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भरती
( २२६ )
भाद्रपद
कैकेयीका इन्हें ननिहालसे बुलवाना और अकण्टक राज्य यशमें प्रथम आज्यभागके द्वारा इन भरद्वाजनामक अग्निकी ग्रहण करने के लिये कहना (वन० २७७ । ३१-३२)। ही पूजा की जाती है (वन० २१९ । ५)। (३) इनका अपनी माताको फटकारना और उसके कुकृत्यपर एक भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ६८)। फूट-फूटकर रोना (वन. २७७ । ३३-३४)। इनकी मरुकक्ष-एक भारतीय जनपद । यहाँके निवासी शूद्र युधिचित्रकूट यात्रा (वन.२७७ । ३५-३८)। श्रीरामके
ष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आये थे (सभा ५१ । लौटनेपर उन्हें राज्य समर्पण करना (वन० २९१ । ६५)।
९.१०)। भरती-भरत नामक अग्निकी पुत्री (वन० २१९।७)। भरद्वाज-(१) एक प्राचीन ऋषि । सप्तर्षियोंमेंसे एक।
भर्ग-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५। ५१)। ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (आदि०१२३४५१)। भतुस्थान-यहाँ जानेसे अश्वमेधयज्ञका फल प्राप्त होता है । यहाँ इन्हींकी कृपासे भरतको भुमन्यु नामक पुत्र प्राप्त हुआ
महासेन कार्तिकेयका निवास स्थान है। यहाँ यात्रीको सिद्धि(आदि० ९४ । २२)। ये भगवान् भरद्वाज किसी समय
__ की प्राप्ति होती है (वन० ८४ । ७६, वन० ८५। ६.)। गङ्गाद्वारमें रहकर कठोर व्रतका पालन करते थे। एक दिन भल्लाट-एक भारतीय जनपद, जिसे पूर्वदिग्विजयके समय उन्हें एक विशेष प्रकारके यज्ञका अनुष्ठान करना था। भामसनन जाता था (सभा० ३०।५)। इसलिये वे महर्षियोंको साथ लेकर गङ्गाजीमें स्नान करनेके भव-(१) ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । ये ब्रह्माजीके पौत्र एवं लिये गये । वहाँ पहलेसे नहाकर वस्त्र बदलती हुई घृताची स्थाणुके पुत्र थे ( आदि० ६६ । १-३ )। अप्सराको देखकर महर्षिका वीर्य स्खलित हो गया । महर्षिने (२) एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३५)। उसे उठाकर द्रोण ( कलश ) में रख दिया । उससे एक
भवदा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६।१३)। पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम द्रोण रखा गया (किन्हींकिन्हींके मतमें सप्तर्षि भरद्वाजसे द्रोणपिता भरद्वाज भिन्न
भागीरथी-यहाँ जाकर तर्पण करना चाहिये (वन० ८५ । हैं।) (आदि. १२९ । ३३-३०)। इन्होंने अग्नि
१४)। वेशको आग्नेयास्त्रकी शिक्षा दी (आदि. १२९ । ३९)। भाङ्गासुरि-एक राजा, जो यमराजकी सभामें विराजमान होकर ये ब्रह्माजीकी सभामें बैठकर उनकी उपासना करते हैं सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते है ( सभा०८। (सभा० ११ । २२)। इनका अपने पुत्र यवक्रीतको
१५)। अभिमान न करनेका उपदेश देना (वन० १३५।१४)। भाण्डायनि-एक ऋषि, जो इन्द्रकी सभामें उपस्थित इनका पुत्रशोकके कारण विलाप करना (वन० १३७। हो वज्रधारी इन्द्रकी उपासना करते हैं (सभा०॥ १०-१८)। इनके द्वारा अपने मित्र रैभ्यमुनिको शाप (वन० १३७ । १५) । इनका पुत्रशोकसे अग्निमें भाण्डीर-व्रजभूमिमें स्थित एक वन और वहाँका एक वटप्रवेश (वन० १७ । १९) । रैभ्यपुत्र अर्वावसुके वृक्ष, जिसकी छायामें भगवान् श्रीकृष्ण ग्वालपालोंके साथ प्रयत्नसे इनका पुनरुज्जीवन (वन० १३८ । २२)। बछड़े चराते तथा भाँति-भाँतिकी क्रीड़ाएँ किया करते थे। इनका द्रोणाचार्यके पास आकर युद्ध बंद करनेको कहना भाण्डीरवनमें निवास करनेवाले बहुत-से ग्वाले वहाँ कोड़ा (द्रोण. १९०।३५-४०)। भृगुजीसे सृष्टि आदिके करते हुए श्रीकृष्णको विविध प्रकारके खिलौनोद्वारा प्रसन्न सम्बन्धमें पूछना और उनका उत्तर प्राप्त करना (शान्ति. रखते थे (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ अध्याय १८२ से १९२ तक)। इनका भगवान् विष्णुकी
८००)। (वृन्दावनमें केशीघाटके सामने यमुनाजीके उस छातीमै जलसहित हाथसे प्रहार करना (शान्ति० ३४२।
पार उत्तर दिशामें यह वन पड़ता है। पुराणोंमें ऐसी कथा ५४)।राजा दिवोदासको शरण देकर पुत्रेष्टिद्वारा उन्हें आती है कि यहाँ ब्रह्माजीने श्रीराधा-कृष्णका विवाह पुत्र प्रदान करना (अनु.३० । ३०) । वृषादर्भिसे कराया था)। प्रतिग्रहके दोष बताना (अनु० ९३ । ४१)। अरुन्धती- भाज
)-(बारह महीनों से एक, जिस माससे अपने शरीरकी दुर्बलताका कारण बताना ( अनु० ९५। की पूर्णिमाको पूर्वभाद्रपद अथवा उत्तरभाद्रपद नामक ६६)। यातुधानीको अपने नामकी व्याख्या सुनाना नक्षत्रका योग हो, उसे भाद्रपद' कहते हैं (अनु. ९३।८८)। मृणालकी चोरीके विषयमें शपथ बाद और आश्विनके पहले आता है।) भाद्रपद मासमें खाना ( अनु. ९३ । ११८-११९)। अगस्त्यजीके प्रतिदिन एक समय भोजन करनेवाला मनुष्य गोधनसे कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना (अनु० ९४।। सम्पन्न, समृद्धिशील तथा अविचल ऐश्वर्यका भागी होता १५)। (२) ये शंयु नामक अग्निके प्रथम पुत्र हैं। है (अनु० १०६ । २८)। भाद्रपदकी द्वादशी तिथिको
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