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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन अर्जुन उत्तरका सारथि बनकर युद्धके लिये प्रस्थान ( विराट ३७ । २७) । भयभीत होकर भागते हुए उत्तरको दौड़कर पकड़ना ( विराट. ३८ । ४०)। उत्तरको समझा-बुझाकर अपना सारथि बनाकर रथपर चढ़ाना (विराट० ३८ । ४६-५१)। शमीवृक्षसे अस्त्र उतारने- के लिये उत्तरको आदेश देना (विराट० ४० । ३)। उत्तरको पाण्डवोंके दिव्यायुधोंका परिचय देना ( विराट. ४३ अमें )। उत्तरकुमारसे अपने भाइयोंका परिचय देना तथा अपने दस नामोंकी पृथक-पृथक व्याख्या करना ( विराट. ४४ । १३-२२ ) । उत्तरसे अपनी नपुंसकताका कारण बताना ( विराट० ४५ । १३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ १५ तक)। अपने अस्त्रोंका स्मरण करना और आनेपर उनसे वार्तालाप (विराट०४५। २७-२८)। इनका शङ्ख बजाना और डरे हुए उत्तरको धीरज देना ( विराट० ४६ । ८-२३ ) । बाणोंद्वारा आचार्य द्रोणको प्रणाम करना और युद्ध की आज्ञा माँगना ( विराट० ५३ । ७ ) । कौरवसेनापर आक्रमण करके विराटकी गौओंको लौटा लेना (विराट. ५३ । २४-२५)। कर्णपर आक्रमण ( विराट० ५४ । ४-५) । इनके द्वारा। विकर्णकी पराजय ( विराट० ५४ । ९-१० ) । राजा । शत्रुतपका वध (विराट. ५४ । ११-१३)। कर्णके भाई संग्रामजित्का वध (विराट. ५४ । १८)। कर्णकी पराजय ( विराट० ५४ । १९-३६ ) । कौरवसेनाका संहार करके उसे खदेड़ देना (विराट ५५। १-३८)। उत्तरको कौरववीरोंका परिचय देकर कृपाचार्यके पास जाना (विराट० ५५ । ४१-६०)। कृपाचार्यको रथहीन और घायल करना (विराट० ५७ । ३६-३८)। द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और उन्हें घायल करना ( विराट ५८ अमें ) । अश्वत्थामाके साथ युद्ध और उनके बाणोंको समाप्त कर देना (विराट० ५९ । १-१५)। कर्णके साथ पुनः युद्ध और उसे घायल करके खदेड़ना (विराट. ६० अ० में )। उत्तरके हतोत्साह होनेपर उसे आश्वासन देकर भीष्मके पास जाना और उनका ध्वज काट गिराना (विराट०६१।१३-३५)। दुःशासनको घायल करना (विराट. ६३।४.)। विकर्णको स्थसे नीचे गिराना ( विराट. ६१ । ४२ )। दुःसह और विविंशतिको घायल करना (विराट०६१। ४५) । रणभूमिमें रक्तकी नदी प्रकट कर देना (विराट० ६२।१७-२१)। समस्त कौरव महारथियोंको पराजित करना (विराट० ६३ । १-१४)। भीष्मके साथ अद्भुत युद्ध और उन्हें घायल करके युद्धसे विमुख करना (विराट० ६४ अ० में)। पुनः उनके द्वारा विकर्णकी पराजय (विराट० ६५ । १०)। दुर्योधनकी पराजय (विराट० ६५ । १३)। सम्मोहनास्त्रके द्वारा इनका सभी कौरव महारथियोंको मोहित कर देना (विराट० ६६ । ८-११)। युद्ध बंद होनेपर इनके द्वारा भीष्म आदि श्रेष्ठ पुरुषोंका अभिवादन एवं सम्मान (विराट०६६ । २५-२६)। दुर्योधनके मुकुटका खण्डन (विराट० ६६ । २७)। उत्तरसे अपना रहस्य न खोलने के लिये कहना (विराट० ६७ । ९.१०)। उत्तराको कौरव महारथियोंके वस्त्र देना (विराट ६९ । १६)। विराटको युधिष्ठिरका परिचय देना ( विराट. ७०। ९-२८)। अन्य चारों पाण्डवों और द्रौपदीका परिचय देना (विराट० ७१ । ३-१० )। उत्तरद्वारा अर्जनके पराक्रमका वर्णन (विराट०७१ । १९--२१)। उत्तराको पुत्रवधूके रूपमें स्वीकार करना (विराट. ७२।७)। युद्ध न करनेवाले भगवान् श्रीकृष्णको ही सहायकरूपमें स्वीकार करना ( उद्योग. ७ । २१)। हस्तिनापुरको लौटते हुए संजयसे कौरवोंको संदेश देना (उद्योग० ३२ अध्यायके आदिमें दाक्षिणात्य पाठ)। संजयद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (उद्योग० ५० । २६-२८)। कौरवोंसे संधिके विषयमें श्रीकृष्णके समक्ष अपने विचार प्रकट करना (उद्योग०७८ अ० में)। आधा राज्य लेकर ही संधि स्वीकार करनेके लिये श्रीकृष्णसे कहना (उद्योग० ८३ । ५१-५३)। इनके द्वारा धृष्टद्युम्नको प्रधान सेनापति बनानेका प्रस्ताव (उद्योग० १५१ । १९-२५)। युद्धके लिये कही गयी श्रीकृष्णकी बातोंका समर्थन ( उद्योग. १५४ । २५-२६) अपने पराक्रमका वर्णन करके रुक्मीकी सहायताको अस्वीकार करना ( उद्योग. १५८ । २७-३५)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर ( उद्योग० १६२ । ३७-४४)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर ( उद्योग० १६३ । ३-२३)। युधिष्ठिरके पूछनेपर त्रिलोकीको पलक मारते नष्ट करनेकी अपनी शक्ति बताना (उद्योग० १९४ । १०-११)। युधिष्ठिरकी आज्ञासे इनके द्वारा अपनी सेनाका वज्रव्यूहनिर्माण (भीष्म. १९। ७)। श्रीकृष्णकी कृपासे विजय होती है। ऐसा कहकर युधिष्ठिरको आश्वासन ( भीष्म० २० । ७-१७)। इनके द्वारा दुर्गादेवीका स्तवन और वरप्राप्ति (भीष्म० २३ । ४-१९)। इनका श्रीकृष्णसे दोनों सेनाओंके बीचमें रथ खड़ा करनेके लिये कहना ( भीष्म० २५ । २१)। स्वजनोंको देखकर मोहग्रस्त हो युद्धसे खेद, धर्म-नाशका भय और दोष प्रकट करते हुए धनुष त्यागकर बैठ जाना (भीष्म० २५ । २६-४७)। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर श्रीकृष्णसे अपने कर्तव्यके विषयमें शिक्षा देनेके लिये प्रार्थना करते हुए युद्ध न करनेका निश्चय करके बैठ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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