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165 णिसेज्जा स्त्री [निषद्या] आसीन होना, बैठना, समवसरण में
आसीन होना। (प्रव.४४) णिस्संक वि [निःशङ्क] शङ्का रहित। (स.२२९) णिस्संकिय वि [निःशङ्कित] शङ्कारहित, सम्यक्त्व का एक गुण।
(चा.७) णिस्संग वि [निःसङ्ग] 1. सङ्गरहित, बाह्य एवं आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह या सङ्गति से रहित। मोक्षाभिलाषी निष्परिग्रह और ममत्व रहित होकर परमात्मस्वरूप में लीन होता है। (पंचा.१६९, बो.४८) 2. कषायादि से रहितोतं णिस्संगं साहु।
(स.ज.वृ.१२५) णिसंसय वि [निःसंशय निःसंदेह, संशयरहित। (स.३२६) णिस्सल्ल वि [निःशल्य] शल्यरहित, जन्ममरण से रहित।
(निय.४४) णिस्सेस वि [निःशेष] समस्त, सम्पूर्ण। -दोसरहिअ वि[दोषरहित]
समस्त दोषों से रहित, सिद्ध,मुक्त। (निय.७) णिहण सक [नि+हन्] मारना, घात करना। नष्ट करना।
(प्रव.८८) णिहणदि (व.प्र.ए.प्रव.८८)। णिहद वि [निहत] घात करने वाला, मारने वाला। (प्रव.९२) -घणघादिकम्म पुंन [घनघातिकर्म] घातियां कर्मो को क्षय करने वाला। (प्रव. जे. १०५) -मोह पुं [मोह] मोह का नाश करने वाला। (पंचा.१०४) णिहार पुं निहार निर्गम, शौच, उच्चार आहारणिहारवज्जियं।
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