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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 251 मुणिद/मुणिय वि [मुणित] जाना हुआ। (बो.६) मुणि पुं [मुनि श्रमण,साधु,ऋषि,मुनि। (स.२८, निय.११६, बो.४३, भा.१७) जो कर्म से रहित ज्ञाता एवं दृष्टा है, वह मुनि है। तया विमुत्तो हवइ, जाणओ पासओ मुणी। (स.३१५) -पवर वि [प्रवर श्रेष्ठ मुनि। (भा.१७) खमाअ परिमंडिओ य मुणिपवरो। (भा.१०८) -वर वि [वर उत्तम मुनि,श्रेष्ठमुनि। (बो.६, निय.९२, भा.२४) मुणिवरवसहा णि इच्छंति। (बो.४३) मुणिंद पुं [मुनीन्द्र] श्रेष्ठ मुनि, उत्तम साधु। (भा.१५९) मुत्त न [मूत्र] 1.मूत्र, प्रस्रवण, पेशाब। (भा.३९, द्वा.४५) 2. वि [मूर्त] मूर्त, रूपवाला, आकारवाला। (पंचा.९९, निय.३५, प्रव.जे.३९) मुत्ता इंदियगेज्झा। (प्रव.जे.३९) मुत्तं पुग्गलदव्वं । (पंचा.९७) 3. वि [मुक्त] मुक्ति को प्राप्त, बन्धन रहित। (पंचा.५९, भा.४३) भावविमुत्तो मुत्तो। (भा.४३) मुत्त सक [मुच् अपभ्रंश] छोड़ना। (भा.३६) मुत्तूणट्ठपएसा । (भा.३६) मुत्तूण (सं.कृ.भा.१४१) मुत्ति स्त्री [मूर्ति] 1. रूप, आकार, बिम्ब, सदैव विद्यमान। (पंचा.१३४, प्रव.जे.४२, निय.३७) -गद वि [गत मूर्तिगत, आकारयुक्त। (प्रव.५५) -परिहीण वि परिहीन] अमूर्तिक, रूप एवं आकार रहित। (पंचा.९७) -प्पहीण वि [प्रहीन] आकाररहित। (प्रव.जे.४२) -भव वि [भव] मूर्तिरूप हुआ, सदैव विद्यमान। (पंचा.७७) -विरहिद/विरहिय वि [विरहित मूर्ति रहित, आकारहीन। (पंचा.१३४, निय.३७) 2. स्त्री For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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