________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
283
विजुद वि [वियुत] रहित, हीन। (पंचा.३२) विजुज्ज वि [वियुज्य] खिरते हुए, झड़ते हुए, रहित। (पंचा.६७)
काले विजुज्जमाणा। विज्ज अक विद्] होना, रहना, अस्तित्व होना। (पंचा.१६७, स.२०१, प्रव.१७, निय.१७८, सू.२६) रायादीणं तु विज्जदे जस्स। (स.२०१) विज्जदि विज्जदे (व.प्र.ए.प्रव.जे.५०, पंचा.१६७) विज्जते (व.प्र.ब.पंचा.४६) विज्जा स्त्री विद्या विद्या, शास्त्रज्ञान, यथार्थज्ञान, तपश्चर्या से होने वाली सिद्धि विशेष । (स.२३६) -रह पुन [रथ] विद्यारथ। (स.२३६) विज्जारहमारूढो। विज्जावच्च न [वैयावृत्य] सेवा, शुश्रूषा, वैयावृत्ति, सोलह कारणभावनाओं का एक भेद। विज्जावच्चं दसवियप्पं । (भा.१०५) विणअ पुं विनय] आदर, सम्मान, शिष्टाचार, विनय, सोलह
कारण भावनाओं का एक भेद। (प्रव.चा.२५, चा.११) वच्छल्लं विणएण य। (चा.११) विनय का उल्लेख तप के भेदों में आता है, वहाँ उसके चार भेद किये हैं-ज्ञानविनय, दर्शनविनय,
चारित्रविनय एवं उपचार विनय।। विट्ठ वि [विनष्ट] विनाश को प्राप्त, लुप्त, ध्वस्त, उच्छिन्न।
(पंचा.१८) उप्पण्णो य विणट्ठो। विणय देखो विणअ। (प्रव.६६, बो.१६, भा.१०४) -संजुत्त वि [संयुक्त] विनय से युक्त। सुपुरिसो वि विणयसंजुत्तो। (बो.२१)
For Private and Personal Use Only