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निय.१०४) उवसंपयामि सम्म। (प्रव.५) सम्म अ [सम्यक्] अच्छी तरह, यथार्थरूप में, वास्तव में, भलीभाँति। (पंचा.४८, प्रव.८१, सू.१, चा.२, भा.१४८, बो.१४) सम्मं जिणभावणाजुत्तो। (भा.१४८) सम्मत्त पुं न [सम्यक्त्व] समकित, सम्यग्दर्शन, यथार्यश्रद्धान। (पंचा.१०७, स.१३, निय.५, चा.६, बो.५७, भा.१४३, सू.१४, द.२०,मो.४०) धर्म आदि द्रव्यों का श्रद्धान करना सम्यक्त्व है। (पंचा.१६०)जीवादि सात तत्त्वों पर श्रद्धान व्यवहार सम्यक्त्व है और शुद्ध आत्मा का श्रद्धान निश्चय सम्यक्त्व है। (द.२०) -गुण वसुद्ध वि [गुणविशुद्ध] सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध। (बो.५२) सम्मत्तगुणविसुद्धो। -चरणचरित्त न [चरणचरित्र सम्यक्त्व के आचरण रूप चारित्र। (चा.८)-चरणभट्ट वि [चरणभ्रष्ट] सम्यक्त्व आचरण से भ्रष्ट। (चा.१०) -चरणसुद्ध वि [चरणशुद्ध] सम्यक्त्वाचरण से शुद्ध। (चा.९) -णाणचरण न [ज्ञानचरण] सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र। (निय.९१) सम्मत्तणाणचरणे। (निय.१३४) -णाणजुत्त वि [ज्ञानयुक्त] सम्यक्त्व और ज्ञान से युक्त। (पंचा.१०६) -णाणरहिब वि [ज्ञानरहित सम्यक्त्व और ज्ञान से रहित। (मो.७४) -पडिणिवद वि प्रतिनिबद्ध सम्यक्त्व को रोकने वाला। सम्मत्तपडिणिबद्धं । (स.१६१) -परिणद वि [परिणत सम्यक्त्वरूप परिणत। सम्मत्तपरिणदो उण। (मो.८७) -पहुदिभाव पुं [प्रभृतिभाव] सम्यक्त्वादि भाव।
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