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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदाति ( १८७ ) परमक्रोधी पदाति-कुरुकुमार जनमेजयके सातवें पुत्र ( आदि० ९४। पयस्य-महर्षि अङ्गिराके वारुणसंज्ञक आठ पुत्रों से एक ५७)। (अनु. ८५ । १३.)। पद्म (प्रथम)-(१) कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न पद्मनामक पयोदा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । एक प्रमुख नाग (आदि. ३५। १०)। (२) २८)। (द्वितीय) कश्यप और कद्रुसे उत्पन्न पद्मनामका दूसरा नाग पयोष्णी-एक परम पवित्र नदी, जो विन्ध्यपर्वतसे निकल( आदि० ३४ । १०)। ये दोनों पद्म वरुणकी सभा कर दक्षिण दिशाकी ओर बहती है । राजा नलने इसे उपस्थित होते हैं (सभा०९।८)। (३) एक समुद्रगामिनी बताकर दमयन्तीको इसका और विन्ध्यराजा, जो यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना पर्वतका दर्शन कराया था ( वन० ६१। २२)। करता है (सभा० ८।२१)। (४) एक निधि, जो सरिताओंमें श्रेष्ठ पयोष्णीमें जाकर स्नान एवं देवताकुबेरकी सभामें उपस्थित रहती है (सभा० १०३९)। पितरोंका पूजन करनेसे तीर्थसेवीको सहस्र गोदानका फल (५) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ५६)। मिलता है (वन० ८५ । ४०)। राजा नृगने पयोष्णीके पनकूट-भगवान् श्रीकृष्णके एक प्रासादका नाम (सभा० तटपर उत्तम वाराहतीर्थमें यज्ञ किया था, जिसमें सोम ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ८१५)। (इस मवनमें पीकर इन्द्र और दक्षिणा पाकर ब्राह्मण मस्त हो गये भगवान की प्रेयसी श्रीसुप्रभाजी रहती थीं।) थे (बन. ८८। ४-६, वन० १२१ । १-२) ! पयोष्णीका जल हाथसे उठाया गया हो, धरतीपर पड़ा हो पद्मकेतन-गरुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक (उद्योग०१०१। या वायुके वेगसे उछलकर शरीरपर पड़ गया हो, वह ११)। जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन्त किये हुए समस्त पापोंको हर लेता पद्मनाभ-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि. है। यहाँ भगवान् शङ्करका शृङ्गनामक वाद्यविशेष है। ६७ । ९६) । (२) नैमिषारण्यमें गोमती-तटपर जिसके दर्शनसे मनुष्यको शिवधामकी प्राप्ति होती है । इसका नागपुरमें निवास करनेवाला एक नाग (शान्ति०३५५ । माहात्म्य दूसरी सभी नदियोंसे बढ़कर है (वन० ८८ । ४)। इसके गुणोंका वर्णन (शान्ति० ३५५। ५ ७-९)। धर्मराज युधिष्ठिर लोमशजी, भाइयों और ११)। इसका अपनी पत्नीसे धर्मविषयक वार्तालाप सेवकोंके साथ विदर्भनरेशद्वारा पूजित उत्तम तीर्थोंवाली (शान्ति० ३५९ अध्याय)। अभिमान और रोष पुष्यसलिला पयोष्णीके तटपर गये थे। उसके जलमें छोड़कर ब्राह्मणको दर्शन देनेके लिये उद्यत होना यशसम्बन्धी सोमरसका सम्मिश्रण हुआ था। धर्मराजने (शान्ति. ३६१।४-१२) । ब्राह्मणके पूछनेपर पयोष्णीके तटपर जाकर उसका जल पीया और वहाँ सूर्यमण्डलकी कथा सुनाना (शान्ति० ३६२ अध्याय)। निवास किया (वन० १२०।३१-३२)। अमूर्तरयाके पद्मसर-एक सरोवर, जहाँ खाण्डवप्रस्थसे गिरिव्रजकी ओर पुत्र राजा गयने इसके तटपर सात अश्वमेध यज्ञ करके जाते समय मार्गमें श्रीकृष्ण, अर्जुन और मीमसेन पहुँचे सोमरसके द्वारा वज्रधारी इन्द्रको संतुष्ट किया था (वन. थे (सभा० २० । २६)। १२५ । ३)। यह भारतकी उन प्रमुख नदियोमेसे पद्मसीगन्धिक-चेदिदेशके पास वनप्रान्तमें स्थित एक है, जिसका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म. ९ कमलमण्डित सरोवर, जहाँ व्यापारियोंके एक दलपर जंगली हाथियोंने आक्रमण किया था (वन०६५। २-८)। पर-(१) एक प्राचीन राजा ( आदि. १।२३४)। पद्मावती-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य ४६ (२) विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु. २०)। पनस-एक वानर-यूथपति, जो सत्तावन करोड सेना साथ परतङ्गण-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९।६४)। लेकर श्रीरामचन्द्रजीके पास आया था (वन २८३। परपुरञ्जय-एक हैहयवंशी राजकुमार, इसके द्वारा हिंसक ६)। इसने पटुश नामक राक्षसके साथ युद्ध किया था पशुके धोखेमें एक ऋषिकी हत्या (वन. १८४ । (वन० २८५ । ९)। ५)। अरिष्टनेमिद्वारा इसके ब्रह्महत्याके भ्रमका निवापम्पासरोवर--ऋष्यमूक पर्वतके पासका एक सरोवर, जिसके __रण (वन० १८४ । १४)। समीप अपने चार मन्त्रियोंके साथ सवर्ण-मालाधारी परमकाम्बोज-पश्चिमोत्तर भारतका एक जनपद, जिसे अजेनने वानरराज वालीके भाई सुग्रीव निवास करते थे (वन जीता था (सभा० २७ । २५)। २७९ । ४४)। परमक्रोधी-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३२)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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