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259 अहर्निश। (द्वा.८८) रथ/रह पुं न [रथ] रथ, यान विशेष । (स.९८) रद देखो रअ। (स.२०६) एदम्हि रदो णिच्चं । (स.२०६) रदण पुंन [रत्न] रत्न, मणि, बहुमूल्य पत्थर विशेष। (प्रव.३०,
शी.२८) रदणमिह इंदणीलं। (प्रव.३०) -भरिद वि [भरित] रत्नभरित,रत्नों से भरा हुआ। (शी.२८) उदधी व रदणभरिदो। (शी.२८) रदि देखो रइ। (पंचा.१४८) जेसिं विसएसु रदी। (प्रव.६४) रम अक [रम्] क्रीड़ा करना, रमण करना। (प्रव.६३,७१) रमंति विसएसु रम्मेसु । (प्रव.६३) रम्म वि [रम्य सुन्दर, मनोहर, रमणीय। (प्रव.६१) रय पुं न [रजस्] 1. रेणु, धूली, रज। (स.२४१,२४६) -बंध पुं [बन्ध] रज का बन्ध, धूल से युक्त। तम्हि णरे तेण तस्स रयबंधो । (स.२४०) 2. वि [रत] देखो रअ। (मो.७९) आधाकम्मम्मि
रया। रयण पुं न [रत्न] रत्न,माणिक्य आदि रत्न, पत्थर विशेष । (निय.७४,द.३३,भा.८२)सम्मइंसणरयणं । (द.३३)-त्त वि [त्व] रत्नत्व, रत्नपना। सदगुणवाणा सुअस्थि रयणत्तं। (बो.२२) -त्तय न [त्रय] रत्नत्रय, तीन रत्नों का समुदाय। (निय.७४, भा.३०, मो.३३) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीन रत्नत्रय हैं। तं रयणत्तय समायरह । (भा.३०) -त्तयजुत्त वि [त्रययुक्त] रत्नत्रय से युक्त। जो
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