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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्करधारिणी ( २०२ ) Annanorm २९)। (४) एक द्वीप, इसका विशेषरूपसे वर्णन कुलको पवित्र कर देता है ( वन० ८५ । १२)। (भीष्म० १२ । २४-३७)। (५) पुष्करद्वीपका पुष्पवान्-एक राजा, जो कभी समस्त पृथ्वीका शासक था, एक पर्वत, जो मणियों तथा रत्नोंसे भरा-पूरा है (भीष्म. परंतु कालसे पीड़ित हो इसे छोड़कर परलोकवासी हो गया १२ । २४-२५)। (शान्ति०२२७ । ५१-५६)। पुष्करधारिणी-ये विदर्भनिवासी उञ्छवृत्तिधारी तथा पुष्पानन-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी अहिंसापरायण सत्यनामक ब्राह्मणकी धर्मचारिणी पत्नी थीं उपासना करता है (सभा० १० । १७)। (शान्ति. २७२ । ३-६)। पुष्पोत्कटा-कुबेरद्वारा विश्रवाकी परिचर्यामें नियुक्त एक पुष्करिणी-सम्राट भरतकी पुत्रवधू तथा भुमन्युकी पत्नी। सुन्दरी राक्षसकन्या, जो नृत्य-गीतकी कलामें प्रवीण थी। इनके गर्भसे सुहोत्र, दिविरथ, सुहोता, सुहृवि, सुयजु इसीके गर्भसे रावण और कुम्भकर्णका जन्म हुआ था और ऋचीक नामक छः पुत्र हुए थे (आदि० ९४ । (वन० २७५ । ३-७)। २३-१५)। पूजनी-काम्पिल्य नगरके राजा ब्रह्मदत्तके भवन में निवास पष्टि-ये दक्षप्रजापतिकी कन्या और धर्मकी पत्नी हैं (आदि० करनेवाली एक चिड़िया ( शान्ति० १३९ । ६६।१४)। ये ब्रह्माकी सभामें रहकर उनकी उपासना ५)। यह समस्त प्राणियोंकी बोली समझती करती हैं (सभा०११।१२)। इन्द्रलोककी यात्राके थी। सर्वज्ञ और सम्पूर्ण तत्त्वोंको जाननेवाली थी (शान्ति समय अर्जुनकी रक्षाके लिये द्रौपदीने इनका सरण किया १३९ । ६)। राजकुमारने इसके बच्चेको मार डाला था (वन० ३७ । ३३)। था; अतः इसने भी राजकुमारकी आँखें फोड़ दी पुष्टिमति-भरत नामक अग्निका नामान्तर, ये संतुष्ट होनेपर (शान्ति० १३९ । १३-२०)। राजभवनको छोड़कर पुष्टि प्रदान करते हैं, अतः इनका नाम पुष्टिमति है जाते समय पूजनीका राजा ब्रह्मदत्तके साथ संवाद (वन०२२१ । १)। (शान्ति० १३९ । २१-१११)। पुष्प-कश्यपवंशी एक नाग ( उद्योग० १०३ । १३)। पूतना-(१) एक राक्षसी, जो भगवान् श्रीकृष्णद्वारा मारी पुष्पक-(१) कुबेरका एक दिव्य विमान, जो इन्हें ब्रह्मा- ___ गयी थी ( सभा० ३८ ॥ २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ जीसे प्राप्त हुआ था (वन० २७४ । १७) । इसे ७९८)। (२) ( पूतनाग्रह )- पूतना नामक रावणने उनसे बलपूर्वक छीन लिया था (वन० २७५। राक्षसी, जो बालकोंके लिये ग्रहरूप है। यह स्कन्दके साथ ३४)। कुबेरने रावणको यह शाप दिया था कि यह रहनेवाली है ( वन० २३० । २७) । यही पूतना विमान तेरी सवारीमें नहीं आ सकेगा जो तेरा वध करेगा, स्कन्दकी अनुचरी मातृकाओंमें भी गिनी गयी है उसीका यह वाहन होगा (वन० २७५ । ३५ )। (शल्य. ४६ । १६)।। लङ्का-विजयके पश्चात् श्रीरामने पुष्पकविमानकी पूजा करके पतिका-एक लता, जो सोमलताके स्थानपर यज्ञमें काम उसे कुबेरको ही प्रसन्नतापूर्वक लौटा दिया (बन० आती है ( वन० ३५। ३३)। २९१ । ६९) । (२) द्वारकापुरीके दक्षिणभागमें पूरण-एक प्राचीन ऋषि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मके स्थित ललावेष्ट नामक पर्वतको एक ओरसे घेरकर फैला पास आये थे (शान्ति० ४७ । १२)। हुआ एक वन ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पूरु-(१) एक प्राचीन राजा (आदि.३।२३२ )। पृष्ठ ८१३)। जो राजा ययातिके द्वारा शर्मिष्ठा' के गर्भसे उत्पन्न हुए पुष्पदंष्ट-कश्यपवंशी एक प्रमुख नाग (आदि०३५। १२)। (आदि. ७५। ३५, आदि. ८३ । १०)। (ये पुष्पदन्त-(१) एक दिग्गज (द्रोण० १२१ । २५)। पौरववंशके प्रवर्तक आदि पुरुष थे। ) इनके द्वारा अपने (२) पार्वतीद्वारा कुमारको दिये गये तीन पार्षदों से पिताको युवावस्थाका दान एवं उनकी वृद्धावस्थाका एक, अन्य दोका नाम उन्माद और शङ्कुकर्ण था ग्रहण (आदि.७५ । ४३-४४; आदि.८४ । ३४)। (शल्य. ४५। ५१)। इनके द्वारा गुरुजनोंके आज्ञापालनकी महिमाका वर्णन पुष्परथ-राजर्षि वसुमनाका रथ, यह आकाश, पर्वत और (आदि०८४ । ३०-३५ के बाद दा० पाठ)। प्रजाके समुद्र आदि दुर्गम स्थानोंमें भी बड़ी सुगमतासे जा सकता अनुमोदन करनेपर ययातिद्वारा इनका राज्यपर अभिषिक्त था (वन० १९८ । १२-१३)। होना ( आदि० ८५ । ३२) । कौसल्या (पौष्टी ) नामक पुष्पवती-इस तीर्थमें स्नान करके तीन रात उपवास करने- पत्नीके गर्भसे इनके द्वारा जनमेजय (प्रवीर), ईश्वर तथा वाला मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता है और अपने रौद्राश्वका जन्म एवं इनके वंशका संक्षिप्त वर्णन (आदि. For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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