________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
164 चेदणप्पगा दुविहा। (पंचा.१०९) णिविअप्प वि [निर्विकल्प] संदेह रहित, संशय रहित।
(निय.१२१) णिविदिगिच्छ/णिबिगिच्छ वि [निर्विचिकित्सित आठ अङ्गों में एक, निर्विचिकित्सित, घृणा रहित। जो जीव वस्तु के सभी धर्मों मे ग्लानि नहीं करता, उसे वास्तव में निर्विचिकित्सित अङ्ग वाला
कहा जाता है। (स.२३१) णिबियार वि [निर्विकार] विकार रहित, विशुद्ध। (बो.४९) णिविस वि [निर्विष] विष रहित, विषहीन। (भा.१३७) ण पण्णया
णिब्बिसा हुंति। (स.३१७) णिबुदि स्त्री निर्वृत्ति] मोक्ष, निर्वाण, मुक्ति। (पंचा.१६९,
स.२०४, निय.१३६) -कम्म पुं [काम, मोक्ष का अभिलाषी। (पंचा.१६९) -मग्ग पुं [मार्ग] मुक्तिपथ। णिबुदिमग्गो (निय.१४१) -सुह न [सुख] मोक्षसुख। णिबुदिसुहमावण्णा। (स.१४०) णिब्वेद/णिव्वेय ' [निर्वेद] वैराग्य, मुक्ति की इच्छा, मोक्ष की ओर प्रवृत्ति। णिवेयसमावण्णो, णाणी कम्मप्फलं वियाणेइ। (स.३१८) -परम्परा स्त्री [परम्परा] वैराग्य की परिपाटी।
देवगुरूणं भत्ता, णिब्वेयपरंपरा विचिंतंता। (मो.८२) णिसा स्त्री [निशा] रात्रि, रात। -यर पुं [कर] 1.चन्द्र, शशि। जिणमयगयणे णिसायरमुणिंदो। (भा.१५९) 2. पुं [चर] राक्षस चोर, तस्कर।
For Private and Personal Use Only