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अविणय पुं [अविनय] अविनय, विनयरहित। (भा.१०४) -णर पुं [नर अविनयी मनुष्य। अविणयणरा सुविहियं, तत्तो मुत्तिं ण पावंति। (भा.१०४) अविणास वि [अविनाश] अविनाशी, नाश रहित, शाश्वत। (निय. ४८,१७६) असरीरा अविणासा। (निय.४८) अविण्णाण न [अविज्ञान] भिन्नज्ञान। मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक ज्ञानों से रहित होना अविज्ञान है। यदि मोक्ष में जीव का सद्भाव नहीं माना जाए तो उसमें आठ भाव संभव नहीं होंगे। 1.शाश्वत 2.उच्छेद 3.भव्य 4.अभव्य 5.शून्य 6.अशून्य 7.विज्ञान और 8.अविज्ञान । सस्सधमध उच्छेदं, भव्वमभव् च सुण्णमिदरं च विण्णाणमविण्णाणं,ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे।। (पंचा.३७) अस सक [अश्] भोजन करना। असिआ (अ.भू.भा.४१) असिऊण (सं कृ.भा. १०३) असिऊण माणगव्वं । (भा.१०३) असंकंत वि [असंक्रान्त] संक्रान्त नहीं होने वाला। सो
अण्णमसंकेतो, कह तं परिणामए दव्वं । (स.१० ३) असखदेस वि [असंख्यदेश] परिमाण रहित प्रदेश, असंख्यात प्रदेश
धम्माधम्मस्स पुणो, जीवस्स असंखदेसा हु। (निय.३५) असंखाद वि [असंख्यात] असंख्यात, गिनती करने में असमर्थ, जिसकी गिनती न की जा सके। (पंचा.३१,प्रव.जे.४३) देसेहि असंखादा। (पंचा.३१) असंखादियपदेस वि [असंख्यातिकप्रदेश] असंख्यातप्रदेश। (पंचा.८३) पिहुलमसंखादियपदेसं।
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