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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुर्योधन ९१ । १३–१५ ) । कण्वका दुर्योधनको मातलीयोपाख्यान सुनाना और संधिके लिये समझाना तथा इसके द्वारा कण्वमुनिके उपदेशकी अवहेलना (उद्योग० ९७ अध्याय से १०५ अध्यायतक ) । कौरवसभामें श्रीकृष्णको उत्तर देते हुए पाण्डवको सूईकी नोंक बराबर भी भूमि न देनेका निश्चय करना ( उद्योग० १२७ अध्याय ) । कैदकी सम्भावना से इसका कौरवसभासे चला जाना ( उद्योग ० १२८ | २५-२७ ) | श्रीकृष्णको कैद करनेका षड्यन्त्र ( उद्योग० १३० । ४-८ ) । रणयात्राके लिये सेनाको आज्ञा देना ( उद्योग० १५३ । ८-१७) । इसके द्वारा अपने सेनापतियोंका निर्वाचन और अभिषेक ( उद्योग ० १५५ | ३१–३३ ) | इसका भीष्मको प्रधान सेनापतिके पदपर अभिषिक्त करना ( उद्योग० १५६ । २६ ) । रुक्मीकी सहायता लेने से इनकार करना ( उद्योग० १५८ | (३७) । उलूकको दूत बनाकर पाण्डवोंके पास भेजना और श्रीकृष्ण, पाण्डव, द्रुपद, विराट, शिखण्डी और धृष्टद्युम्न आदिको कटुवचनोंद्वारा संदेश कहलाना ( उद्योग ० १६० अध्याय ) । भीष्मसे कौरवपक्ष के अतिथियों का नाम पूछना ( उद्योग० १६५।१२-१६) । भीम पाण्डवपक्ष के अतिरथियोंकी जानकारी प्राप्त करना (उद्योग० १६८ । ३९-४२ ) । शिखण्डीको न मारनेके भीष्मसे इसका प्रश्न ( उद्योग ० १७३ । १-२ ) । भीष्मसे शिखण्डीका जन्मवृत्तान्त पूछना ( उद्योग० १८८५ ) । अपने पक्षके वीरोंसे उनकी शक्तिके विषयमें पूछना ( उद्योग० १९३ । २- ७ ) । कुरुक्षेत्रके मैदान में चलने के लिये सेनाको आशा देना ( उद्योग० १९५ अध्याय ) । भीष्मकी रक्षाके लिये दुःशासनको आदेश ( भीष्म १५ । १२ -२० ) । इसका मणिमय महान् ध्वज नाग-चिह्न से विभूषित था ( भीष्प्र० १७ । २५-२६) । युद्ध के लिये जाते समय गजारूढ़ दुर्योधन और उसके गजकी छटाका वर्णन ( भीष्म० २० । ७-८ ) । द्रोणाचार्य से दोनों पक्षोंके प्रधान प्रधान वीरोंका वर्णन करना ( भीष्म० २५ । ७-११) । प्रथम दिनके संग्राम में भीमसेन के साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५ । १९–२१ ) । भीमसेन के बाणोंसे आहत होकर इसका मूच्छित होना ( भीष्म० ५८ । १७)। भीमको उलाहना देना ( भीष्म० ५८ । ३४ - ४० ) । गजसेना के साथ भीमसेनपर आक्रमण भीष्म० ६२ । ३५ ) | भीमसेनके साथ युद्ध करके इन्हें मूच्छित कर देना ( भीष्म० ६४ । १६- २३ ) | पाण्डवों के विशिष्ट पराक्रमके विषय में भीष्मसे प्रश्न ( भीष्म० ६५ । ३१ - ३४ ) । भीमसेनके साथ युद्ध ( भीष्म० ७३ । १७- २३ ) । भोमसेनद्वारा इसका पराजित और मूच्छित ( १४६ ) दुर्योधन होना ( भीष्म० ७९ । ११ - १६ ) । भीमसेनके पराक्रमसे भयभीत होकर इसकी भीष्मसे प्रार्थना ( भीष्म ८० । ४-६ ) । धृष्टद्युम्नद्वारा इसका पराजित होना ( भीष्म० ८२ । ५३ ) । भीमसेनद्वारा एक साथ आठ भाइयोंके मारे जाने से भीष्म के पास जाकर इसका विलाप करना ( भीष्म० ८८ । ३७-३८ ) । घटोत्कचके साथ इसका युद्ध और उसके साथी चार राक्षसोका इसके द्वारा वध ( भीष्म० ९१ । २०-२१ ) । घटोत्कचके प्रहारसे इसका प्राण संकटको स्थिति में पड़ जाना ( भीष्म० ९२ । १४ ) । इसके प्रहारसे भीमसेनका मूर्च्छित होना ( भीष्म० ९४ । ५-६ ) । घटोत्कचसे पराजित होकर भोप्यसे दुःख प्रकट करना ( भीष्म ९५ । ३ - १५ ) । भोष्मसे पाण्डवोंको मारने अथवा कर्णको युद्धके लिये आज्ञा देनेका अनुरोध करना ( भीष्म० ९७ । ३६ - ४२ ) । भीष्मकी रक्षाकी व्यवस्थाके लिये दुःशासनको आदेश ( भीष्म० ९८ । ३१-४२; भो०म० १०५ । २-६ ) । शल्यको युधिष्ठिरको रोकने के लिये आदेश देना ( भीष्म० १०५ ॥ २६ - २८ ) । अपनी सेनाको मारी जाती देख भीमसे इसकी प्रार्थना ( भीष्म० १०९ । १६-२३ ) । सात्यकिके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ११० । १४; भीष्म० १११ । १४–१८ ) । अभिमन्यु के साथ युद्ध ( भीष्म० ११६ । १-८ ) । इसके द्वारा अपने सैनिकोंको प्रोत्साहन ( भीष्म० ११७ । २६-३० ) । सेनापतिकी आवश्यकताका वर्णन करते हुए कर्ण से अनुमति लेना ( द्रोण० ५। ५ - १२ ) । द्रोणाचार्य से सेनापति होनेके लिये प्रार्थना करना ( द्रोण० ६ । २-११ ) । इसके द्वारा द्रोणाचार्यका सेनापति के पदपर अभिषेक ( द्रोण० ७।५ ) | युधिष्ठिरको जीवित पकड़ लाने के लिये द्रोणाचार्यसे वर माँगना ( द्रोण० १२ । ६ ) । पाण्डवोंकी सेनाको द्रोणाचार्यद्वारा विचलित हुई देख कर्ण से इसका हर्षपूर्ण वार्तालाप (द्रोण० २२ । ११-१७) । द्रोणाचार्यको उपालम्भ देना ( द्रोण० ३३ । ७ -९ ) । अभिमन्युको मारनेके लिये अपने महारथियोंको आदेश देना ( द्रोण० ३९ | १६ - १९ ) । अभिमन्युसे युद्ध करनेके लिये कर्णको प्रेरित करना ( द्रोण० ४० । २३ - २५ ) । अभिमन्युके प्रहारसे पीड़ित होकर भागना ( द्रोण० ४५ | ३० ) । अर्जुन के भय से भीत जयद्रथको इसका आश्वासन ( द्रोण० ७४ । १४ - २० ) । द्रोणाचार्यको उपालम्भ ( द्रोण० ९४ । ४-१८ ) । अर्जुन से युद्ध करनेमें अपनो असमर्थता प्रकट करना ( द्रोण० ९४ । २७ - ३२ ) । द्रोणाचार्यद्वारा बाँधे गये दिव्य कवचसे युक्त होकर युद्धके लिये जाना ( द्रोण० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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