________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Loy
विम्हिय पुं विस्मय] आश्चर्य, अठारह दोषों में एक विम्हियणिद्दा
जणुब्वेगो। (निय.६) विय अ [इव] तरह, इस प्रकार, जैसा। ते रोया वि य सयला।
(भा.३८) वियलिंदिअ पुं न [विकलेन्द्रिय द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के
जीव। (भा.२९) वियलिदिए असीदी। (भा.२९) वियप्प सक [वि+कल्पय् भेदभाव को प्राप्त होना, संशय करना,
विचार करना। ण वियप्पदि णाणादो। (पंचा.४३) वियप पुं [विकल्प] भेद, प्रकार। (स.११०, प्रव.जे.३२,
प्रव.चा.२३, निय.२०) भणिदो भेदो दुतेरहवियप्पो। (स.११०) वियल सक [वि+गल्] टपकना, गलना, घटना। इंदियबलं ण
वियलइ। (भा.१३१) वियर सक [वि+चर] विचरना, घूमना, परिभ्रमण करना। चोरो
त्ति जणम्मि वियरंतो। (स.३०१) वियरंत (व.कृ.स.३०१) वियाण सक [वि+ज्ञा] जानना, समझना, अनुभव करना। (पंचा.७७,स.३७,प्रव.६४,द्वा.३)णाणी कम्मष्फलं वियाणेदि। (स.३१८)वियाणादि वियाणेदि वियाणाए (व.प्र.ए.प्रव.चा.३३, स.३१८ ,२८८) वियाणीहि वियाणेहि वियाण वियाणाहि (वि. आ.म.ए.पंचा.४०,८१,७७,६६)वियाणंत (व.कृ.स.१८६) वियाणित्ता (सं.कृ.स.१४८) कुच्छियसीलं जणं वियाणित्ता।
(स.१४८) वियाणत्ता वियाणिच्चा (सं.कृ.प्रव.चा.२२,द्वा.३) विरम वि [विरत] निवृत्त, राग से मुक्त, वृत्ति परिवर्तन,
For Private and Personal Use Only