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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाशाही दीर्घ दाशाही-दशाह -कुलमें उत्पन्न वृष्णिवंशियोंकी सभा तथा (आदि० ९४ । २४ ) । (२) एक राजा, जो दधिदशा है-कुलकी कन्या ( सभा० ३८ । २९ के बाद वाहनका पुत्र था । इसका पुत्र महर्षि गौतमद्वारा दा. पाठ, पृष्ठ ८०६)। (दशाह-कुलकी कन्या होनेसे परशुरामके क्षत्रियसंहारसे बचाया और सुरक्षित रखा ही भुमन्युपत्नी विजया, विकुण्ठनपत्नी सुदेवा, कुरु- गया था (शान्ति० ४९ । ८.)। पत्नी शुभाङ्गी, पाण्डुपत्नी कुन्ती और अर्जुनपत्नी सुभद्रा दिवोदास-ये काशी जनपदके राजा तथा सुदेव अथवा आदि दाशाहीं कही गयी हैं।) भीमसेनके पुत्र थे । इनका गालवको दो सौ श्यामकर्ण दाशेरक-क्षत्रियोंका एक वर्ग ( भीष्म० ५० । ४७)। घोड़े शुल्कमें देकर ययातिकन्या माधवीको एक पुत्रकी दासी-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं उत्पत्ति के लिये अपनी पत्नी बनाना ( उद्योग० ११७ । (भीष्म० १।३१)। १-७)। पुत्रोत्पत्तिके बाद पुनः गालवको माधवी वापस देना ( उद्योग० ११७।८-२१)।ये यमसभामें रहकर दिक-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते है (सभा०८ । १२)। (भीष्म ९ । १९)। ये शत्रुओंके यहाँसे अग्निहोत्र और उसकी सामग्री भी हर दिग्विजयपर्व-सभापर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय लानेके कारण तिरस्कारको प्राप्त हुए (शान्ति० ९६ । २५ से ३२ तक)। २१)। इन्होंने इन्द्रकी आज्ञासे वाराणसी नगरी बसायी दिति-दक्षप्रजापतिकी पुत्री, महर्षि कश्यपकी पत्नी और थी ( अनु० ३० । १६)। ये अपने शत्रु हैहयदैत्योंकी माता (आदि० ६५ । १२)। दितिका एक राजकुमारोंसे एक सहस्र दिनोंतक युद्ध करके सेना और ही पुत्र जिसका नाम विख्यात हुआ था हिरण्यकशिपु वाहनोंके मारे जानेपर भाग निकले और भरद्वाजकी (आदि० ६५ । १७)। ये ब्रह्माजीकी सभामें शरणमें गये, वहाँ मुनिने पुत्रेष्टि-यज्ञ करवाया, जिससे इन्हें विराजमान होते हैं (सभा० ११ ३९)। प्रतर्दन नामक पुत्रकी प्राप्ति हुई ( अनु० ३० । दिलीप-(१) सगरके प्रपौत्र, अंशुमान्के पुत्र और २०-३०)। दिवोदासने अपने पुत्र प्रतर्दनको युवराज भगीरथके पिता, इनका राज्याभिषेक तथा इनका बनाकर उसे बीतहव्यके पुत्रोंका वध करनेके लिये भेजा अपने पुत्रको राज्य देकर वनगमन (वन० १०७। था ( अनु० ३० । ३६-३७)। ६३-६९ )। श्रीकृष्णद्वारा युधिष्ठिरके समक्ष इनके महाभारतमें आये हुए दिवोदासके नाम-भैमसेनि) चरित्रका वर्णन (द्रोण. ६१ अध्याय; शान्ति० २९ । काशीश, सौदेव, सुदेवतनय आदि । ७१-८.)। ये अनेक बार गोदान करके उसके प्रभावसे दिव्यकट-एक पश्चिम दिशावर्ती नगर, जिसे नकुलने स्वर्गको प्राप्त हुए थे ( अनु० ७६ । २६)। अगस्त्य दिग्विजयके समय अपने अधिकारमें कर लिया था जीके कमलोको चोरी होनेपर इनका शपथ खाना (सभा० ३२ । ११)। (अनु० ९४ । २३)। ये मांस-भक्षणका निषेध करनेके कारण सम्पूर्ण भूतोंके आत्मस्वरूप हो गये और इन्हें दिव्यकर्मकृत्-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५)। परावरतत्वका ज्ञान हो गया था ( अनु० ११५। दिव्यसानु-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३०)। ५८.५९)। यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना दिशाचक्षु-गरुड़के प्रमुख संतानों से एक (उद्योग० करते हैं (सभा० ८ । १४)। (२) एक कश्यपवंशी १०१ । १०)। नाग ( उद्योग० १०३ । १५)। दीप्तकेतु-एक प्राचीन नरेश ( आदि० १ । २३७)। दिलीपाश्रम-एम तीर्थ, जहाँ काशिराजकी कन्या अम्बाने दीप्तरोमा-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३१)। कठोर व्रतका आश्रय ले तप किया था ( उद्योग दीप्ताक्ष-एक क्षत्रियकुल, जिसमें पुरूरवा नामक कुलाङ्गार १८६।२८)। राजा प्रकट हुआ था ( उद्योग० ७४ । १५)। दिवःपुत्र-विवस्वान्के बोधक या स्वरूपभूत बारह सूर्योमेंसे। एक (आदि०५ । ४२)। दीप्ति-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३४ )। दिवाकर-( १ ) भगवान् सूर्यका एक नाम (वन० दीप्तोदक-एक तीर्थ, जहाँ देवयुगमें भृगुजीने तपस्या की थी ११८ । १२)। (२) गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे (वन० ९९ । ६९)। एक (उद्योग० १०१।१४)। दीर्घ-मगधका एक राजा, जो राजगृहमें पाण्डुके द्वारा दिविरथ-(१) सम्राट भरतके पौत्र एवं भुमन्युके पुत्र मारा गया था ( आदि० ११२ । २७)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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