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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरुणा अर्जुन अरुणा-(१) एक अप्सरा, जो कश्यप-पत्नी प्राधाके गर्भसे अर्जुन-(१) ये नरस्वरूप हैं ( आदि० १।१)। इनको उत्पन्न हुई थी ( आदि० ६५ । ५० )। (२) धर्ममय विशाल वृक्षका तना कहा गया है ( आदि० 'अरुणा' नामवाली एक नदी, जो सरस्वती नदीमें १।११०)।ये पाण्डुके क्षेत्रज पुत्र हैं। इन्द्रके द्वारा मिली है ( वन० ८३ । १५)। कुन्तीके गर्भसे इनकी उत्पत्ति हुई है ( आदि० ६३ । अरुणासंगम-अरुणा और सरस्वतीके संगमका पवित्र ११६)। ये इन्द्रके अंशसे प्रकट हुए हैं ( आदि० ६७ । तीर्थ ( शल्य० ४३ । ३०-४३)। १११)। फाल्गुन मास तथा दोनों फाल्गुनीके संधिकालमें अरुन्धती ( अक्षमाला )-(१) महर्षि वसिष्ठकी। इनकी उत्पत्ति हुई, इसीसे इनका नाम 'फाल्गुन' हुआ पत्नी (आदि. १९८ । ६ तथा उद्योग०११७।११)। (आदि. १२२ । ३५ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। वसिष्ठजीके चरित्रपर संदेह करनेके कारण इनकी कान्तिमें __ आकाशवाणीद्वारा इनकी जन्मकालमें प्रशंसा (आदि० मलिनता (आदि. २३२ । २७-२९ )। ये ब्रह्माजीकी १२२ । ३८-४६ ) । इनके जन्मोत्सवपर समस्त सभामें विराजमान होती हैं (सभा० ११।१०)। देवताओं, गन्धर्वो, आदित्यों, रुद्रों, वसुओं, नागों तथा अरुन्धतीसहित वसिष्ठने उज्जानक सरोवरके तटपर तपस्या- ऋषियोंका शुभागमन और प्रमुख अप्सराओद्वारा नृत्य-गान द्वारा शान्ति प्राप्त की (वन० १३०।१७)। अरुन्धती- ( आदि० १२२ । ५०-७४ ) । शतशृङ्गनिवासी की तपस्या और पतिसेवाके प्रभावसे स्वाहा उनका रूप ऋषियोंद्वारा इनका नामकरण-संस्कार (आदि० १२३ । धारण न कर सकी (वन० २२५ । १४-१५)। सप्तर्षियोंने २० )। वसुदेवके पुरोहित काश्यपके द्वारा इनके केवल देवी अरुन्धतीको छोड़कर अन्य छः मुनिपत्नियोंको उपनयनादि-संस्कार । राजर्षि शुकसे इनके द्वारा धनुर्वेदका अपने यहासे निकाल दिया था (वन० २२६ । ८)। अध्ययन । (आदि० १२३।३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। शिवजी द्वारा इनके तपकी परीक्षा और इन्हें वरदान इनके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे श्रुतकीर्तिका जन्म ( आदि. (शल्य० ४८ । ३८-५४)। वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष ९५ । ७५ ) । सुभद्राके गर्भसे अभिमन्युकी उत्पत्ति बताना (अनु० ९३ । ४५)। यातुधानीसे अपने नामका (आदि० ९५ । ७८)। कृपाचार्यसे इन ( पाण्डवों) का निर्वचन कहना ( अनु० ९३ । ९६)। मृणालकी चोरीके __ अध्ययन (आदि०१२९ ॥ २३)। अर्जुन आदिका द्रोणाचार्यकी विषयमें इनका शपथ खाना ( ९३ । १२७.१२८ )। शिष्यतामें अध्ययन ( आदि० १३१ । ४) । अर्जुनद्वारा अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० गुरुके अभीष्ट कार्यको सिद्ध करनेकी प्रतिज्ञा (आदि०१३१॥ ९४ । ३८)। इनके द्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन ( अनु० ७) । आचार्यका अर्जुनको हृदयसे लगाकर उनके १३० । ३-११)। देवताओंद्वारा अरुन्धतीकी प्रशंसा तथा प्रति हार्दिक स्नेह प्रकट करना । इनकी अध्ययननिष्ठा ब्रह्माजीका उन्हें वर देना (अनु० १३० । १२-१३)। तथा सर्वाधिक योग्यता (आदि० १३१ । १३-१४)। इनसे अरुन्धतीवट-एक तीर्थ, इसके समीपवर्ती सामुद्रक तीर्थमें कर्णकी स्पर्धा ( आदि० १३१ । १२)। अर्जुन अनुपम स्नान और तीन रात ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक उपवास करनेसे प्रतिभाशाली हैं--ऐसी द्रोणाचार्यकी धारणा (आदि० १३१ । अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है (वन० ८४ । ४१)। १५)। ये अपनी गुरुभक्ति तथा अस्त्रोंके अभ्यासकी लगनके अरूपा-दक्षकन्या प्राधाकी एक पुत्री (आदि०६५।४६) कारण गुरुके विशेष प्रिय हुए ( आदि० १३१ । २०)। इनके द्वारा रात्रिमें धनुर्विद्याका अभ्यास ( आदि० १३१ । अर्क-(१) दिवके पुत्र अर्क, जो विवस्वान्के ही स्वरूप हैं २५)। इनको अद्वितीय धनुर्धर बनानेके लिये द्रोणाचार्यका ( आदि. १ । ४२ )। (२) एक प्राचीन राजा आश्वासन (आदि० १३३ । २७)। एकलव्यकी धनुर्विद्यासे (आदि. १। २३६ )। (३) एक दानवराज, जो इनकी चिन्ता और द्रोणसे इनका उलाहना (आदि० १३१ । राजर्षि ऋषिकरूपसे उत्पन्न हुआ था ( आदि. ४८-४९) । समस्त युद्ध-विद्याओंमें इनकी कुशलता ६७ । ३२-३३ )। (आदि. १३१ । ६३)।ये सर्वश्रेष्ठ अस्त्राभ्यासी और अर्कज-बलीह-कुलका एक राजा ( उद्योग० ७४ । १४ )। गुरुभक्त थे ( आदि. १३१ । ६४ )। द्रोणाचार्यद्वारा अर्कपर्ण-कश्यप-पत्नी 'मुनि'के गर्भसे उत्पन्न एक इनकी लक्ष्यवेधके विषयमें परीक्षा तथा इनके द्वारा देवगन्धर्व ( आदि० ६५।४३)। गीधके मस्तकका छेदन ( आदि० १३२ । १-९)। अर्घाभिहरणपर्व-सभापर्वके एक अवान्तर पर्वका नाम द्रोणाचार्यपर आक्रमण करनेवाले ग्राहका इनके द्वारा (अध्याय ३६ से ३९ तक)। वध ( आदि० १३२ । १७ ) । द्रोणाचार्यद्वारा अर्चिष्मत्-पितरोंका एक गण (शान्ति० २६९ । १५)। प्रसन्न होकर इनको 'ब्रहाशिर' नामक अस्त्रका दान अर्चिष्मती-महर्षि अङ्गिराकी चौथी पुत्री (वन० २१०।६)। ( आदि० १३२ । १८)। रङ्गभूमिमें इनके अद्भुत For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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