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परिणाम,दुःख का प्रयोजन दुक्खा दुक्खाफलाणि य। (स.७४) -मोक्ख पुं [मोक्ष] दुःख से मुक्ति। (पंचा.१६५) -रहिय वि [रहित] दुःख से रहित, दुःख से परे। (बो.३६) -संतत्त वि [संतप्त] दुःख से संतप्त,दुःख से पीड़ित । (प्रव.७५) आमरणं दुक्खसंतत्ता। -सहिस्स वि [सहस्र] हजारों दुःख। (प्रव.१२) दुक्खसहिस्सेहिं सदा दुक्खा (प्र.ब.स.७४)दुक्खाइं (द्वि.ब.भा.११) दुक्खेण (तृ.ए.भा.१९)दुक्खस्स (च. ष.ए.स.७२) दुक्खादो (पं.ए.पंचा.१२२) दुक्ख सक [दुःखय् दुःख होना, दर्द होना। दुक्खाविज्जइ तहेव
कम्मेहि। (स.३३३) दुक्खाविज्जइ (प्रे.व.प्र.ए.) दुक्खिद वि [दुःखित] दुःखयुक्त, दुःखी, पीड़ित, व्यथित | (स.२५३-२५९) दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि जीवे। (स.२५४) दुगन [द्विक] दो, युग्म, युगल। (प्रव.जे.४९) दुगइ स्त्री [दुर्गति] खोटी पर्याय, अशुभ पर्याय। (मो.१६) दुगंछा/दुगुंछा स्त्री [जुगुप्सा] घृणा, निंदा। जो दुगंछा भयं वेद ।
(निय.१३२) णत्यि दुगुंछा य दोसो य । (बो.३६) दुगुण पुंन [द्विगुण] दुगुना, स्निग्धता के दो अंशों को धारण करने
वाला। (प्रव.जे.७४) दुग्ग पुंन [दुर्ग] किला, गढ़,कोट। (द्वा.९) दुग्गंध पुं दुर्गन्ध] दुर्गन्ध, खराब गन्ध, बदबू। (भा.४२) दुच्चरित्त न [दुश्चरित्र] दुराचरण, दुष्ट प्रवर्तन, खराब आचरण । (निय.१०३)
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