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त्रिजटा
( १३३ )
त्रिस्थान
८)। त्रिगर्तराज पाँच भाई थे और पाँचों उदार रथी त्रिपुर-मयासुरद्वारा निर्मित असुरोंके तीन पुर या नगर, थे, इनमें प्रधान सल्यरथ था ( उद्योग० १६६ । ९- जो सोने, चाँदी और लोहेके बने हुए थे। इनके स्वामी ११)। ये भीष्मनिर्मित गरुड़व्यूहमें मस्तकस्थानपर क्रमशः कमलाक्ष, ताराक्ष और विद्युन्माली थे । भगवान् खड़े किये गये थे (भीष्म० ५६ अध्याय)। अर्जुन और शंकरने इन तीनों पुरों और वहाँ रहनेवाले असुरोंका अभिमन्युपर त्रिगाने धावा किया था (भीष्म० ६१ नाश किया था (कर्ण०३३ अध्यायसे ३४ अध्यायतक)। अध्याय)। नकुल के साथ इनका युद्ध (भीष्म० ७२ त्रिपरा-एक भारतीय जनपद, जिसे कर्णने जीता था अध्याय)। अर्जुनने इनपर वायव्यास्त्र छोड़ा था (भीष्म
(वन० २५४ अध्याय)। कोसलनरेश बृहद्दल त्रिपुराके १०२ अध्याय)। पहले कर्णने इनको परास्त किया था सैनिकोंके साथ थे (भीष्म० ८७।९)। (द्रोण. ४ अध्याय; कर्ण० ८ अध्याय)। श्रीकृष्णने भी
त्रिपुरी-एक दक्षिण भारतीय जनपद, जिसके राजाको सहइनपर विजय पायी थी (द्रोण० ११ अध्याय)। सत्य
देवने दिग्विजयके समय जीता था ( सभा०३१ । ६०)। रथ आदि पाँचों भाइयोंने यह प्रतिज्ञा की थी कि या तो । अर्जुन को मारेंगे या मर जायँगे' इसीलिये ये संशतक कहलाये ।
र त्रिराव-गरुड़के प्रमुख संतानों मेंसे एक ( उद्योग (द्रोण० १७ अध्यायः द्रोण० १९ अध्याय)। परशुरामजीने
१०१। ११)। भी कभी त्रिगतॊका संहार किया था (द्रोण०७० अध्याय)। त्रिवर्चा (त्रिवर्चक)-अङ्गिराके पुत्र एक ऋषि, जिन्होंने सात्यकिके साथ त्रिगोंका युद्ध (द्रोण. १४१ अध्याय)। अन्य चार ऋषियोंके साथ ता करके पाञ्चजन्य नामक युधिष्ठिरके द्वारा त्रिगोंका वध (द्रोण. १५७ अध्याय)। अग्निस्वरूप पुत्रको जन्म दिया था (वन० २२० । त्रिगाने अर्जुन और श्रीकृष्णपर धावा किया (शल्य० २७१-५)। अध्याय)। अश्वमेधयशके अश्वकी रक्षाके लिये गये हुए त्रिविष्टप-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ पापनाशिनी अर्जुनद्वारा इन सबकी पराजय (आश्व०७४ अध्याय)। वैतरणीमें स्नान करके भगवान् शिवको पूजा करनेसे (२) त्रिगर्त-नामधारी एक राजा, जो यमकी सभामें मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो परम गतिको प्रात होता है विराजते हैं (सभा० ८।२०)।
(वन० ८३ । ८४-८५ )। त्रिजटा-एक राक्षसी, जो अशोकवाटिकामें सीताजीको आश्वा-त्रिशक-एक राजा, जिन्हें गरुके शापसे हीनावस्था में पड़े
सन दिया करती थी । इसने अविन्ध्यका संदेश और अपना होनेपर भी महातपस्वी विश्वामित्रने स्वर्गलोकमें पहुँचाया था स्वप्न सीताजीको सुनाया था (वन० २८० । ५४--
( आदि० ७१ । ३४ और उसके बाद दो श्लोक दा. ७२)। श्रीरामका त्रिजटाको धन आदि देकर संतुष्ट
पाठ)। ये इक्ष्वाकु-कुलमें उत्पन्न हुए थे, अयोध्याके करना (वन० २९१ । ४१)।
राजा थे और विश्वामित्रसे मेलजोल रखते थे। इनकी त्रित-धर्मपरायण प्रजापति गौतमके तीन पुत्रों से एक, उनके पत्नी केकय-राजकुमारी सत्यवती थी, इन्हीं के पुत्र
दूसरे दो भाई एकत और द्वित थे। तीनों ही मुनि और। सत्यप्रतिज्ञ हरिश्चन्द्र थे (सभा० १२। 10 के बाद दा० ब्रह्मवादी थे। इन सबने तपस्याद्वारा ब्रह्मलोकपर विजय पाठ )। पायी थी (शल्य० ३६ । ७-९)। त्रित मुनिके कूपमें त्रिशिरा-ये त्वष्टाके पुत्र थे। इनका दूसरा नाम विश्वरूप गिरने, वहाँ यज्ञ करने और अपने भाइयोंको शाप देने- या ( उद्योग. १।३)। इनका अपराओंके लुभानेपर की कथा (शल्य० ३६ अध्याय)। ये उपरिचरवसुके भी शान्त रहना (उद्योग० ९ । १५-१६) । इन्द्रके यज्ञमें सदस्य थे (शान्ति० ३३६ । ६) भीष्मजीके
वन-प्रहारसे इनकी मृत्यु ( उद्योग. ९ । २४)। महाप्रयाणके समय उन्हें देखने आये हुए महर्षियोंमें
त्रिशूलखात-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करके देवता और पितरोंकी ये भी थे (अनु० २६ । ६)। वरुणके सात ऋत्विजों
पूजा करनेसे मनुष्य देह त्यागके पश्चात् गणपतिपद प्राप्त मेंसे एक ये भी हैं। ये पश्चिमदिशामें निवास करनेवाले
कर लेता है (वन० ८४ । 11-१२)। ऋषि हैं (अनु० १५० । ३६-३७)।
त्रिषवण-एक दिव्य महर्षि, जिन्होंने शान्तिदूत बनकर त्रिदिवा-(१) एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवर्षको त्रिषवण-एक दिव्य । प्रजा पीती है (भीष्म० ९ । १७) । (२)एक प्रमुख
हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णसे मार्गमें भेंट की थी नदी, जिसका जल भारतवर्षकी प्रजा पीती है (भीष्म
(उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दा. पाठ)। ९।१८)।
त्रिस्थान-एक तीर्थ, जहाँ एक मासतक निराहार रहकर त्रिपाद-एक राक्षस, जिसका स्कन्दद्वारा वध हुआ (शल्य. स्नान करनेसे देवताओंका दर्शन होता है (अनु० २५।
४६ । ७५)।
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