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५ नक्षत्र-इन्द्रभूति का ज्येष्ठ, अग्निभूति की कृतिका, वायुभूति का स्वाति, व्यक्त का श्रवण, सुधर्मा स्वामी का उत्तराफाल्गुनी, मण्डित का मघा, मोरिअपुत्र का मृगशिरा, अकम्पित का उत्तराषाढा, अचलभाता का मृगशिरा, मेतार्य का अश्विनी प्रभास का पुष्य नक्षत्र था ।
६ गोत्रः-तीनों भाई गौतम गोत्रीय, व्यक्त मारद्वाज गोत्रीय, सुधर्मा स्वामी अग्नि वेश्यायन गोत्रीय, मण्डित वाशिष्ट गोत्रीय, मोरिअपुत्र काश्यप गोत्रीय, अकम्पित गौतम गोत्रीय, अचलभाता हारीत गोत्रीय, मेतार्य और प्रभास स्वामी कौडिन्य गोत्रज थे। ___७ गृहस्थ पर्याय-इन्द्रभूति का ५० वर्ष, अग्निभूति का ४६ वर्ष, वायुभूति का ४२ वर्ष, व्यक्त का ५० वर्ष, मण्डित का ५३ वर्ष, मोरिअपुत्र का ६५ वर्ष, अकम्पित का ४८ वर्ण, अचलभ्राता का ४६ वर्ग, मेतार्य का ३६ वर्ष, प्रभास स्वामी का १६ वर्ष था।
८संशय-इन्द्रभूति का जीव विषयक संशय भगवान महावीर ने मिटाया । अग्निभूति का कर्म विषयक, वायुभूति का जीव-शरीर विषयक, व्यक्त का पंच महाभूत विषयक,सुधर्मा स्वामी का जैसा यह भव वैसा ही परभव,मंडित का बन्ध मोक्ष विषयक, मोरिअपुत्र का देव सम्बन्धी, अकम्पित का नरक सम्बन्धी, अचलभाता का पुण्य पाप सम्बन्धी, मेतार्य का परलोक विषयक एवं प्रभास स्वामी का निर्वाण विषयक सन्देह भगवान ने मिटाया था।
६-१०-११-१२ द्वार:-ग्यारह गणधरों का दीक्षा दिवस एकादशी है । यज्ञवाटिका में उपस्थितों ने समवशरण में देवों का आगमन देखकर वैशाख शुक्ल ११ के दिन, मध्यम पापानगरी में, महसेन वनोद्यान में पूर्वाण्ह देश और पूर्वाण्ह काल में भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की थी।
१३ ब्रत परिवार-इन्द्रभूति आदि पाँचों पाँचसौ छात्रों के साथ दीक्षित हुए मंडित व मोरियपुत्र साढ़े तीन सौ एवं अकम्पितादि चारों गणधर तीन सौ-तीन सौ छात्रों के साथ प्रत्येक दीक्षित हुए थे।
१४ छद्मस्थ पर्याय-इन्द्रभूति का ३० वर्ष, अग्निभूति का बारह वर्ष, वायुभूति का दस वर्ष, व्यक्त का १२ वर्ष, सुधर्मा स्वामी का बयालीस वर्ष, मण्डित और मोरियपुत्र का चौदह वर्ष, अकम्पित का नौ वर्ष, अचलभ्राता का बारह वर्ष , मेतार्य का और प्रभास का आठ वर्ष का छद्मस्थ काल है ।
१५ केवलत्त्व-इन्द्रभूति गणधर बारह वर्ष, अग्निभूत सोलह वर्ष, वायुभूति ओर व्यक्त अठारह वर्ष, आर्य सुधर्मा स्वामी आठ वर्ष मण्डित-मोरिय
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