________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
298
णिम्मोहा वीयरायपरमेट्ठी। (चा.१) -भाव पुं भाव] वीतराग।
भाव परिचत्ता वीयरायभावेण । (निय.१२२) वीर पुं [वीर] 1.भगवान महावीर, अन्तिम तीर्थङ्कर। (प्रव.शे१४,
शी.१, निय.१) णमिऊण जिणं वीरं। 2.वि. [वीर पराक्रमी, शूरवीर आराहणणायगं वीरे। (भा.१२३) वीरिय पुं न वीर्य] शक्ति, सामर्थ्य। (प्रव.२ शी.३७) णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे। (प्रव.२)-आचार पुं[आचार] वीर्य का आचार, शक्तिमय आचार। (प्रव.चा.२) -आवत्त पुं [आवर्त] वीर्य के आधीन, शक्ति विशेष । (शी.३७) सणसुद्धी य वीरियावत्तं (शी.३७) वीसट्ठ पुं विश्वस्त विश्वास, आस्था। महिलावग्गम्मि देदि वीसट्ठो।
(लिं.२०) वीहत्य वि [वीभत्स] घृणित,क्रूर,भयावह असुहीवीहत्थेहिं य।
(भा.१७) वुच्च सक [वच्] बोलना, कहना। (स.४५, पंचा.१३६, प्रव.जे.३)
जस्स फलं तं वुच्चइ। (स.४५) वुज्झ सक [बुध्] जानना, ज्ञान करना, समझना। (बो.२) बुज्झामि समासेण । (बो.२) बुज्झद वि [बुध्यमानजानने वाला, समझने वाला। पच्चक्खादीहिं
वुज्झदो णियमा। (प्रव.८६) वुत्त वि [उक्त कथित, प्रतिपादित। वचचइदालत्तयं च वुत्तेहिं। (बो.४२)
For Private and Personal Use Only