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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्रा ( ११६ ) चित्रोपला चित्रा-एक अप्सरा, जिसने अष्टावकके सम्मानार्थ कुबेरकी इसका संतप्त हृदयसे समराङ्गणमें आना और पतिदेवकी सभामें नृत्य किया था ( अनु० १९ । ४४)। दशाका निरीक्षण (भाश्व० ७९ । ३७-३९) । पतिचित्राक्ष-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक (आदि. ६७ । ९५ वियोगके शोकसे संतप्त हो मूञ्छित होकर गिरना, कुछ आदि. ११६ । ४)। भीमसेनद्वारा वध (द्रोण. देर बाद होशमें आनेपर उलूपीको सामने खड़ी देखना १३६ ।२०-२२)। और उसे उपालम्भ देकर उससे अर्जुनके प्राण बचानेका अनुरोध करना (भाश्व० ८० । २-७)। पतिके चित्राङ्क (चित्राङ्गद या श्रुतान्तक )-धृतराष्ट्र के सौ निकट जाकर इसका विलाप करना (आश्व० ८.16पुत्रोंमेंसे एक (आदि. ११६ । ६)। भीमसेनद्वारा ११ )। पुनः उलूपीसे पतिको जिलानेके लिये इसका वध (शल्य. २६ । १०-११)। अनुरोध करना (आश्व.८०।१२-१७)। आमरण चित्राङ्गद (चित्राङ्ग)-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक। उपवासका संकल्प लेकर बैठना (आश्व०८०।१८)। 'श्रुतान्तक' नामसे भीमसेनदारा इसका वध (शल्य. चित्राङ्गदाका उलूपी तथा बभ्रुवाहनके साथ हस्तिनापुरमें २६।१०)। (२) महाराज शान्तनुके द्वारा सत्यवतीके जाना (आश्व०८७।२६)। इसका कुन्ती और द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न एवं विचित्रवीर्यके अग्रज (भादि० ९५। चरणोंका स्पर्श करना और सुभद्रा आदिसे मिलना ४९-५०, आदि. १०१।२)। पिताके स्वर्गवासी (आश्व०८८ । २-३)। कुन्ती, द्रौपदी और सुभद्रा होनेपर भीष्मद्वारा इनका राज्याभिषेक (आदि. १०१। आदिका चित्राङ्गदाके लिये विविध रत्नोंकी भेंट देना ५) चित्राङ्गद नामक गन्धर्वके साथ इनका भीषण ( आश्व० ८८ । ३-४ )। इसका दासीकी भाँति संग्राम और उसके द्वारा इनकी मृत्यु (आदि. १०१। गान्धारीकी सेवामें संलग्न होना (भाश्रम १ । २३. ९)। भीष्मद्वारा इनका अन्त्येष्टि-संस्कार ( आदि. २४) । वनमें जाते हुए धृतराष्ट्र और गान्धारीके साथ १०१।११)। (३) एक गन्धर्व, जिसके द्वारा कुरुकुलकी अन्य स्त्रियोसहित चित्राङ्गदाका भी धरसे बाहर शान्तनुपुत्र चित्राङ्गदका वध किया गया ( आदि. निकलना और रोना ( आश्रम. १५ । १०)। १०१।९)। (४) द्रौपदीके स्वयंवरमें आये हुए __संजयका आश्रमवासी मुनियोंको कुरुकुलकी स्त्रियोंका एक राजा (सम्भव है, ये कलिङ्गराज या दशार्णराजमेसे परिचय देते समय चित्राङ्गदाकी अङ्गकान्तिको नूतन कोई रहे हो।) (आदि. १८५। २२) । (५) मधूकपुष्पकी भाँति गौर बताना (भाश्रम. २५ । कलिङ्गदेशके एक राजा, जिनके यहाँ किसी समय स्वयंवर ११)। पाण्डवोंके महाप्रस्थानके पश्चात् इसका मणिपूर' महोत्सवमें देश-देशके राजा एकत्र हुए थे (शान्ति. नामक नगरको जाना (महाप्रस्थान०१। १८)। ४।२)। (६) महाबली शत्रमर्दन दशार्णनरेश, (२) एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रके सम्मानार्थ कुबेरकी जिनके साथ अश्वमेध-सम्बन्धी अश्वकी रक्षाके समय सभा नृत्य किया था (अनु० १९ । ४४) । अर्जुनका बड़ा भयङ्कर युद्ध हुआ और ये अर्जुनके अधीन चित्रायुध (या चित्रबाहु)-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंहो गये (आश्व० ८३ । ५-७)। मेंसे एक (आदि. ६७ । ९७)। भीमसेनद्वारा इसका वध चित्राङ्गदा-(१) मणिपूरनरेश चित्रवाहनकी पुत्री (द्रोण० १३६ । २०-२२)। (२)(दृढ़ायुध) धृतराष्ट्र के (आदि० २१४ । १५)। नगरमें विचरण करती हुई सौ पुत्रों से एक (आदि०११६।८)। भीमसेनद्वारा इसका इस राजकुमारोपर अर्जुनकी दृष्टि पड़ी और वे वध (द्रोण. १३७ । २९) (३)सिंहपुर-नरेश, जिनकी इसे चाहने लगे ( आदि० २१४ । १६)। राजधानी सिंहपुरपर अर्जुनने दिग्विजयके समय आक्रमण चित्राङ्गदाके पितासे उनका इसे अपनी पत्नी बनानेके लिये किया और उसे युद्ध में जीत लिया (सभा०२७।२०)। (४) माँगना (आदि० २१४ । १७) । अर्जुनद्वारा इसका चेदिदेशके एक महारथी योद्धा, जो पाण्डव पक्षमें थे। उनके पाणिग्रहण (आदि० २१४।२६) । इसके गर्भसे घोड़े लाल और आयुध आदि विचित्र थे (द्रोण०२३४५६अर्जुनद्वारा एक पुत्रका जन्म और अर्जुनका चित्राङ्गदाको ६४)। कर्णद्वारा इनका वध (कर्ण० ५६ । ४९)। हृदयसे लगाकर वहाँसे प्रस्थित हो जाना (आदि० २१४। चित्राश्व-सत्यवान्का दूसरा नाम । इन्हें अश्व बहुत प्रिय २७)। इससे मिलनेके लिये अर्जुनका पुनः मणिपूरमें थे। ये मिट्टीके अश्व बनाया करते थे और चित्रमें अध आगमन ( आदि. २१६ । २३)। मणिपूरसे जाते ही अङ्कित करते थे, इसलिये लोग इन्हें चित्राश्व' समय इसको अर्जुनका आश्वासन तथा राजसूय यज्ञमें भी कहते थे (वन० २९४ । १३)। आनेका आदेश (आदि. २१६। २६-३४)। चित्रोपला-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा बभ्रवाहन और अर्जुनके युद्ध में दोनोंके धराशायी होनेपर पीती है (भीष्म०९।३४)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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