SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 86 वदसमिदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो। (निय. ११३) -भूद वि [भूत] करणस्वरूप, साधनरूप। (स.६६) एदेहिं य णिवत्ता जीवट्ठाणाउ करणभूदाहिं। -सुख वि [शुद्ध] करण से निर्दोष, कार्यों से निर्दोष, इन्द्रियों के कारणों से पवित्र। णाणम्मि करणसुद्धे, उअसणे दंसणं होई। (द.१४) करुण वि [करुण] दयाभाव, कृपा, करुणा। करुणभावसंजुत्ता। (भा.१५८) कल वि [कल] शरीर, सम्बन्ध, कोलाहल, कलह। (मो.६) -चत्त वि त्यक्त] शरीर के सम्बन्ध से रहित। (मो.६) कलि पुं [कलि] युग विशेष, कलयुग। कलिकलुसपावरहिया। कलुस वि कलुष] मलीनता, कालिमा। (द.६) कलिकलुसपावरहिया। (द.६) - उवओग पुं [उपयोग] मलिन उपयोग। जो दु कलुसोवओगो। (स.१३३) कलुसिअ वि [कलुषित] कालिमायुक्त, पापयुक्त। (भा.४४) देहादिचत्तसंगो, माणकसाएणकलुसिओ धीर! (भा.४४) कलेवर न [कलेवर] शरीर, देह। गहि उज्झियाई मुणिवर, कलेवराई तुमे अणेयाई। (भा.२४) कल्लाण पुं न [कल्याण] हित, सुख,निर्वाण, मोक्ष। (भा. १३५, १००, द. ३३) कल्लाणसुहणिमित्तं परंपरा तिविहसुद्धीए। (भा. १३५) -परंपरा स्त्री [परंपरा] कल्याण की परम्परा, विधि पूर्वक कल्याण | कल्लाणपरंपरया कहंति जीवा विसुद्धसम्मत्तं। (द.३३) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy