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रुकना। (पंचा.४८, स ८५,११७) पसजदि अलोगहाणी। (पंचा.९४) पसत्य वि [प्रशस्त] शुभरूप, श्रेष्ठ,उत्तम। (पंचा.१३५, प्रव.चा.६०) -भूद वि [भूत] शुभ रूप वाला। (प्रव.चा.५४) एसा पसत्यभूदा। (प्रव.चा.५४) -रागपुं[राग] प्रशस्तराग, शुभराग। (पंचा.१३६) अरहन्त, सिद्ध और साधुओं में भक्ति होना, शुभराग रूप धर्म में प्रवृत्ति होना तथा गुरुओं के अनुकूल चलना प्रशस्तराग है। (पंचा.१३६) पसमिय वि [प्रशमित] शगन करने वाला, नष्ट करने वाला।
(पंचा.१०४) पसमियरागद्दोसो। (पंचा१०४) पसर पुं प्रसर प्रवर्तन, विस्तार, फैलाव, आगे जाना, प्रगमन।
(पंचा.८८) हवदि गदी सप्पसरो। पसाध सक [प्र+साध्] 1.अलङकृत करना,उज्ज्वल करना, सुशोभित करना। (प्रव.चा.२१) कधमप्पाणं पसाधयदि। (प्रव.चा.२१) 2. वश में करना, सिद्ध करना। (प्रव.चा.२१) पसाधग वि [प्रसाधक साधक, सिद्ध करने वाला, पवित्र करने
वाला। (पंचा.४९)वयणं एगत्तप्पसाधगं होदि। पसारण न [प्रसारण] फैलाव, विस्तार। (निय.६८) पसु पुं [पशु] पशु, जानवर। (बो.५६) पस्स सक [दृश्] देखना, अवलोकन करना, दृष्टिगोचर होना। (पंचा.१२२, स.१५, प्रव.२९, निय.१०९ चा.१८) पस्सइ पस्सदि (व.प्र.ए.स.३६२, पंचा.११२) पस्सिदूण
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