SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पर्व www.kobatirth.org ( १३ ) ( द्रोण० ४८ । १६-१७) । सुबलपुत्र कालकेयको मारना ( द्रोण० ४९ । ७ ।। दुःशासन कुमार की गदा प्रहारसे अभिमन्युका प्राणत्याग द्रोण० ४९ । १३-१४ ) । इन्हें योगी, तपस्वी, मुनियोंके अक्षयलोककी प्राप्ति ( द्रोण ० ७१ । १२ - १६ ) । अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित्का जन्म आश्व० ६९ अध्याय ) । अभिमन्युवधका वृत्तान्त वसुदेवने श्रीकृष्णके मुखसे सुना ( आश्व० ६१ । १५-४२ ) । अभिमन्युका सोमपुत्र वर्चारूपसे सोममें प्रवेश ( स्वर्गा० ५। १८-२० ) । महाभारतमें आये हुए अभिमन्युके नाम --- आर्जुनि, सौभद्रः कार्पिण, अर्जुनात्मज, अर्जुनावर, फाल्गुनि तथा शक्रात्मजात्मज । अभिमन्युवधपर्व - द्रोणपर्वका एक अवान्तरपर्व (अध्याय ३३ से ७१ तक ) अभिषेचनीय- जिसमें पूजनीय पुरुषका अभिषेक - अर्ध्य देकर सम्मान किया जाता है, उस कर्मका नाम ‘अभिषेचनीय' है। यह राजसूय यज्ञका अङ्गभूत सोमयाग - विशेष है ( सभा ० ३६ । १ ) । अभिष्यन्त - महाराज कुरुके द्वारा वाहिनी के गर्भ से उत्पन्न । इनके अन्य भाई अश्ववान्, चैत्ररथ, मुनि और जनमेजय । ये अश्ववान्से छोटे और चैत्ररथसे बड़े थे ( आदि ० ९४ । ५०-५१ ) । अभिसारी - एक प्राचीन नगरी, जिसपर दिग्विजयके समय अर्जुनने विजय पायी ( सभा० २७ । १९ ) । अभीति-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । २७ ) । अभीरू - छठे कालकेयके अंशसे उत्पन्न एक राजर्षि ( आदि० ६७ । ५३ ) । अभीषाह - ( १ ) एक प्राचीन जनपद ( भीष्म० १८ । १२ ) । ( २ ) अभीषाह जनपदके निवासी योद्धा ( भीष्म० ९३ । २ ) । अभीसार- एक प्राचीन भारतीय जनपद ( भीष्म० ९। ९४ )। अमध्य-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम ( शान्ति ० ३४२ । ९० ) । अमरपर्वत - एक प्राचीन स्थान, जिसे नकुलने जीता था ( सभा० ३२ । ११ ) । अमरहद - एक तीर्थ, जिसमें स्नान करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८३ । १०६ ) । अमरावती - देवराज इन्द्रकी पुरी, जहाँ अर्जुन गये थे ( धन० ४२ । ४२६ उद्योग ० १०३ । १ ) । अमावसु- पुरूरवाद्वारा उर्वशीके गर्भ से उत्पन्न एक राजा ( आदि० ७५ | २४ ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्बरीष अमाहठ - धृतराष्ट्र नागके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था (आदि० ५७ । १६ )। अमितध्वज - एक दानव ( शान्ति० २२७ । ५० ) । अमिताशना - स्कन्धकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ७ ) । अमितौजा - एक भयंकर पराक्रमी पाञ्चाल क्षत्रिय, जो केतुमान् नामक असुरके अंशसे प्रकट हुआ था ( आदि० ६७ । १२ ) । पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग ० ४ । १२ ) । पाण्डवपक्षके महारथी वीरोंमें इनकी गणना ( उद्योग ० ७१ । ११) । अमूर्तरया - एक प्राचीन नरेश, जिसके पुत्र राजा गय हुए ( वन० ९५ । १७ ) । इन्हें पूरुसे खनकी प्राप्ति हुई ( शान्ति० १६६ । ७५ ) । For Private And Personal Use Only अमृता - मगधदेशकी राजकुमारी, जो अनश्वाकी पत्नी और रक्षित की माता थी ( आदि० ९५ । ४१ I अमोघ - ( १ ) बृहस्पतिकुलमें उत्पन्न एक अग्नि ( वन० २२० | २४ ) । (२) भद्रवट यात्रा के समय शंकरजीके दाहिने भागमें चलनेवाला एक यक्ष ( वन० २३१ । ३५ ) । ( ३ ) स्कन्दका एक नाम ( वन० २३२ । ५ ) । ( ४ ) भगवान् शिवका एक नाम ( अनु० १७ । ११४ ) | ( ५ ) भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । २५ ) । अमोघा - स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । २१ ) । अम्बरीष - ( १ ) एक प्राचीन नरेश, जो सूर्यवंशी राजा नाभागके पुत्र थे और जिन्होंने यमुनातटपर यज्ञ किया था ( आदि० १ | २२७; भीष्म० ९ । ६ तथा वन० १२९ । २ ) । दुर्वासाद्वारा अम्बरीषके प्रभावका स्मरण ( वन० २५३ । ३३ ) । संजयको समझाते हुए नारदजीद्वारा इनके चरित्रका कथन ( द्रोण ० ६४ अध्याय ) । अम्री अधिकार में पूर्वकालमें यह पृथ्वी थीइसकी चर्चा (शान्ति० ८ । ३३-३४ ) । इनके यज्ञका वर्णन (शान्ति० २९ | १०० - १०४ ) । अपने सेनापति सुदेवकी अपनेसे उत्कृष्ट गति देखकर उसके विषय में इनका इन्द्रसे प्रश्न करना ( शान्ति० ९८ । ६-११ ) । रणयज्ञके विषय में इन्द्रसे प्रश्न ( शान्ति० ९८ । १४ ) । इनके द्वारा ब्राह्मणको ग्यारह अर्बुद गो-दान ( शान्ति ० २३४ । २३ ) । अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होने पर इनका शपथ खाना ( अनु० ९४ । २९ ) । मांस भक्षणनिषेधसे परावर सरका ज्ञान तथा सर्वभूतात्मताकी प्राप्ति ( अनु० ११५ । ५८-५९ ) । इनके द्वारा ब्राह्मणको राज्य-दान ( अनु० १३७ । ८ ) । जिनके नाम प्रातः सायं कीर्तन करनेयोग्य हैं, उन राजाओं में इनकी भी गणना
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy