________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अन्तरहित, बहुल। (प्रव. १२, प्रव. चा.७१) अभिंधुदो भमइ अच्चंतं। (प्रव.१२)-फलसमिद्ध वि [फलसमृद्ध] अत्यन्त फल से युक्त, अतिशय फल की समृद्धि वाला। (प्रव.चा.७१) अच्चंतफलसमिद्धं । (प्रव.चा,७१) अच्चेदण/अच्चेयण वि [अचेतन] चैतन्यरहित, निर्जीव,
चेतनाहीन। (मो.९,५८) अच्छ सक [आस्] रहना। (मो.४७) अच्छेअ वि [अच्छेद्य] छेदन करने के अयोग्य, अखण्डित।
(निय.१७६) अक्खयमविणासमच्छेयं । (निय.१७६) अच्छेअ पुं [अच्छेद] रिक्त, अपूरित, विनाशरहित, अन्तरहित।
(भा.२३) तो विण तिण्हच्छेओ। अजधा अ [अयथा] जैसे को तैसा नहीं, अन्यथा, विपरीत। (प्रव.८४, प्रव.चा.७२) -गहण न [ग्रहण] जैसे को तैसा ग्रहण नहीं, अन्यथाग्रहण। (प्रव.८५) -गहिदत्य वि [ग्रहीतार्थ] अन्य का अन्य विदित होना। (प्रव.चा.७१) -चारविजुत्त वि [आचारवियुक्त] मिथ्या आचरण से रहित। (प्रव.चा.७२) अजधाचारविजुत्तो। (प्रव.चा.७२) अजर वि [अजर] मुक्तावस्था, मुक्तिपथ, मोक्षसुख, बुढ़ापारहित, जीर्णतारहित। (भा.१६१) सिवमजरामरलिंगमणोवमुत्तमं परमविमलमतुलं। (भा.१६१) अजाद वि [अजात] अनुत्पन्न, उत्पत्तिरहित । (प्रव.३९,४१) जदि पच्चक्खमजादं। (प्रव.३९)
For Private and Personal Use Only