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जोग्ग वि [योग्य] योग्य, उचित। (प्रव.५५) ओगिण्हत्ता जोग्गं|
(प्रव.५५,प्रव.चा.ज.पू.२५) जोड सक [योजय] जोड़ना, मिलाना, संयुक्त करना । जो जोडदि विव्वाह। (लिं.९) जोणि स्त्री [योनि] उत्पत्ति स्थान, जीव की उत्पत्ति।
(निय.४२,५६) कुलजोणिजीवमग्गण । (निय.५६) जोण्ह वि [ज्योत्स्न] 1.आलोक युक्त, प्रकाश युक्त। 2. जिनदेव,
जिनेन्द्रदेव। उवलद्धं जोण्हमुवदेसं। (प्रव.८८) जोधपुं [योध] योद्धा, वीर। (स.१०६) जोय पुं [योग] देखो जोइ, जोग। (स.५३, द.१४, मो.२८) -ट्ठाण
न स्थान] योगस्थान। जोयट्ठाणा ण बंधठाणा। (स.५३) जोय अक [द्युत् प्रकाशित होना, चमकना, द्युतिमान होना।
जोयत्यो जोयए अप्पा। (मो.२८) जोयण न [योजन] योजन, एक पैमाना, पथ नापने का पैमाना। (मो.२१) -सय वि [शत] सौ योजन। (मो.२१) विस्तार के लिए तिलोयपण्णत्ति दृष्टव्य है। जो जाइजोयणसयं। (मो.२१) जोवण न [यौवन] युवावस्था, तारुण्य,जवानी। (द्वा.४) जोव्वणं बलं तेजं । (द्वा.४)
झ
झड अक [शद्] झड़ना, गिरना, क्षय होना। (मो.१) उवलद्धं जेण
झडियकम्मेण । (मो.१) झडिय (सं.कृ.मो.१) झा सक [ध्यै] ध्यान करना, चिंतन करना। (पंचा.१४५, स.१८८,
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