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120 मोक्खं। (बो.८) -हर न [गृह] चैत्यगृह, जिनालय, मन्दिर।
चेइहरं जिणमग्गो। (बो.८) चेट्ट अक [स्था] चेष्टा करना, प्रवृत्ति करना। तह चेटुंतो दुही जीवो। (स.३५५) चेतो (व.कृ.) चेद अक[चित् अनुभव करना, जानना। तं दोसं जो चोददि। (स. ३८५) चेदयदि जीवरासी। (पंचा.२८) चेदपुं चेत् आत्मा, जीव, चेतना। (पंचा.२७, स.११८) चेदग वि [चेतक] 1. चेतक, चैतन्य। 2.पुं चेतक] अनुभव करने वाला, जानने वाला, ज्ञाता। (पंचा.६८) जीवो चेदगभावेण कम्मफलं। (पंचा.६८) चेदण पुं चेतन] चैतन्य, जीव, चेतना, आत्मा। (पंचा.१६, प्रव. जे. ३१, निय. ३७) जीवगुणा चेदणा य उवओगो। (पंचा.१६) -अप्पग वि [आत्मक] चैतन्यमय, चैतन्यस्वरूप, चेतनात्मक। जीवा संसारत्था, णिवादा चेदणप्पगा दुविहा। (पंचा.१०९) -गुण पुं न [गुण] चैतन्गुण । (निय.३७)-भाव पुं [भाव
चैतन्यभाव| चेदणभावो जीवो। (निय.३७) चेदणा स्त्री [चेतना] चेतना, उपयोग। (प्रव. शं.३१) परिणमदि
चेदणाए, आदा पुण चेदणा तिधाभिमदा। (प्रव.जे.३१) चेदणाए (तृ.ए.) -गुण पुं न [गुण] चेतना गुण । (पंचा.१२७, निय.४६, स.४९) चेदणागुणमसई । (पंचा.१२७) चेदय न [चेतक चेतक,ज्ञानी,चैतन्य |अप्पाणं चेदयाइं अण्णं च । (बो.७)
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