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जाण अत्ता दु अत्ताणं। (स.८३) -भाव पुं भाव] आत्मभाव। (स.८६) जम्हा दु अत्तभावं। (स.८६) 2.पुं [आत्मन्] अपना। (स.९४,९५) -मझ वि [मध्य] अपने आप ही मध्य । (निय.२६) 3. वि [आर्त] आर्तध्यान, पीड़ित, दुःखित। (पंचा.१४०) इंदियवसदा य अत्तरुद्दाणि। 4. वि [आप्त] वीतरागी, सर्वज्ञ, केवलज्ञानी। (निय.५) अत्तागमतच्चाणं, सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं। अत्ताणपुं [आत्मन्] अपने आप। (स.८३) अत्ताणं (द्वि.ए.स.८३) जाण अत्ता दु अत्ताणं। अत्तावण वि [आतापन] आतापनयोग। (भा.४४) अत्तावणेण
आदो, बाहुबली कित्तियं कालं। अत्य अक [स्था] बैठना, ठहरना। अत्येइ (व.प्र.ए.बो.५५) अत्य पुं न [अर्थ] 1. पदार्थ, वस्तु, अर्थ, जिन्स। (स.४१५,प्रव.५९) अत्थतच्चदो णाऊं। (स.४१५) 2. पुंन. [अर्थ] धन, द्रव्य। -अत्यी वि [अर्थिन्] धनार्थी, धन चाहने वाला। (स.१७) अत्थत्थीओ पयत्तेण। (स.१७) -अंतगद वि [अन्तगत] पदार्थ के अन्त को प्राप्त। णाणं अत्यंतगदं। (प्रव.६१) -अंतरभूद वि [अन्तर्भूत] पदार्थ में गर्भित। (प्रव.जे.५२,६२) तमत्थं अत्यंतरभूदमत्थीदो। (प्रव.जे.५२) -अंतरिद वि [अन्तरित पदार्थ से सर्वथा विभिन्न, सर्वथा प्रकार भेद। (पंचा.४८,४९) अत्यंतरिदो दुणाणदो णाणी। (पंचा.४८) -जाद वि [जात] पदार्थ को प्राप्त, वस्तु से उत्पन्न। (प्रव.१८)
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