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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुव्वर गाँव भी उसी के पास था। सूरजकुण्ड पर प्राप्त अभिलेख में " नालन्दा उल्लेख का मैं आगे लिख चुका हूँ। वड़गाँव- नालन्दा के बाह्य भाग में विश्व - विद्यालय था । इस समय जैन धर्मशाला के अन्दर प्रविष्ट होते ही दाहिनी ओर द्वितल शिखरबद्ध जिनालय है और सामने बगीचे के बीच में दादासाहब का गुरुमन्दिर है । मन्दिर में जिनेश्वर भगवान की सात प्रतिमाएँ हैं जिन में तीन ऋषभदेव स्वामी की दो पार्श्वनाथ भगवान की, एक शान्तिनाथ जी की और एक महावीर स्वामी की हैं और एक गोतमस्वामी के प्राचीन चरण पादुक हैं। ये सभी श्याम पाषाण निर्मित हैं । मूलनायक भगवान के परिकर के नीचे उत्कीर्णित एक पालकालीन अस्पष्ट लेख है जो सं० ११०२ मिती ज्येष्ठ सुदि ४ का मालूम देता है। आदिनाथजी की प्रतिमा सं० १४७७ की और महावीर भगवान सं० १५०४ के प्रतिष्ठित हैं । अवशिष्ट प्राचीन प्रतिमाएँ लेख विहीन । दूसरे तले में अभिनन्दन स्वामी की श्वेत प्रतिमा है। दादावाड़ी में सं० १६८६ के कई लेख हैं । श्री गौतम स्वामी दादा श्री जिनकुशलसूरि, श्री जिन सिंहसूरिजी की पादुकाएँ इसी संवत् की हैं। अंतिम लेख सं० १८५० कार्त्तिक पूर्णिमा का है । मन्दिर के बाहर शिलापट पर जैन संघ की आज्ञा से बम्बई वाले रूपचंद रंगीलदास ने आरती होने के पश्चात् मन्दिर न खुलवाने तथा कोयले से लिखना मना किया है इससे विदित होता है कि इन्होंने १६६० के आसपास पावापुरी की भाँति यहाँ भी जीर्णोद्धारादि कराया होगा । नालन्दा एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त स्थान होने के साथ-साथ जैन धर्म का भी प्राचीन और महत्वपूर्ण तीर्थ है । यहाँ की टूटी फूटी धर्मशाला को शीघ्र मरम्मत करवा कर जैन समाज को यहाँ छात्रावास खोलना चाहिये ताकि नालन्दा की इन्स्टीटयूट से समुचित लाभ उठाया जा सके । वर्त्तमान प्राचीन मन्दिर की अवस्थिति किसी को मालुम नहीं होने से पर्यटक लोग तथा कतिपय जैन लोग भी दर्शनों से वंचित रह जाते हैं अतः मंदिर तक पक्की सड़क होकर स्थान-स्थान पर बोर्ड लग जाना अत्यावश्यक हैं । For Private and Personal Use Only [ १३
SR No.020451
Book TitleKundalpur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherMahendra Singhi
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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