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परावह
परीक्षित् (परीक्षित् )
१३८1८-१०)। देवताओद्वारा बृहद्युम्न के यज्ञसे इनका निकलवाया जाना (वन० १३८ । २०)। अर्वावसुके प्रयत्नसे इनका निर्दोष सिद्ध होना (वन० १३८ । २१)। इनके द्वारा परशुरामजोपर आक्षेप ( शान्ति० ४९। ५७-५९)। ये अङ्गिराके वंशज माने जाते हैं (शान्ति. २०८ । २६)। इन्होंने उपरिचरके यज्ञकी सदस्यता स्वीकार की (शान्ति० ३३६ । ७)। ये इन्द्रसभाके
सदस्य हैं (सभा०७। १७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। परावह-वायुके सात भेदोंमेंसे एक । यह सप्तम वायु है। इसके स्वरूप और शक्तिका वर्णन (शान्ति० ३२८ ।
५२)। पराशर-(१) धृतराष्ट्र के वंशमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें स्वाहा हो गया ( आदि. ५७ ।। १९)। (२) महर्षि शक्तिके द्वारा अदृश्यन्तीके गर्भसे उत्पन्न एक ऋषि, जो वसिष्ठ मुनिके पौत्र थे (आदि० १७७।१)। राक्षसभावापन्न कल्माषपादद्वारा इनके पिता शक्तिका वध ( आदि. १७५ । ४०)। बारह
च ( आदि० १७५ । ४०)। बारह वर्षोंतक माताके गर्भमें इनका वेदाभ्यास ( आदि. १७६ । १५) । इनका पराशर' नाम होनेका कारण (आदि० १७७ । ३)। अपनी माताके मुँहसे राक्षसद्वारा अपने पिताकी मृत्युका समाचार सुनकर सम्पूर्ण जगत्के विनाशके लिये इनका संकल्प ( आदि. १७७ । ५-९)। भृगवंशी और्वकी कथा सुनाकर वशिष्ठद्वारा इनके जगद्विनाशक संकल्पका निवारण (आदि. १७७ । ११ से अध्याय १८० । १ तक)। इनके द्वारा राक्षससत्रका अनुष्ठान, पुलस्त्य आदि महर्षियोद्वारा इनके राक्षसयज्ञका निवारण ( आदि० १८०। ८-११)। सत्यवतीके रूपके प्रति इनका आकर्षण ( आदि. ६३ । ७०७१)। इनका सत्यवतीको योजनगन्धा होने का वरदान देना (आदि० ६३ । ८०-८२)। इनके द्वारा सत्यवतीके गर्भसे व्यासका जन्म (आदि० ६३ । ८४)। ये शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखनेके लिये उनके पास गये थे (शान्ति० ४७। १०)। इन्होंने दयावश सौदासके पुत्रकी रक्षा की थी (शान्ति० ४९ । ७७)। इनके द्वारा जनकको कल्याण-प्राप्तिके साधनका उपदेश (शान्ति० २९० अध्याय) । शिवमहिमाके विषयमें युधिष्ठिरको अपना अनुभव बताना (अनु० १८ । ४०४५)। इनका अपने शिष्योंको विविध ज्ञानपूर्ण उपदेश ( अनु. ९६ । २१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ५७७४ से ५७८६ तक)। पराशरमतानुसार सावित्री
मन्त्रका वर्णन (अनु० १५० अध्याय)। परिक्षित् (परीक्षित्)-(१) कुरुकुमार अविशित्के
प्रथम पुत्र । इनके कक्षसेन, उग्रसेन, चित्रसेन, इन्द्रसेन, सुषेण तथा भीमसेन नामके छः पुत्र थे । ये सभी धर्म और अर्थके ज्ञाता थे (आदि० ९४ । ५२-५४)। (२) कुरुकुमार अनश्वाके पुत्र । इनकी माताका नाम 'अमृता' था । इनके द्वारा सुयशाके गर्भसे भीमसेनका जन्म हुआ था (आदि. ९५ । ४१-४२)। (३) एक पाण्डुवंशीय सम्राट, जो सुभद्राकुमार अभिमन्यु और उत्तराके पुत्र थे (आश्व० ६६ अध्याय)। इनके जन्मकालमें भगवान् श्रीकृष्ण हस्तिनापुरमें विद्यमान थे ( आश्व० ६६ । ८)। ये ब्रह्मास्त्रसे पीड़ित होनेके कारण चेष्टाहीन शवके रूपमें उत्पन्न हुए; अतः स्वजनोंका हर्ष और शोक बढ़ानेवाले हो गये थे (आश्व० ६६ । ९)। इन्हें जीवित करनेके लिये कुन्तीकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना ( आश्व० ६६ । १५२८)। इन्हें जिलाने के लिये रोती हुई सुभद्राकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना ( आश्व० ६७ अध्याय) । श्रीकृष्णका प्रसूतिकागृहमें प्रवेश, उत्तराका विलाप और अपने पत्रको जीवित करनेके लिये उसकी प्रार्थना ( आश्व० ६८ अध्याय)। उत्तराका विलाप और भगवान् श्रीकृष्णका उसके मृत बालकको जीवनदान देना (भाश्व० ६९ अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा परीक्षित्का नामकरण । उत्तराका इन्हें गोदमें लेकर श्रीकृष्णको प्रणाम करना और श्रीकृष्णका शिशु परीक्षितके लिये बहुत-से रत्न उपहारमें देना ( आश्व०७०।९-१२)। इनकी एक मासका अवस्था होनेपर पाण्डवोंका हिमालयसे धन लेकर आना (आश्व० ७० । १३-१४)। युधिष्ठिरद्वारा परीक्षित्का कुरुदेशके राज्यपर अभिषेक (महाप्रस्थान० ५। ७-८)। कृपाचार्यकी पूजा करके युधिष्ठिरका पुरवासियोसहित परीक्षित्को शिष्यभावसे उनकी सेवामें सौंपना ( महाप्रस्थान ५। १४-१५)। इनका माद्रवतीके साथ विवाह और उसके गर्भसे जनमेजय आदिका जन्म (आदि. ९५ । ८५)। इनके तीन पुत्र और थे-श्रुतसेन, उग्रसेन
और भीमसेन (आदि० ३।१७)। ये अपने प्रपितामह पाण्डुकी भाँति शिकार खेलनेके शौकीन थे (आदि. ४० । १०-११)। इनका एक दिन मृगयाके लिये एक गहन वनमें जाकर एक हिंसक पशुको बींधना और उस पशुका अदृश्य हो जाना (आदि० ४० । १३-१६)। थके-माँदे और प्यासे हुए राजाका शमीक मुनिके आश्रमपर आना, अपने बाणोंसे बिंधे हुए पशुका पता पूछना और ध्यानस्थ मुनिके उत्तर न देनेपर कुपित हुए नरेशका उनके कंधेपर एक मरा हुआ साँपको डाल देना (आदि. ४० । १७-२१)। राजाके दुर्व्यवहारसे दुखी हुए ऋषिकुमार कृशका शमीकपुत्र शृङ्गीऋषिको उनके विरुद्ध
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