठाको बुलाने के लिये इसका धात्रीको भेजना ( आदि० ८० । १७ के बाद, दा० पाठ ) | ( २ ) एक प्राचीन राजर्षि, जिनके आश्रमपर जाने के लिये आकाशवाणीद्वारा पाण्डवोंको आदेश मिला था ( वन० १५६ । १५ ) । इनके द्वारा पाण्डवोंका स्वागत ( वन० १५८ । २० - २३ ) । इनका पाण्डवको उपदेश देना ( बन० २६-२७ ) । पाण्डवोंके प्रस्थान करते समय इन्होंने उन्हें ब्रह्मको सौंप दिया और स्वयं पाण्डवों को आशीर्वाद दे १५८ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृषा मार्ग बताकर लौट आये ( दन० १५८ । २८-२९ ) पाण्डवका पुनः लौटकर वृषपर्वाके आश्रमपर आना और सत्कृत होना ( बन० १७७ । ६-८ ) । वृषस्थगिरि - एक तीर्थ, जहाँ तीर्थयात्रा के समय पाण्डवोंने निवास किया था ( वन० ९५ । ३ ) । वृषभ - ( १ ) मगध राजधानी गिरिव्रजके समीपका एक पर्वत ( सभा० २१ । २) । (२) ग.न्धारराज सुबलका पुत्र, जो शकुनिका छोटा भाई था । इसने अपने अन्य पाँच भाइयोंके साथ इरावानूपर धावा किया था, जिसमें पाँच तो इरावान्द्वारा मारे गये; केवल यही बचा था ( भीष्मं० ९० । ३३-४७ ) । वृषभा - भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । ३२ ) । वृषभेक्षण - भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम | इस नामकी निरुक्ति ( उद्योग० ७० । ७ ) । 1 For Private And Personal Use Only वृषसेन - ( १ ) एक प्राचीन राजा, जो यमसभामें रहकर वैवस्वत यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । १३ ) । (२) युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञमें आया हुआ एक अभिमानी नरेश ( सभा० ४४ । २१-२२) । (३) कर्णका एक पुत्र, जो दुर्योधन की सेनाका एक श्रेष्ठ रथी था ( उद्योग० १६७ । २३ ) । शतानीक आदि द्रौपदीपुत्रोंके साथ इसका युद्ध ( द्रोण० १६ । १ - १० ) । इसका पाण्डय के साथ युद्ध ( द्रोण० २५ । ५७ ) । अभिमन्युद्वारा इसका पराजित होना ( द्रोण० ४४ । ५-७)। इसके ध्वजका वर्णन ( द्रोण० १०५ । १६-१८ ) । अर्जुनके साथ इसका युद्ध (द्रोण० १४५ | ४२ - ५८ ) | द्रुपदके साथ इसका संग्राम ( द्रोण० १६५ । १३ ) । इसके द्वारा द्रुपद की पराजय ( द्रोण० १६८ । १९ - २६)। सात्यकिद्वारा इसकी पराजय (द्रोण० १७० । ३७-३९) । द्रोणाचार्य के मारे जानेपर इसका युद्धस्थलसे भागना (द्रोण० १९३ । १६ ) । सात्यकिद्वारा इसकी पराजय ( द्रोण० २०० | ५१-५३; कर्ण० ४८ । ४३ - ४५ ) । इसका नकुलके साथ युद्ध (कर्ण ० ६१ । ३६-३९ ) । शतानीकके साथ इसकी मुठभेड़ ( कर्ण० ७५ । ९-१० ) । इसका नकुलके साथ घर संग्राम और इसके द्वारा नकुलकी पराजय ( कर्णं ० ८४ । १९ - ३५ ) | अर्जुनके साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा वध ( कर्ण० ८५ । ३५ - ३८ ) । व्यासजीके अवाहन करनेपर गङ्गाजलसे निकलनेवाले वीरोंमें यह भी था (आश्रम० ३२ । १० ) । वृषा - भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँ के निवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । ३५ ) |
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy