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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 297 सम्यग्विभाव ज्ञान हैं तथा कुमति, कुश्रुत और विभङ्गावधि, तीन मिथ्याविभावज्ञान हैं। (निय.११,१२) -पज्जाय पुं [पर्याय] विभावपर्याय, विभावक्रम, विभावपरिपाटी। (निय.२८) खंघसरूवेण पुणो परिणामो सो विहावपज्जयो। (निय.२८) विहिपुं [विधि] प्रणाली, रीति, पद्धति, साधन, नियम, शास्त्रोक्त विधान। (द.३६) -बल/वल न [बल] विधिपूर्वक, विधि के योग सेकम्मं खविऊण विहिवलेणसं । (द.३६) विहिब वि विहित] कृत, निर्मित, कथित, स्वीकृत। (स.१५६) जदीण कम्मक्खओ विहिओ। विहिद वि [विहित] चेष्टित, कथित। (प्रव.चा.५६) छदुमत्यविहिदवत्थुसु। विहीण वि [विहीन] वर्जित, रहित। (स.२०५, प्रव.७,चा.४२) णाणगुणेण विहीणा। (स.२०५) विहुय वि [विधुत] व्यक्त, नष्ट। (ती.भ.६) -रयमल पुं न [रजोमल] मैल से रहित। विहुयरयमला पहीणजरमरणा। (ती.भ.६) विहूइ स्त्री [विभूति] ऐश्वर्य, वैभव। देवाण गुणविहूई। (भा.१५) वीदराग वि [वीतराग] रागरहित, वीतराग।सो तेण वीदरागो। (पंचा.१७२) वीय न [बीज] बीज, अङ्कुरित होने योग्य धान्य। (स.३८७, प्रव.चा.५५, भा.१२५) वीयं दुक्खस्स अट्ठविहं। (स.३८८) वीयराग/वीयराय देखो वीदराग। (बो.९,निय.१२२,चा.१६) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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