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भीष्म
( २३६ )
भीष्मक
आक्रमण करनेके लिये आदेश देना (मीष्म० ११५/१३- कहना (अनु० १४ । १८-२१)। युधिष्ठिरको हस्तिना१५)। इनका अद्भुत पराक्रम ( भीष्म० ११६ । ६२- पुर जाने के लिये आदेश और उपदेश देना (अनु. ७८)। अर्जुनके प्रहारसे मूञ्छित होना (भीष्म० १६६ । ९-१४)। धृतराष्ट्रको कर्तव्यका उपदेश देना ११७ । ६४) । इनके द्वारा विराटके भाई शतानीकका ( अनु० १६७ । ३०-३५)। श्रीकृष्णसे देहत्यागकी वध (भीष्म ११८ । २७) । इनके द्वारा पाण्डवसेना
अनुम त मागना (अनु० १६७ । ३७-४५)। इनका का भीषण संहार ( भीष्म अध्याय ११८ से प्राणत्याग करना ( अनु. १६८ । २-७)। कौरवोंद्वारा ११९ । १-५४ तक)। जीवनसे उदास होकर मृत्युका इनका दाहसंस्कार और इन्हें जलाञ्जलिदान ( अनु० चिन्तन करना ( भीष्म० ११९ । ३४-३५)। अर्जुनके १६८ । १०-२०)। रोती हुई गङ्गादेवीका इनके लिये बाणोंसे घायल होनेपर दुःशासनसे अर्जुनके पराक्रमका शोक, इनकी वीरताकी प्रशंसा तथा इनके शिखण्डीके वर्णन करना (भीष्म० ११९ । ५६-६७)। अर्जुनके हायसे मारे जानेके कारण दुःख प्रकट करना (अनु. द्वारा रथसे गिराया जाना ( भीष्म० ११९। ८७)। १६८ । २१-२९)। भीष्मका अर्जुनके द्वारा वध हंसोंको सूर्यके उत्तरायण होनेतक प्राण धारण करनेकी बात हुआ है। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण और व्यासजीका गङ्गाको बताना (भीष्म० ११९ । १०४-१०८)। संजयद्वारा आश्वासन देना (अनु० १६८ । ३०-३५) । व्यासजीके धृतराष्ट्र के प्रति इनकी महत्ताका वर्णन ( भीष्म आवाहन करनेपर इनका गङ्गाके जलसे प्रकट होना १२० । १०-१५)। बाणशय्यापर सोते समय राजाओं- (आश्रम ३२।७)। स्वर्गमें जाकर भीष्मका वसुओंके से तकिया माँगना (भीष्म० १२० । ३४)। राजाओंसे स्वरूपमें मिलना (स्वर्गा० ५। ११-१२)। अपने अनुरूप तकिया न मिलनेपर अर्जुनसे माँगना महाभारतमें आये हुए भीष्मके नाम-आपगासुत, (भीष्म० १२० । ३८) । राजाओंको समझाते हुए
आपगेय, भागीरथीपुत्र, भागीरथीसुत मारत, भरतश्रेष्ठ, युद्ध बंद कर देनेके लिये अनुरोध करना (भीष्म पितामह, भरतर्षभ, भरतसत्तम, भीष्मक, शान्तनव, १२०। ५१-५५) । इनका अर्जुनसे पानी मांगना
शान्तनुपुत्र, शान्तनुसुत, शान्तनूज, शान्तनुनन्दना (भीष्म. १२१।१८-१९)। इनके द्वारा अर्जुनकी
देवव्रत, गङ्गासुत, गाङ्गेय, जाह्नवीपुत्र, जाह्नवीसुत, कौरव, प्रशंसाका कथन ( भीष्म० १२१ । ३०-३७ )। कौरवधुरंधर, कौरवनन्दन, कौरव्य, कुरुशार्दूल, कुरुदुर्योधनको युद्ध बंद करनेके लिये समझाना ( भीष्म.
