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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या ( ३१२ ) विनता ४-५)। परशुराम जीके आश्रमका द्वार विदेह देशसे विद्युत्प्रभ-(१) एक दानव, जिसे रुद्रदेवकी कृपासे एक उत्तर था (वन. १३०।१३)। सीता विदेहराज लाख वर्षांतक तीनों लोकोंका आधिपत्य, नित्य-पार्षद-पद, जनककी पुत्री थीं (वन० २७४ । ९)। इस देशके एक करोड़ पुत्र और कुशद्वीपका राज्य-ये सब वरदान सैनिकोने अर्जुनपर आक्रमण किया था ( भीष्म० ११७। रूपमें मिले थे ( अनु० १४ । ८२-८४) । (२) एक ३२-३४)। कर्णने इस देशके क्षत्रिय वीरोको परास्त तपस्वी महर्षि, जिन्होंने पापसे छूटने के विषयमें इन्द्रसे प्रश्न किया था (द्रोण.४।६)। परशुरामजीने इस देशके किया (अनु० १२५ । ४५-४६) । इन्द्रके उत्तर दे क्षत्रियोंका अपने तीखे बाणोंद्वारा संहार किया था चुकनेपर इनका स्वयं इन्द्रको सूक्ष्म धर्मका उपदेश देना (द्रोण० ७०।११-१३)। कर्णने विदेहोंका महान् (अनु० १२५ । ५१-५७)। संहार किया था (कर्ण. ३। १९)। कर्णने विदेह विद्यत्प्रभा-उत्तर दिशाकी दस अप्सराएँ ( उद्योग. देशको जीतकर इसे 'कर' देनेवाला बना दिया (कर्ण० ८॥१८-२० कर्ण० ९ । ३३)। विदेह देशके राजा विधुद्वर्चा-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३३)। जनकने महर्षि पञ्चशिखसे जरा और मृत्युको लाँघनेका उपाय पूछा और उन्होंने इनको उपदेश दिया विद्युन्माली-तारकासुरके तीन पुत्रों से एक, जो लोहमय (शान्ति. ३१९ अध्याय)। शुकदेवजीने विदेहराज पुरका अधिपति था। इसके दो भाइयोंका नाम ताराक्ष और कमलाक्ष था (द्रोण. २०२ । ६४-६५, कर्ण. जनकसे प्रवृत्ति-निवृत्ति धर्मके विषयमें प्रश्न किया और ३३ । ४-५)। भाइयोसहित इसकी तपस्या और ब्रह्माउन्होंने इसका उत्तर दिया (शान्ति० ३२५ । १० द्वारा वरदान-प्राप्ति ( कर्ण० ३३ । ६-१६)। शिव५.)। विदेहराज जनककी पुत्रीने एक श्लोकका गान इस जीके अस्त्रसे इसका पुरसहित दग्ध होना (कर्ण०३४ । प्रकार किया है-स्त्रीके लिये कोई यज्ञ आदि कर्म, ११४-११५)। श्राद्ध एवं उपवास करना आवश्यक नहीं है, उसका धर्म है अपने पतिकी सेवा। उसीसे स्त्रियाँ स्वर्गलोकपर विद्योता-अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्र विजय पा लेती हैं। (अनु०४६ । १२-१३)। मुनिके स्वागतके अवसरपर कुबेर-भवनमें नृत्य किया था (अनु० १९ । ४५)। विद्या-उमादेवीकी अनुगामिनी एक सहचरी (वन० २३१॥ विधाता-(१) विधाता और धाताने उत्तङ्कको नागलोकमें दो स्त्रियोंके रूपमें दर्शन दिया था ( आदि. ३ | विद्यातीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ जाकर स्नान करनेसे मनुष्य १६६)। ये ब्रह्माजीके पुत्र हैं। इनके दूसरे भाईका नाम जहाँ-कहीं भी विद्या प्राप्त कर लेता है (वन० ८४ । धाता है। ये दोनों भाई मनुके माथ रहते हैं ( आदि. ५२)। ६६ । ५०) । कमोंमें निवास करनेवाली लक्ष्मी देवी विद्याधर-एक देवयोनिविशेष या उपदेवता, जो जनमे इन दोनोंकी बहिन हैं (आदि. ६६ । ५१)। धाताजयके सर्पसत्रमें मन्त्राकृष्ट हुए देवराज इन्द्र के पीछे-पीछे विधाता विराटनगरके आकाशमें गोग्रहणके समय कृपाचार्य आ रहे थे (आदि० ५६ । ८-९)। और अर्जुनका युद्ध देखने आये थे (विराट० ५६ । ११. विद्यज्जित-घटोत्कचका साथी एक राक्षस, जिसका दुर्योधन- १२) । इनके द्वारा स्कन्दको सुव्रत और सुकर्मा नामक द्वारा वध हुआ था (भीष्म० ९१ । २०-२१)। दो पार्षदोंका दान (शल्य० ४५ । ४२-४३)। (२) विद्युज्जिह्वा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. एक ऋषि, जो इन्द्रसभामें रहकर वज्रधारी इन्द्र की उपासना करते हैं (सभा०।१४)। विधाता ब्रह्मा, इन्होंने ब्राह्मण-वेशमें आकर राजर्षि शिबिकी परीक्षा ली विद्युता-अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्र (वन० १९८ । १७-२५)। (विशेष देखिये ब्रह्मा) मुनिके स्वागतके अवसरपर कुबेर-भवनमें नृत्य किया था ( अनु० १९ । ४५)। विनता-दक्षकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी तथा गरुड और अरुणकी माता । पतिके वर माँगनेके लिये कहनेपर इनके विद्युताक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. १५ । ६२ )। द्वारा उनसे कद्र-पुत्रोंकी अपेक्षा अधिक बलशाली दो विद्यत्पर्णा-एक अप्सरा, जो कश्यपकी प्राधा' नामवाली पुत्रोंकी याचना (आदि. १६ । ५-१)। कद्रूके परनीके गर्भसे उत्पन्न हुई थी ( आदि. ६५।। पुत्रोको उत्पन्न हुआ देख इनका लजित होना एवं अपने ४१)। इसने अर्जुनके जन्मकालिक महोत्सवमें नृत्य एक अण्डेको फोड़ना (भादि. १६ । १६-१७)। किया था ( आदि. १२२ । ६२)। अपना शरीर अधरा रह जानेके कारण अरुणका इनको For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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