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मन्दिर में विराजमान है। इससे विदित होता है कि वे अनेक बार यहाँ पधारे थे। ___ श्री जिनवर्द्ध नसूरिजी के प्रशिष्य श्री जिनसागरसूरिजी के आदेश से खरतरगछीय शुभशीलगणि पूरब देश में काफी विचरे थे उनके द्वारा सं० १५०४ में प्रतिष्ठित अनेक प्रतिमाएँ राजगृह, नालन्दा, क्षत्रियकुण्ड आदि तीर्थों में प्राप्त है। नालन्दा के मन्दिर में स्थित श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा काणा गोत्रीय महत्तियाण सा० कउरसी के पुत्र में भीषण कारित है और फाल्गुन सुदि ६ के दिन शुभशील गणिद्वारा प्रतिष्ठित है। नालन्दा के म्यूजियम में एक प्रतिमा इसी संवत की तथा दो तीन अन्य प्राचीन प्रतिमाए हैं जो वहाँ के ध्वस्त मन्दिरों से प्राप्त मालूम देती हैं।
सं० १५११ में लिखित जयसागरोपाध्याय की प्रशस्ति में उनके राजगृह उद्दड़विहारादि में विचरण करने का उल्लेख है । पूरब देश की यात्रार्थ पधारे सभी मुनिराजों का नालन्दा पधारना अनिवार्य है।
सं० १५६५ में कमलधर्म शिष्य हंससोम कृत तीर्थमाला में नालन्दा का इस प्रकार वर्णन है :
पच्छिम पोलइ समोशरण वीरह देखीजइ, नालन्दइ पाड़इ चउद चउमास सुणीजइ । हिवडा ते लोक प्रसिद्ध ते बड़गाँव कहीजइ,
सोल प्रासाद तिहां अछइ जिण बिंब नमीजइ।। कल्याण थुम पासइ अछह ए मुनिवर यात्रा खाणि ।
ते युगतिइ स्यं जोइई निरमालड़ी ए कीधी पापनी हाणि ।।" सं० १६०६ में कवि पुण्यसागर कृत तीर्थमाला में :वीर जिणंद नालन्दइ पाड़इ, चउद चौमासा भवियण तारई । हा० ॥ १२ ॥ छः प्रासादइ 'नृत्यमंडाण, गोतिम थूम केवल अहिनाण ।। हां० ॥१२३।। पात्रा खापि अछइ तिहाँ सारी, भवियण ल्यइ बहु गुण संभारी ॥ हा० ॥१२३।। ईट घणी डूंगर नइ मान, घर कइवन्ना छ अहिनाण ॥ हां० ।।१२४।। __ सं० १६६१ में आगरा से सुप्रसिद्ध हीरानन्द साह का संघ निकला था जिसमें खरतर गच्छीय कवि वीरविजय ने लिखा है कि
बड़गामईरे गौतम ... गणधर थंभ छइ ।
बहु जिणहररे बहु बिंब तिहां पूज्यापछइ" इसी संवद में रचित जयविजय कृत तीर्थ माला में नालन्दा का विवरण देखिये।
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