श्रेष्ठ, कुरूदह, कुरुकुलश्रेष्ठ, कुरुकुलोदह, कुरुमुख्य १२१ । ३८-५५)। कर्णसे रहस्यपूर्वक वार्तालाप करना
कुरुनन्दन, कुरुपति, कुरुपितामह, कुरुप्रवीर, कुरुपुङ्गव, ( भीष्म० १२२ । ८-२२ ) । कर्णको स्वर्गप्राप्तिकी
कुरुराजर्षिसत्तम, कुरुसत्तम, कुरूत्तम, कुरुवंशकेतु, कुरुवरइच्छासे युद्ध करनेके लिये अनुमति देना ( भीष्म.
श्रेष्ठ, कुरुवृद्ध, महाव्रत, नदीज, प्रपितामह, सागरगासुत, १२२ । ३४-३८)। कर्णको प्रोत्साहन देकर युद्धके लिये सत्यसंध, तालध्वज, वसु आदि । भेजना (द्रोण० ४।२-१४)। धर्मका रहस्य जानने के भीष्मक-विदर्भदेशके अधिपति एक भोजवंशी नरेश, जो निमित्त युधिष्ठिरको भीष्मके पास जानेके लिये व्यासजीकी पृथ्वोके एक चौथाई भागके स्वामी, इन्द्र के सखा और प्रेरणा (शान्ति० ३७ । ५-७)। इनके द्वारा श्रीकृष्णकी
बलवान् थे । इन्होंने अस्त्र-विद्याके बलसे पाण्ड्य, क्रथ स्तुति (भीष्मस्तवराज ) (शान्ति० ४७ । १६-१००% और कैशिक देशोंपर विजय पायी थी । इनके भाई शान्ति०५१।२-१) । धर्मोपदेश करनेके लिये श्रीकृष्णके
आकृति परशुरामजीके समान शौर्यसम्पन्न थे। राजा भीष्मक सम्मख अपनी असमर्थता प्रकट करना (शान्ति.
रुक्मिणीके पिता एवं भगवान् श्रीकृष्णके श्वशुर थे। ये ५२ । २-१३)। अपनेको कष्टरहित बताते हुए आप
मगधराज जरासंधके प्रति भक्ति रखते थे (सभा० स्वयं उपदेश क्यों नहीं देते' ऐसा भगवान् श्रीकृष्णसे १४ । २१-२२)। राजसूय-यज्ञके अवसरपर सहदेवके पूछना (शान्ति० ५४ । १७-२४)। युधिष्ठिरके गुण- भोजकट नगरमें पहुँचनेपर ये दो दिनोंतक युद्ध करके कथनपूर्वक उनको प्रश्न करनेके लिये आदेश देना
उनसे पराजित हुए थे (सभा० ३१ । ११-१२)। (शान्ति० ५५ । २-१०)। भयभीत और लजित
महामना भीष्मकका दूसरा नाम हिरण्यरोमा था, ये साक्षात् युधिष्ठिरको आश्वासन देना (शान्ति० १४ । १९)। इन्द्र के मित्र थे । समूचे दाक्षिणात्य प्रदेशपर इनका प्रभुत्व युधिष्ठिरको नाना प्रकारके दृष्टान्तों और उपाख्यानोंद्वारा
था। इनके पुत्रका नाम रुक्मी था. जो सम्पूर्ण दिशाओंराजधर्म, आपद्धर्म तथा मोक्षधर्मका उपदेश देना
में विख्यात था (उद्योग० १५८ । १.२)। ये कलिङ्ग(शान्ति. ५६ । १२ से अनु० १६५ अध्यायतक)। राज चित्राङ्गदकी पुत्रीके स्वयंवरके अवसरपर राजपुर श्रीकृष्णसे भगवान् शिवकी महिमाका वर्णन करनेके लिये नगरमें गये थे (शामित०४।२-६)।
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