________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री जिनप्रभसूरिकृत महावीर गणधर कल्प
श्री वीरप्रभु के ब्राह्मण वंशोत्पन्न ग्यारह गणधरों को नमस्कार करके शास्त्रों के अनुसार उनका लेश मात्र कल्प कहता हूँ ।
नाम १, स्थान २, पिता ३, माता ४, जन्म नक्षत्र ५, गोत्रादि ६, गृहपर्याय ७, संशय ८, व्रत दिवस ६, नगर १०, देश ११, काल १२, व्रत परिवार १३, छद्मस्थ १४, केवलित्व वर्ष संख्या १५, रूप १६, लब्धि १७, आयुष्य १८, मोक्ष स्थान १६, और तप २०, आदि द्वार ( वर्णन करता हूँ)।
१ गणधरों के नाम-१ इन्द्रभूति, २ अग्निभूति, ३ वायुभूति, ४ व्यक्त, “५ सुधर्मास्वामी, ६ मण्डित, ७ मोरियपुत्र, ८ अकंपित, ६ अचलभ्राता, १० मेतार्य ११ प्रभास ।
२ स्थान-इन्द्रभूति आदि ३ सहोदर मगधदेश के गोबर गाँव में उत्पन्न हुए। व्यक्त और सुधर्मास्वामी कोल्लाग सन्निवेश में। मंडित और मोरियपुत्र दोनों मोरिअ सन्निवेश में। अकंपित मिथिला में । अचलभाता कोशला में। मेतार्य वत्सदेश के हँगिय सन्निवेश में और प्रभास स्वामी -राजगृह में उत्पन्न हुए।
३ पिता-तीन सहोदरों के पिता वसुभूति, व्यक्त को धन मित्र आर्य सुधर्म का धम्मिल, मण्डित का धनदेव मोरियपुत्र का मोरिअ अकम्पित के पिता देव, अचलभाता के वसुदत्त, मेतार्य के दत्त और प्रभासस्वामी के पिता का नाम बल था। ___ ४ माता-तीन भ्राताओं की जननी पृथ्वी, व्यक्त की वीरुणी, सुधर्म की भद्दिला, मंडित की विजयदेवा एवं मोरिअपुत्र की भी वही, क्योंकि धनदेव के परलोक गत होने से मोरिअ ने उसे संगहीत किया क्योंकि उस देश में ऐसा होना निर्विरोध था। अकम्पित की जयन्ती, अचलभाता की नन्दा, मेतार्य की वरुणदेवा और प्रभास की माता अतिभद्र थी।
१४ ]
For Private and Personal Use Only