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चित्रदेव
( ११४ )
चित्रलेखा
चित्रदेव-स्कन्दका सैनिक या पार्षद, जो ब्राह्मणोंका प्रेमी १६९ । ५८ ) । इसका पाण्डवोंपर अपने आक्रमण है ( शल्य०१५। ७१)।
और पराजयका कारण बताना ( आदि. १६९ । चित्रधर्मा-भूमण्डलका एक नरेश, जिसके रूपमें विरूपाक्ष
६०-७२ )। किसी श्रोत्रिय ब्राह्मणको पुरोहितरूपमें नाम दैत्य ही उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । २२-२३)।
वरण करनेके लिये इसकी अर्जुनको प्रेरणा (आदि. पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रण-निमन्त्रण भेजा गया
१६९ । ७१-८०)। इसका अर्जुनको तपती और था ( उद्योग० ४ । १३)।
संवरणकी कथा सुनाना (आदि० १७० अध्यायसे १७२
तक ) । वशिष्ठके साथ विश्वामित्रके वैरका कारण चित्रपुष्प-विचित्र पुष्पं से भरा हुआ एक वन, जो द्वारकाके
सुनाकर इसके द्वारा वशिष्ठके अद्भुत क्षमावलका वर्णन पश्चिमवर्ती सुकक्ष नामक रजतपर्वतपर सुशोभित था
(आदि. १७३ अध्यायसे १७४ अध्यायतक) । इसका (सभा० ३८ । पृष्ठ ८१२)।
शक्तिके शापसे राक्षसभावको प्राप्त हुए राजा चित्रबह-गरुड़की प्रमुख संतानों से एक ( उद्योग०
कल्माषपादके द्वारा विश्वामित्रकी प्रेरणासे वशिष्ठके १०१।१२)।
पुत्रोंके भक्षण एवं वशिष्ठके शोककी कथा सुनाना चित्रबाण (नामान्तर-चित्र या चित्रक)-धृतराष्ट्रके (आदि० १७५ अध्याय)। इसके द्वारा कल्माषपादके सौ पुत्रों से एक (आदि० ११६ । ४) । भीमसेनद्वारा
उद्धार और वशिष्ठजीसे उन्हें अश्मक नामक पुत्रकी प्राप्तिवध ( दोण० १३७ । २९)।
का वर्णन ( आदि. १७६ अध्याय )। शक्तिपुत्र चित्रबाहु (चित्रायुध )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक पराशरके जन्म और पिताकी मृत्युका हाल सुनकर कुपित
(आदि० ६७ । ९७, आदि० ११६ । ८)। हुए पराशरको शान्त करनेके लिये वसिष्ठजीके और्वोपाख्यान चित्रायुध नामसे इसका भीमसेनद्वारा वध (द्रोण. सुनानेकी कथाका वर्णन (आदि. १७७ अध्यायसे १७८, १३६ । २०-२२)।
१७९ अध्यायतक)। पराशरके राक्षससत्रके आरम्भ और चित्ररथ-(१) एक देवगन्धर्व, जो पिता कश्यप और
समाप्ति तथा कल्माषपादको ब्राह्मणी आङ्गिरसीके शापकी माता मुनिका पुत्र था (आदि. ६५ । ४३)। यह
कथा कहना (आदि. १८० अध्यायसे १८१ अध्यायतक)। अर्जुनके जन्मोत्सवमें गया था (आदि. १२२ । ५६)।
अर्जुनके पूछनेपर इसका धौम्यको पुरोहित बनानेकी यही गन्धर्वराज अङ्गारपर्णके नामसे विख्यात था (आदि.
सलाह देना ( आदि. १८२ । १.२)। चित्ररथका १६९ । ५ ) । प्रदोषकालमें गङ्गाजीके जलके भीतर
अर्जुनसे आग्नेयास्त्रको ग्रहण करना (आदि० १८२ । ३)। अपनी स्त्रियोंके साथ क्रीड़ा करते समय पाण्डवोंके वहाँ
यह कुबेरकी सभामें रहकर भगवान् धनाध्यक्षकी उपासना आ जानेसे इसका उनके ऊपर क्रोध प्रकट करना और
करता है (सभा. १०।२६)। इसने राजा युधिष्ठिर
को चार सौ दिव्य घोड़े दिये, जो वायुके समान फटकारना ( आदि. १६९ । ५-१५)। गन्धर्वको अर्जुनका मुँहतोड़ उत्तर (आदि० १६९ । १६-२४)।
वेगशाली थे ( सभा० ५२ । २३)। यह गन्धर्वोद्वारा अर्जुनके साथ इसका युद्ध (आदि. १६९ । २५)।
पृथ्वीदोहनके समय बछड़ा बना था (द्रोण० ६९।२५)। अर्जुनके आग्नेयास्त्रसे इसके रथका दग्ध होना और महाभारतमें आये हुए चित्ररथके नाम-अङ्गारपर्ण, इसकी मूर्छा तथा अर्जुनका इसे युधिष्ठिरके पास घसीट दग्धरथ, गन्धर्व और गन्धर्वराज इत्यादि । ले जाना (आदि. १६९ । ३१-३३)। इसकी जीवन- (२)मार्तिकावत देशका राजा. जिसकी अपनी पत्नीके साथ । रक्षाके लिये युधिष्ठिरसे कुम्भीनसीकी प्रार्थना (आदि. की हुई जलक्रीडाको रेणुकाने देखा था ( वन० . १६९ । ३५)। अर्जुनद्वारा इसको जीवनदान (आदि. ११६ । ७)। ( ३ ) एक पाञ्चाल राजकुमार १६९ । ३७)। इसका चित्ररथ नाम होनेका कारण द्रोणाचार्यद्वारा इसका वध (द्रोण. १२२ । ४३-४९)। तथा अर्जुनके कारण इसका 'दग्धरथ' नाम होना (४) अङ्गदेशके एक राजा, जो देवशर्माकी पत्नी ( आदि. १६९ । ४० )। इसके द्वारा विश्वावसुसे रुचिकी बहिन प्रभावतीके पति थे (अनु० ४२ । ८)। अपनेको चाक्षुषी विद्याकी प्राप्तिका कथन और चाक्षुषी (५) यदुवंशी उषङ्गुके पुत्र एवं शूरके पिता (अनु. विद्याके महत्त्वका वर्णन (आदि. १६९ । ४३-४६)। १४७ । २९)। इसके द्वारा पाण्डवोंको गन्धर्वदेशीय दिव्य अश्वोंका दान
चित्ररथा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा और उनकी प्रशंसा ( आदि. १६९ । ४४-५४ )।
पीती है (भीष्म० ९ । ३४)। इसका अर्जुनको चाक्षुषी विद्या प्रदान करना (आदि० १६९ । ५६)। अर्जुनके साथ इसकी मित्रता ( आदि० चित्रलेखा-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके स्वागत-समारोह
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