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लक्षप्रस्रवणतीर्थ
( २१२ )
बभ्रुवाहन
A
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प्लक्षप्रस्रवणतीर्थ-एक तीर्थ, यहसि सरस्वती नदी प्रकट बदरीपाचन (या बदरपाचन) तीर्थ-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत हुई है ( शल्य० ५४।११)।
एक तीर्थ, यहाँ तीन रात उपवास करके बेरका फल खाकर प्लक्षवती-एक नदी, जो सायं प्रातः कीर्तन करने योग्य है बारह वर्षों तक रहनेपर मनुष्य वसिष्ठके समान हो जाता है (अनु० १६५ । २५)।
(वन० ८३ । १७९-१८१)। प्लक्षावतरण-यमुनाके उद्गमसे सम्बन्ध रखनेवाला एक बदरीवन-एक पुण्यतीर्थ, जिसके निकट विशालापुरी है। पुण्यतीर्थ, जो स्वर्गका द्वार है (वन. ९.। ४ वन. यह सब मिलकर बदरिकाश्रम तीर्थ है (वन०९०।२५)। १२९ । १३)।
इसका विस्तारपूर्वक वर्णन (वन० १५५ । १३-२४)। (फ)
बधिर-कश्यपवंशी एक नाग ( उद्योग०७४ । १६)। फलकक्ष-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी सेवा
वा बन्धुदायाद-कुटुम्बी होनेसे उत्तराधिकारी पुत्र (आदि.
ब करता है ( सभा० १० । १६)।
११९ । ३२-३३)। छः प्रकारके पुत्र बन्धुदायाद कहफलकीवन-एक तीर्थ, जहाँ देवतालोग सदा निवास करते लाते हैं। जिनके नाम इस प्रकार है-१. स्वयंजात' (जो हैं और अनेक सहस्र वर्षोंतक भारी तपस्यामें लगे रहते हैं अपनी विवाहिता पत्नीके गर्भसे अपने ही द्वारा उत्पन्न (वन० ८३ । ८६-८७)।
हो)। २. प्रणीत' ( जो अपनी पत्नीके गर्भसे किसी फलोदक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी सेवा उत्तम पुरुषके अनुग्रहसे उत्पन्न हो)। ३. 'पुत्रिकापुत्र' करता है (सभा० १० । १६)।
(जो अपनी पुत्रीका पुत्र हो )। ४. पौनर्भव' (जो फल्गु-एक नदी और तीर्थ, यहाँ जानेसे अश्वमेधयशका
दूसरी बार ब्याही हुई स्त्रीसे उत्पन्न हुआ हो)। ५. फल मिलता है और बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त होती है । यहाँ
'कानीन' ( विवाहसे पहले ही जिस कन्याको इस शर्तके
साथ दिया जाता है कि इसके गर्भसे उत्पन्न होनेवाला पुत्र पितरोंके लिये दिया हुआ अन्न अक्षय होता है (वन.
मेरा ही पुत्र समझा जायगा, उस कन्यासे उत्पन्न)। ६. ८४ । ९८; वन० ८७ । १२)।
भानजा (बहिनका पुत्र)। फाल्गुन-(१) अर्जुनका एक नाम । हिमालयके शिखर - पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें अर्जुनका जन्म हुआ था। इस
बभ्र-(१) एक वृष्णिवंशी यादव, जो रैवतक पर्वतके लिये इनका एक नाम फाल्गुन भी है ( विराट.४४ । ९,
महोत्सवमें सम्मिलित थे ( आदि. २१८ । १०)। यदु१६)। (२) बारह मासोंमें एक मास । (जिस मासकी
बंशियोंके सात प्रधान महारथियोंमें एक ये भी थे। (सभा. पूर्णिमाको पूर्वाफाल्गुनी अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रका योग
१४ । ६० के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। द्वारका जाते हो, उसे फाल्गुन मास कहते हैं, जो माघ मासके बाद और
कहते हैं, जो माघ मासके बाद और समय इन तपस्वी बभ्र की पत्नीको शिशुपालने हर लिया था चैत्र मासके पूर्व आता है।) जो फाल्गुन मासको एक (सभा० ४५।१०)। इन्होंने भी श्रीकृष्णके पास ही समय भोजन करके व्यतीत करता है, वह अपनी
बने हुए पेय पदार्थको पीया था (मौसल० ३ । १६-१७)। स्त्रीको प्रिय होता है और वह उसके अधीन रहती है व्याधके बाणसे लगे हुए एक मूसलद्वारा इनकी मृत्यु हुई (अनु० १०६ । २२)। इस मासकी द्वादशी तिथिको
थी (मौसल. १। ५-६ ) । शान्तिपर्वके ८१ । १७ में उपवासपूर्वक गोविन्दनामसे भगवान्की पूजा करनेवाला अक्रूरके लिये भी बभ्रु शब्दका प्रयोग आया है। (२) पुरुष अतिरात्र यशका फल पाता है और मृत्युके पश्चात् श्रीकृष्णके कृपापात्र काशीके नरेश । ये श्रीकृष्णकी कृपासे सोमलोकमें जाता है ( अनु० १०९ । ६ )।
राच्यलक्ष्मीको प्राप्त हुए थे (उद्योग. २८ । १३)। (३) ये मत्स्यनरेश विराटके एक वीर पुत्र थे ( उद्योग
५७ । ३३)। (४) महर्षि विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंबदरिका (या बदरी)-सुप्रसिद्ध बदरिकाश्रमतीर्थ, जहाँ ।
मेंसे एक (अनु०४।५०)। पूर्वकालमें नर-नारायणने अनेक बार दस-दस हजार वर्षातक तपस्या की थी (वन०४०१)। इस तीर्थमें स्नान
बभ्रमाली-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान करके मनुष्य दीर्घायु पाता और स्वर्गलोकमें जाता है होते हैं ( सभा० ४ । १६)। (वन०८५। १३)। पाण्डवोंने यहाँकी यात्रा की थी। बभ्रवाहन-राजा चित्रवाहनकी पुत्री चित्राङ्गदाके गर्भसे यहाँ नर-नारायणका आश्रम और 'अलकनन्दा' नामक अर्जुनद्वारा उत्पन्न एक वीर राजा (आदि० २१६ । भागीरथीकी धारा है। यहाँकी प्राकृतिक सुषमाका वर्णन २४)। चित्रवाहनने अर्जुनको अपनी कन्या देनेसे पहले (वन. १४५ अध्याय)।
ही यह शर्त रख दी थी कि इसके गर्भसे जो एक पुत्र हो।
(ब)
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