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नालन्दयइ सविलोक प्रसिद्ध, वीरइ चउद चाउमासा की । मुगति पहूता सवे गणहार, सीधा साध अनेक उदार ॥६॥ दोसइ तेह तणा अहिनाण, पुहवइ प्रगटी यात्रा खाणि । प्रतिमा सतर-सतर प्रासाद, एक-एक स्युं मंडइ वाद ॥६८।। पगला गौतम स्वामी तणा, पूजइ कीजइ भामणा । वीर जिणेसर वारां तणी, पूजी प्रतिमा भावइ घणी ॥६६॥ सं० १६६६ में आगरा के संघपति कुँवरपाल सोनपाल के संघ वर्णन में अंचल गच्छीय कवि जसकीर्ति नालन्दा के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखते है :
वड़गामइ तिहां थी गया रे जीरेजी जिहांछइ ऋषम जिणंदा । हारे पूज रचइ रुलियामणी रे जीरेजी जेहथी लहियइ भव पाररे ॥२७॥ नालिंदों पाडो कहिउ रे जीरेजी सो वड़गामि विमासिरे । हारे हां वीर जिणेसर जिहां रहिया रे जीरेजी रूड़ी चौद चौमासि २८ तिहांथी दक्षिण दिशि भणी रे जीरेजी पनरह सइतीड़ोतर जाइरे। तापस केवल ऊपना रे जी रेजी वारु तेणइ ठाइ रे ।। २६ ।। च्यारि खूण कइ चोतरइ रे जी० गौतम पगला दोयरे । श्री संघपति जाइ पूजिया रे जी० साथइ सहु संघ लोयरे ।।३०॥
इसी संघ यात्रा का वर्णन मुनि सुमतिकलश के शिष्य मुनि विनयसागर रचित तीर्थमाला ( अप्रकाशित ) में इस प्रकार किया है :
इम राजगृह तीरथइ हो, अनइ वली वडगाम । जिह पनरह सई तापसई, पामिउ छइ २ केवल अभिराम कि ॥६६।। श्रीगौतम ना पादुका हो, तिहछइ उत्तम . थान । संघपति ते पूजी करी तिह दीधउ रे २ वलि अति घण दानकि ७०
यह संघ सं० १६७० वैशाख बदि ११ को समेतशिखरजी की यात्रा करके ७ दिन में राजगृह आकर और वहाँ की यात्रा करने के पश्चात नालन्दा आया था।
सतरहवीं शती में दयाकुशल रचित तीर्थमाला में नालन्दा का वर्णन इस प्रकार किया है :
वीर जिन चउद चौमासा किद्ध, नालन्दो पाड़ो परसिद्ध । तिहां देउल दीसे अतिघणां, वंदं वीर जिनवर तणो ||४| गौतम गणघर पगला जिहां, मुनिवर पात्रा खाण छ तिहां । .. सेस काजि ते लई सहु कोय, जिम दोठा कह्या सह कोय ॥५०॥
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