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भव-भवान्तरों में भी मुक्त नहीं हो। (पंचा.१२०, स.२७३, प्रव.६२, भा.१३८) अभब्बो (प्र.ए.स.३१७) अभव्वा (प्र.ब. प्रव.६२) अभव्वं (द्वि.ए.पंचा.३७) -जीव पुं [जीव] अभब्व जीव । (भा.१३८) मिच्छत्तछण्णदिट्ठी, दुद्धीए दुम्मएहिं दोसेहिं । धम्म जिणपण्णत्तं अभव्यजीवो ण रोचेदि। -सत्त पुं [सत्त्व] अभव्यजीव, त्रैकालिक आत्मीक भाव की प्रतीति से रहित। (पंचा.१६३) अभव्वसत्तो ण सद्दहदि।। भभाव पुं [अभाव अभाव, निषेध, असत्ता, अविद्यमानता, अस्तित्वरहित, कर्मों का निरोध। (पंचा.३५, स.१७८, प्रव. जे.१५,१६) जो खलु तस्स अभावो। (प्रव. जे. १५) कम्मस्साभावेण य । (पंचा. १५१) अभिंधुद वि [अभिघृत] दुःखी होता हुआ, कष्ट पाता हुआ। (प्रव.१२) अभिगच्छ सक [अभि गम्] प्राप्त करना, अनुभव करना, समझना। (पंचा.१२३,स.९,प्रव.९०) अभिगच्छदु (वि. आ.प्र.ए.पंचा.१२३) अभिगच्छइ (व.प्र.ए.स.९)जो हि सुएणभिगच्छइ। अभिगम्म (सं.कृ.पंचा.१२३) अभिगद वि [अभिगत] रुचि लिए हुए, ज्ञात । (पंचा.१७०,स.१३)
भूयत्थेणाभिगदा। (प्र.ब.स.१३) अभिणंदण वि [अभिनंदन] प्रशंसा, स्तुति, सम्म न, एक तीर्थकर
का नाम। (ती.भ.३) अभिणिवेस पुं [अभिनिवेश] अभिप्राय, आग्रह। (निय.५१)
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