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ईसरे णिरावेक्खा। (बो.४७) ईसरिय न [ऐश्वर्य] ईश्वरत्व, ईश्वरपन। (प्रव.ज.वृ.३८) सोक्खं
तहेव ईसरियं। ईसा स्त्री [ईर्षा] ईर्ष्या, द्रोह, मन-मुटाव। ईसा विसादभावो, असुहमणं त्ति य जिणा वेंति। (द्वा.५१) -भाव पुं [भाव] ईर्ष्या भाव। ईसाभावेण पुणो, केई णिदंति सुदंरं मग्गं । (निय.१८५) ईह सक [ईह्] इच्छा करना, चाहना, विचार करना। चारित्तसमारूढो, अप्पासु परं ण ईहए णाणी। (चा.४३) ईहए (व.प्र.ए.) पालिह भाव-विसुद्धो पूयालाहं ण ईहंतो। (भा.११३) ईहंतो (व.कृ.) ईहा स्त्री [ईहा] विचार, ऊहापोह, विमर्श, जिज्ञासा। जाणतो पस्संतो, ईहा पुव्वं ण होइ केवलिणो। (निय.१७२) -पुब वि [पूर्व] ईहापूर्वक। ईहापुव्वं वयणं । (निय.१७४) ईहापुव्वेहिं जे विजाणंति। (प्रव.४०) ईहापुव्वेहिं (तृ.ब.) -रहिय वि [रहित] ईहा से रहित। (निय.१७४) अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा, ये चार इन्द्रिय जन्य ज्ञान हैं। अवग्रह, ईहा आदि से हुआ ज्ञान परोक्ष होता है।
उ अ [तु] और, कि, तथा, परन्तु, अथवा। (स.१८०,१८३, १८४, ३२७,३४४,३५१,३५५) अणज्जभासा विणा उ गाहेउं। (स.८)
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